2014-12-20 10:32:46

वाटिकन सिटीः क्यूबा की आशा-आकाँक्षाओं को रेखांकित करती सन्त पापा की पुस्तक


वाटिकन सिटी, शनिवार 20 दिसम्बर, सन् 2014 (एपी): होर्हे मरिया बेरगोलिया अर्थात् सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा लिखी एक पुस्तक क्यूबाई समाज, मार्क्सवाद तथा संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा क्यूबा पर लगाये गये प्रतिबन्धों पर प्रकाश डालती है।

सन् 1998 ई. में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय द्वारा क्यूबा की प्रेरितिक यात्रा के उपरान्त तत्कालीन मान्यवर बेरगोलियो ने "सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय तथा क्यूबा के तत्कालीन राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो के बीच हुई वार्ताओं" का संकलन किया था।

सम्पूर्ण लातीनी अमरीका में शीत युद्ध के परिणामों के प्रति सचेत रहते हुए अपनी पुस्तक में बोयनुस आयरस के तत्कालीन महाधर्माध्यक्ष होर्हे बेरगोलियो ने समाजवाद तथा कास्त्रो की नास्तिकतावादी क्राँति की कड़ी निन्दी की थी जिसने व्यक्तियों से उनकी प्रतिष्ठा छीन कर उन्हें केवल राज्य की सेवा में लगा दिया था। किन्तु इसके साथ ही, उन्होंने क्यूबा पर लगाये गये अमरीकी प्रतिबन्धों का भी खण्डन किया था जिसके कारण देश निर्धन हो गया है।

अपनी पुस्तक में क्यूबा की आशाओं एवं आकाँक्षाओं को र्खांकित कर सन्त पापा फ्राँसिस ने लिखा था, "क्यूबाई लोगों को इस अलगाव से छुटकारा मिलना ज़रूरी है।"

सन्त पापा फ्राँसिस की पुस्तक के प्रथम अध्याय का शीर्षक "वार्ता का मूल्य", अर्थगर्भित है और यह स्पष्ट है कि सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के समान ही सन्त पापा फ्राँसिस का भी अटल विश्वास है कि क्यूबा के अलगाव को समाप्त करने तथा काथलिक कलीसिया के विरुद्ध वैमनस्यता का अन्त करने के लिये वार्ता एकमात्र मार्ग था।

अपनी पुस्तक में सन्त पापा फ्राँसिस इस बात की ओर आकर्षित कराते हैं कि सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय कास्त्रो के साथ अपनी मुलाकात के दौरान क्यूबा की कलीसिया की भूमिका पर बात करते रहे थे जबकि फिदेल कास्त्रो, मार्क्सवाद एवं ख्रीस्तीय धर्म के बीच समानताओं पर बल देते रहे थे। हालांकि, सन्त पापा लिखते हैं कि "दोनों को एक दूसरे को सुनना पड़ा"।










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