2014-11-29 19:22:40

पवित्र आत्मा की शक्ति से ही सच्ची एकता और शांति


इस्ताम्बुल, शनिवार 29 नवम्बर, 2014 (सेदोक, वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने तुर्की की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन इस्ताम्बुल के पवित्र आत्मा महागिरजाघर में यूखरिस्तीय बलिदान अर्पित कहते हुए पवित्र आत्मा की शक्ति पर बल दिया।

संत पापा ने प्रेरित संत पौल की बातों का स्मरण दिलाते हुए कहा कि संत पौल ने कुरिन्थियों को लिख अपने पत्र कहते हैं कि येसु को कोई भी अपना प्रभु नहीं मान सकता जब तक कि वह पवित्र आत्मा की शक्ति प्राप्त न कर ले।

उन्होंने कहा कि पवित्र आत्मा ही हमें प्रेरित करता है इसीलिये हम प्रार्थना कर पाते हैं। यह पवित्र आत्मा की प्रेरणा और शक्ति का फल है कि हम अपने स्वार्थपूर्ण विचार से बाहर निकल पाते, दूसरों के पास जाते, उनकी बातों को सुनते और उनकी मदद करते हैं।

संत पापा ने कहा कि जब हम पाते हैं कि हमारे दिल में दूसरों को क्षमा देने की शक्ति आ गयी है, हम उन्हें भी प्यार करने लगते हैं जो हमें प्यार नहीं करता है तो निश्चय मानें की पवित्र आत्मा की शक्ति हममें कार्यरत है।

जब हम मात्र शब्दों से किसी को प्यार नहीं करते पर उन्हें अपने भाई-बहनों की तरह स्नेह से गले लगाते हैं और यह उनके दिल को छू जाता है तो समझिये कि पवित्र आत्मा आपमें सक्रिय है।

संत पापा ने कहा कई बार पवित्र आत्मा कलीसिया में विभिन्न वरदानों के रूप में दिखाई पड़ता है और जिससे कई बार अव्यवस्था भी आ जाती है। पर जब कलीसिया में पवित्र आत्मा कार्यरत हो तो यह कलीसिया को समृद्ध बनाता है क्योंकि पवित्र आत्मा एकता का आत्मा है। एकता का अर्थ एकरूपता नहीं होता।
सच बात तो यह है कि सिर्फ़ पवित्र आत्मा ही विभिन्नता या बहुरूपता प्रदान करता है और इन बहुरूपताओं में एकता भी वही स्थापित करता है।

जब लोग विभिन्नतायें पैदा करते हैं पर एक-दूसरे के लिये अपना दरवाज़ा बन्द कर लेते हैं तो वे सही में विभाजन ले आते हैं। दूसरी ओर जब हम अपनी शक्ति से एकता स्थापित करना चाहते हैं तब भी हम स्वतः एकरूपता की ओर बढ़ने लगते हैं। इसलिये आज ज़रूरत है पवित्र आत्मा की शक्ति पर भरोसा करने की ताकि कलीसिया के बीच जितनी भी विभन्नता क्यों ने आये विभाजन या झगड़े कदापि नहीं होंगे।

संत पापा ने कहा कि हम तब ही येसु के सच्चे चेले और पक्के मिशनरी बनते हैं जब अपने को बचाने के बदले अपना सबकुछ पवित्र आत्मा के हाथ में सौप देते हैं। हमारा अशांत स्वभाव तक सामने आता है जब हम महत्वकाँक्षी और स्वार्थी नज़र आते। ऐसे मनोभाव मन में रखने से न तो हम दूसरों को समझ सकते हैं न ही वार्तालाप का द्वार ही खोल सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि विश्वास और भ्रातृत्व भाव की तीर्थयात्रा में हम विनम्रतापूर्वक अपने को पवित्र आत्मा के हाथ में सौंप दें ताकि हम नासमझी, विभाजन और असहमति पर विजय प्राप्त करे और एकता और शांति के विश्वसनीय चिह्न बनें।










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