पूरी दुनिया को है सुसमाचार के आनन्द को पाने का अधिकार
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार 27 नवम्बर, 2014 (सेदोक,वीआर) संत पापा फ्राँसिस पौलिन परिवार
के सौ वर्ष होने के अवसर पर रोम आये तीर्थयात्रियों से मुलाक़ात की और उन्हें संबोधित
किया।
संत पापा ने कहा कि शतवर्षीय समारोह समर्पित जीवन के नवीनीकरण का उत्तम
समय है। पौलिन धर्मसमाज के लिये अपने प्रेरितिक कार्य विशेष करके प्रकाशन और सम्प्रेषण
के विभिन्न आधुनिक संसाधनों द्वारा ख्रीस्तीय विश्वास को प्रकट करने के का भी सुअवसर
है।
संत पापा ने कहा कि ' आपको मुफ़्त में मिला है मुफ़्त में इस दे दो ' ये
दिव्य वचन प्रभु येसु के वचन हैं जिसमें सुसमाचार प्रचार का रहस्य छिपा हुआ है। इसका
अर्थ है कि हमें सुसमाचार को, सुसमाचार के समान प्रचार करना है।
यह मुफ़्त है
और इसकी खुशी में भी शुद्ध प्यार है। सुसमाचार के आनन्द को जिसने अनुभव किया है वही इसका
सच्चा प्रचारक हो सकता है क्योंकि अच्छाई चाहती है कि इसका प्रचार हो और इस अच्छाई की
नींव गहरी होती जाये और इसका विस्तार भी होता रहे।
संत पापा ने कहा कि वे पौलिन
धर्मसमाजियों को प्रोत्साहन देना चाहते हैं ताकि वे अपने संस्थापक फादर अल्बेरटिन के
समान अपने क्षितिज को विस्तार करें।
उन्होंने कहा कि विश्व के लोगों को यह अधिकार
है कि वे सुसमाचार को जाने और उसे स्वीकार करें और प्रत्येक ख्रीस्तीय का यह दायित्व
है कि वह उसका प्रचार करे।
संत पापा ने कहा कि धर्मसमाजियों की उपस्थिति आनन्द
का प्रतीक है। यह एक ऐसा आनन्द है जो ईश्वर का आत्मीय अनुभव करने से प्राप्त होता है।
यह एक ऐसा आनन्द है जिसे पाने के बाद हम और किसी दूसरे आनन्द की ओर नहीं देखते हैं।
संत पापा ने कहा कि आनन्द का एक दूसरा पक्ष यह है कि धर्मसमाजी सच्चा आनन्द अपने
सामुदायिक जीवन में करते हैं कलीसिया की सेवा में करते हैं और उनकी सेवा में जो सबसे
कमजोर और ज़रूरतमंद हैं।
धन्य जेम्स अल्बेरियोने को अपने मिशन के लिये प्रेरणा
प्रेरित संत पौल के उस वाक्यांश से मिली थी जिसमें संत पौल ने कुरिंथियों को लिखे पत्र
में कहते हैं कि ' धिक्कार मुझे यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करुँ ' । आज दुनिया के
कई लोग इस बात का इंतज़ार कर रहे हैं कि उन्हें कोई सुसमाचार सुनाये।
संत पापा
ने कहा कि आज ज़रूरत है नये रास्तों को खोजने की ताकि विभिन्न संस्कृतियों तथा समुदायों
में सुसमाचार का प्रचार किया जा सके।
संत पापा ने कहा कि सुसमाचार प्रचार करने
का मिशन तब ही संभव होगा जब हम व्यक्तिगत तथा सामुदायिक रूप से ईश्वर की ओर लौटेंगे।
जब हमारा ह्रदय पूर्ण रूप से कृपाओं को पाने के लिये तैयार होगा और हम शांति और आशा की
मानव ज़रूरत को पूरा करने के लिये तत्पर होंगे।