2014-12-08 20:24:59

वर्ष ‘ब’ आगमन का दूसरा रविवार 7 दिसंबर, 20114


नबी इसायस 40 : 1-5, 9-11
2 पीटर, 3 : 8-15
संत मारकुस 1 : 1-8
जस्टिन तिर्की, ये.स.
दीपु की कहानी
मित्रो, आज आप लोगों को एक दीपू के बारे में बताता हूँ। दीपू तीसरे क्लास का विद्यार्थी था। दीपू के शिक्षक अपने छात्रों को बहुत प्यार किया करते थे। जब कोई क्लास में अनुपस्थित होता तो वे घर अवश्य ही फोन करके हाल-खबर पूछ लिया करते थे। एक दिन जब दीपू स्कूल नहीं आया तब उसके शिक्षक ने घर के मोबाइल फोन पर सम्पर्क किया। दूसरी ओर फोन पर से राजू की ही आवा़ज़ सुनाई पड़ी- "हैलो"। शिक्षक ने कहा, "घर में पिताजी हैं?" बालक ने जवाब दिया " जी हाँ "। तब शिक्षक ने कहा, "क्या वे उनसे बातें कर सकते हैं?"तब बालक ने कहा, "नहीँ। पिताजी को फुर्सत नहीं है।" तब शिक्षक ने कहा, "क्या वे उनकी माँ से बातें कर सकते हैं ?" तब बालक ने कहा, "माँ को भी फुर्सत नहीं है।" तब शिक्षक ने कहा, "घर में और कौन है?" तब दीपू ने कहा कि घर में एक पुलिस है। शिक्षक ने कहा क्या वह पुलिस से बातें कर सकते हैं तब दीपू ने कहा कि नहीं। शिक्षक ने कहा, " क्यों?" बालक ने कहा, "घर में आग लगी है और माता और पिता पुलिस के साथ हैं।" तब शिक्षक ने कहा कि "और तुम कहाँ हो, दीपु? " दीपु ने अपनी हँसी दबाते हुए कहा, " सर मैं छिपकर माता-पिता को देख रहा है। वे परेशान हैं, और मुझे खोज रहे हैं। शिक्षक ने कहा, "दीपू, तुम जहाँ भी छिपे हो वहाँ से बाहर निकलो, तमाशा बन्द करो और तुम्हारे माता-पिता के पास चले जाओ। उन्हें बहुत खुशी होगी। दीपू ने हँसते हुए कहा, "मैं अभी बाहर आता हूँ " । और उसने मोबाइल फोन रख दिया।

मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजन विधि पंचांग के आगमन के दूसरे सप्ताह के लिये प्रस्तावित सुसमचार के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहें। प्रभु आज हमें आमंत्रित कर रहे हैं कि हम बाहर आयें। हम उस आरामदायक जीवन को छोड़ कर बाहर आयें और रेगिस्तान की ओर चलें तब ही हमें पूर्ण खुशी की प्राप्ति हो पायेगी।

मित्रो, आइये आज हम आज के सुसमाचार पाठ को गौर से पढ़ें जिसे संत मारकुस के सुसमाचार के पहले अध्याय के 1 से 8 पदों से लिया गया है।

संत मारकुस 1, 1-8

1) ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह के सुसमाचार का प्रारम्भ।
2) नबी इसायस के ग्रन्थों में लिखा है- मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेजता हूँ। वह तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा।
3) निर्जन प्रदेश में पुकारने वाले की आवाज’- प्रभु का मार्ग तैयार करो; उसके पथ सीधे कर दो।
4) इसी के अनुसार योहन बपतिस्ता निर्जन प्रदेश में प्रकट हुआ, जो पापक्षमा के लिए पश्चात्ताप के बपतिस्मा का उपदेश देता था।
5) सारी यहूदिया और येरुसालेम के लोग योहन के पास आते और अपने पाप स्वीकार करते हुए यर्दन नदी में उस से बपतिस्मा ग्रहण करते थे।
6) योहन ऊँट के रोओं का कपड़ा पहने और कमर में चमड़े का पट्टा बाँधे रहता था। उसका भोजन टिड्डियाँ और वन का मधु था।
7) वह अपने उपदेश में कहा करता था, ''जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से अधिक शक्तिशाली हैं। मैं तो झुक कर उनके जूते का फ़ीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ।
8) मैंने तुम लोगों को जल से बपतिस्मा दिया है। वह तुम्हें पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देंगे।''


पश्चात्ताप

मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से पढ़ा है और इसके द्वारा आपको और परिवार के सब सदस्यों को आध्यात्मिक कृपायें प्राप्त हुई हैं। मित्रो, आपको मैं याद दिला दूँ कि इन दिनों हम लोग जन्म पर्व की तैयारी कर रहे हैं। और इस तैयारी के काल में प्रभु के दिव्य वचन आज हमें बुला रहे हैं ताकि हम पश्चात्ताप करें। मित्रो, अगर आपने ध्यान से सुना तो पाया होगा कि ईश्वर संत योहन के मुख से हमें इस बात को सुना रहे हैं कि यदि हम चाहते हैं कि प्रभु के दर्शन करें तो हमें चाहिये कि हम पश्चात्ताप करें। मित्रो, आपने ‘पश्चात्ताप’ शब्द को कई बार सुना होगा। साधारणतः ‘पश्चात्ताप’ करने का अर्थ है अपने किये बुरे कार्य या गलती के लिये दिल से दुःखी होना और भविष्य में फिर से वैसी गलती नहीं करने का मतलब बाँधना। आज प्रभु के स्वागत के लिये हमें पश्चात्ताप करने की आश्यकता है ताकि हम प्रभु के दर्शन करने के योग्य बन सकें।

मित्रो, आज मैं पश्चाताप के बारे में मनन-चिन्तन करते हुए आपको आमंत्रित करता हूँ कि आप इन तीन बातों पर मनन ध्यान कीजिये। एक समय था जब लोगों को ‘पश्चात्ताप’ शब्द के अर्थ को समझाने के लिये ग्रीक भाषा में वर्णित अर्थ को लेकर तीन बातों के बारे में विचार करने के लिये आमंत्रित किया जाता था।

इसके अनुसार पहली बात यह थी कि व्यक्ति अपने पाप या गलती को पहचानें। दूसरी है - गलती को स्वीकार करें और तीसरी बात वह है - नया जीवन प्राप्त करें।

मित्रो, ये तीनों बातें ह्रदय से पश्चात्ताप करने के लिये बहुत ज़रुरी हैं। इन तीनों बातों के बिना हम पश्चात्ताप की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मित्रो, अगर हम चाहते हैं कि हम ईश्वर के साथ जीवन बितायें; अगर हम चाहते हैं कि हमारा जीवन प्रसन्न रहे तो हमें चाहिये कि हम अपने जीवन पर ग़ौर करें । मित्रो, अगर हम चाहते हैं कि हमारा जीवन बोझों से दबा न रहे तो हम गौर करें इस बात की ओर कि हमने क्या कोई ग़लती की है और हम उससे बाहर नहीं आना चाहते हैं। क्या हम उस बालक दीपू की तरह किसी कोने में छिपे रहना चाहते हैं?

तैयारी करें
अगर ऐसा होता रहा तो हम कभी भी प्रसन्न होकर जीवन नहीं जी सकते हैं। सबसे पहली बात है येसु के आगमन की तैयारी के लिये वह है कि हम अपने आपको तैयार करें । अपने आप को तैयार करने का अर्थ है कि हम यह स्वीकार करें हम मानव हैं और हमने कभी न कभी कहीं न कहीं किसी बात के कारण ईश्वर से दूर भटक गये हैं। मित्रो, आज के दिन में प्रभु हमसे कह रहे हैं कि हम अपनी कमजोरियों को स्वीकार करे ।हम अपने पापों को स्वीकार करें। कई बार हमने लोगों को कहते सुना है कि मैंने सब कुछ जानता हूँ कई बार हमने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि दूसरे व्यक्ति ग़लती करते हैं मैं ठीक हूँ। आपने लोगों को यह कहते हुए भी सुना है कि मैं गलती कर ही नहीं सकता हूँ। मित्रो, विभिन्न रूपों में हम यही बताने का प्रयास करते हैं कि हम खुद को बेहतर नहीं बनाना चाहते हैं। हम यही कहते हैं कि हम जहाँ हैं वह ठीक है। मुझे बदलने की आवश्यकता नहीं है। हम यही कहना चाहते हैं कि हम प्रभु के स्वागत की तैयारी तो करेंगे पर अपने आप को नहीं बदलेंगे। हम पुराने मार्ग पर ही चलते रहेंगे।

नम्र बनें
दूसरी बात जिस पर इस आगमन काल में ध्यान देने की आवश्यकता है वह है कि हम अपनी गलतियों को स्वीकार करें। गलतियों को स्वीकार करने के लिये जिस गुण की आवश्यकता है वह नम्रता का गुण। नम्र बनना अर्थात् यह मान लेना कि गलती हो सकती है। और यह भी मान लेना कि हम इस गलती से एक नयी सबक ले सकते हैं और उसके लिये दिल से दुःखी होना। मित्रो, अगर हम दिल से दुःखी है कि हमने उन कार्यों को वैसा पूरा नहीं किया है जैसा कि ईश्वर हमसे चाहते हैं तो अवश्य ही ईश्वर के कृपा के बहुत करीब है।

इस प्रकार मित्रो, येसु के स्वागत की तैयारी के लिये पहली बात है कि हम अपनी गलती को पहचाने, दूसरी बात है कि हम उसे दिल से स्वीकार करें।


नया जीवन शुरु करें
और मित्रो, तीसरी बात है कि हम येसु के प्यार को पहचानते हुए एक नया जीवन शुरु करें। मित्रो, जब हम नये जीवन की बात करते हैं तो हम इस बात पर ध्यान दें कि हमारा पश्चात्ताप सिर्फ मौखिक न हो पर हम सही में अपने जीवन को बदलेँ। मित्रो, अगर कभी आपने अपने जीवन में इस बात पर अवश्य ही गौर किया होगा।जब एक व्यक्ति को ऐसा आभास हो जाता है कि उस पीना छोड़ देना चाहिये तो उसे कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वह प्रयास करता है फिर बुरी लत में गिर जाता है। वह फिर वायदे करता है कसमें खाता है कि वह ऐसा नहीं करेगा पर वह फिर गिर जाता है। लोग भी उसकी हँसी उड़ाते हैं कि उसने अपना वादा तोड़ दिया है।वह निराश भी होता है और कहता है कि वह इसे नहीं छोड़ पायेगा। उसका अनुभव होता है कि रेगिस्तान में यात्रा कर रहा है। जब वह बुरी बातों को छोड़ने का प्रयास करता है तो उसे लगता है कि अकेला हो गया है और अब उससे आगे बढ़ा नहीं जायेगा। मित्रो, येसु की ओर लौट जाने का मार्ग उतना आसान नहीं है पर येसु की ओर मुढ़कर चलने की खुशी अपार है।

मैने ऐसे कई लोगों को देखा है जिन्होंने यह स्वीकार किया कि उनके ग़लत जीवन से जीवन की खुशी न उसके जीवन को मिल रही है न ही उसके परिवार को न ही उसके अगल-बगल में जीने वालों को। और तब उसने अपने जीवन को ही बदल डाला और पूर्ण रुप से अपने जीवन को येसु के लिये सौंप दिया। येसु की तरफ लौटते समय व्यक्ति को अपार कष्ट का सामना करना पड़ता है उसका मार्ग काँटो पर चलने के समान हो जाता है पर जब वह अपनी बुरी आदतों पर विजयी हो जाता है तो येसु उसे जीवन की वह खुशी प्रदान करते हैं जो पापमय जीवन व्यतीत कर हम कदापि प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

मित्रो, कई बार हम यह भी सोचने लगते हैं कि हमें पश्चात्ताप करने की कोई आवश्यता ही नहीं है क्योंकि हम किसी बुरी आदत में नहीं फँसे हैं। मित्रो, प्रभु की ओर मुढ़ने के लिये यह आवश्यक नहीं है कि हम पापी हों या महापापी हों। आज प्रभु हमें उन छोटी-छोटी कमजोरियों से दूर करना चाहते हैं जो हमारी खुशी को हमसे छीन लेतीं हैं। शायद हम किसी को किसी कारण से देखऩा पसन्द न करते हों शायद हम किसी को क्षमा देना नहीं चाहते हों हम किसी की अच्छाइयों को खुलकर स्वीकार नहीं करते हों शायद हम भला कार्य करते-करते ऊब जाते हों, शायद हम कहते हों कि क्यों केवल मैं भला कार्य करुँ।



अच्छाई को मौका दें

मित्रो, आज हमें प्रभु योहन बपतिस्ता के मुख से प्रभु की पुकार को हमारे कानों तक ला रहे हैं और कह रहे हैं " प्रभु का मार्ग तैयार करो " । अर्थात् अपने दिल को साफ़ करो पुराने बुरे रास्ते का त्याग करो और उस रास्ते में चलने को तैयार हो जाओ जहाँ चलने से लगता है कि शायद हम अकेले हैं पर वही प्रभु का मार्ग हैं। मित्रो, आइये आज हम अपने दिल में झाँक कर देखें। हमारे दिल को हमसे अच्छा और कोई नहीं जानता है। हम अपनी ग़लतियों को पहचानें हम उन्हें ईश्वर के सामने स्वीकार करें और एक नया जीवन शुरु करें। मित्रो, कई बार बुरी बातों को करके जानना चाहते हैं और उसके लिये ‘ट्राई’ करते हैं । हम आगमन में प्रभु के आने की राह देख रहे हैं क्या आप प्रभु के लिये प्रभु की ओर लौटने के लिये जीवन की कोई एक अच्छाई को ' ट्राई ' करेंगे। क्या आप क्षमा करेंगे क्या आप नम्र बनेंगे ? क्या आप मेल-मिलाप करेंगे ? क्या आप दिल से अपने मित्र की प्रशंसा करेंगेऍ मित्रो, अच्छाई करने में थोड़ी- सी तकलीफ़ अवश्य है पर इसके वरदान अपार हैं।















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