वाटिकन सिटी, शुक्रवार 28 नवम्बर, 2014 (सेदोक,वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने तुर्की की
अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान 28 नवम्बर शुक्रवार को अंकारा में विभिन्न धार्मिक नेताओं
को संबोधित किया।
संत पापा ने कहा कि संत पापा का अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान
विभिन्न धार्मिक तथा राजनीतिक नेताओं से खुले दिल से मिलना एक अहम् हिस्सा रहा है इसके
बिना प्रेरितिक यात्रा अधुरी रह जाती।
संत पापा ने कहा पूजनीय पूर्वाधिकारियों
की पदचिह्नों पर चलते हुए मुझे आपलोगों से मुलाक़ात करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।
सच तो यह है कि धर्माधिकारियों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता और वार्ता बहुत अहम बात है।
उनका मिलना इस बात को दिखलाता है कि दूसरे समुदायों के साथ भिन्नताओं के बावजूद सम्मान
और मैत्रीभाव से मिलना संभव है।
जब हम संकट की स्थिति से गुजरते हैं विशेष करके
विश्व के कुछ भागों की आज जो भयानक स्थिति है, तो इस तरह की मुलाक़ात और ही महत्वपूर्ण
हो जाती है।
युद्ध से निर्दोष मृत्यु के शिकार हो जाते हैं और इसके परिणाम भयानक
होते हैं जो अन्तरसामुदायिक तथा अन्तरधार्मिक झगड़े पैदा करते हैं तथा लाखों को भुखमरी
और गरीबी की कग़ार पर लाकर छोड़ देते हैं। इससे पर्यावरण जल वायु तथा ज़मीन भी दूषित
होता है।
संत पापा ने कहा कि मध्यपूर्वी राष्ट्रों विशेष करके ईराक और सीरिया
की स्थिति भयावह है। इससे बच्चे, माताये तथा बुजूर्ग, सब प्रभावित हैं और हर प्रकार की
हिंसा के शिकार हो रहे हैं।
स्थिति इसलिये भी भयानक है क्योंकि इन हिंसाओं के
पीछे अतिवादी तथा उग्रवादी दल सक्रिय है जो दूसरे समुदायों विशेष करके ख्रीस्तीयों तथा
याज़िदियों पर बर्बरतापूर्ण हिंसा का कहर बरपा रहा है बस उनकी धार्मिक और जातीय पहचान
के कारण।
संत पापा ने कहा कि हिंसा के कारण एक ओर तो उन्हें अपने घरों से बलपूर्वक
निकाल दिया गया दूसरी ओर कई पवित्र स्थलों तथा धार्मिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक महत्व
के पुण्य स्थलों को भी ध्वस्त कर दिया गया है।
धार्मिक नेताओं के रूप में यह
हमारा परम दायित्व है कि हम मानव मर्यादा और मानवाधिकार के विरुद्ध होने वाली हिंसा का
कड़ा विरोध करें। मानव जीवन सृष्टिकर्ता ईश्वर का वरदान है इसलिये यह पवित्र है।
कोई
भी हिंसा जो धार्मिक को अपना आधार बनाती है उसका विरोध किया जाना चाहिये क्योंकि सर्वशक्तिमान
शांति और जीवन का ईश्वर है। पूरी दुनिया चाहती है कि जो ईश्वर की पूजा करते हैं वे शांति
के लिये जीयें और दूसरों को, चाहे वे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, संस्कृति या वैचारिक भिन्नतावाले
क्यों न हों उनका सम्मान भाई-बहनों की तरह करें।
संत पापा ने कहा कि एक ओर तो
हम हिंसा का कड़ा विरोध करें तो दूसरी ओर इसके समाधान के भी उपाय खोजें। इसके लिये ज़रूरी
है सरकार, राजनीतिक और धार्मिक नेतागण नेक दिल के लोग तथा समाज के प्रतिनिधि एक साथ मिलकर
कार्य करें।
संत पापा ने कहा कि इस संबंध में विभिन्न धर्मों के लोग अपने परंपरागत
धार्मिक मूल्यों के द्वारा अपना योगदान दे सकते हैं।
ईसाई और इस्लाम कई बातों
को एक तरह से समझते हैं जैसे एकमात्र दयालु ईश्वर पर विश्वास हमारे पूर्वज अब्राहम के
प्रति सम्मान, प्रार्थना, दान-पुण्य, उपवास। इन बातों के प्रति वफ़ादार रह करके हम मानव
की मर्यादा और भ्रातृत्व के लिये आधार प्रदान कर सकते हैं। संत पापा ने कहा कि सामुहिक
आध्यात्मिक विरासत अन्तरधार्मिक वार्ता के द्वारा हमारे नैतिक मूल्यों, शांति और स्वतंत्रता
को मजबूत करने में योगदान दे सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इन बातों के लिये वे
तुर्की की जनता मुस्लिमों तथा ईसाइयों दोनों की सराहना करते हैं। तुर्की के लोगों ने
शरणार्थियों की दिल खोल करके मदद की है जो एक स्पष्ट उदाहरण है कि किस तरह से ज़रूरतमंदों
की मदद एक साथ मिल कर किया जा सकता है।
पोप ने कहा कि उनकी हार्दिक इच्छा है
कि दोनों समुदायों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित रहे ताकि इससे सबको लाभ हो तथा
आपसी वार्तालाप संबंधी जो भी कदम उठायें जायें उससे शांति, सुरक्षा और सबका विकास संभव
हो।