2014-11-26 14:56:33

शांति के लिये भ्रातृत्व भाव निहायत ज़रूरी


स्ट्रासबर्ग, फ्राँस बुधवार 26 नवम्बर, 2014 (सीएनए) संत पापा फ्राँसिस ने कहा भाईचारा और पारस्पारिक सेवा भावना से ही हम झगड़ों का न्यायपूर्ण समाधान कर सकते हैं।

उक्त बात संत पापा ने उस समय कही जब उन्होंने यूरोपीय कौंसिल को मंगलवार 25 नवम्बर को फ्राँस के स्ट्रासबर्ग में संबोधित किया।

उन्होंने कहा कि यूरोपीय कौंसिल और ख्रीस्तीयता दोनों को इस क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देना है। शांति का शाही मार्ग और दो विश्व युद्धों की पुनरावृत्ति से बचने के लिये यह आवश्यक है कि हम एक-दूसरे को बैरियों की तरह न देखें पर ठीक इसके विपरीत हमें एक दूसरे के भाई-बहन रूप में देखें और उन्हें गले लगायें।

शांति के प्राप्ति के लिये जरूरत है डर पैदा करने वाली या ऐसे लोगों को दरकिनार करने की प्रवृत्ति जो हमसे अलग सोचने की " टकराव की संस्कृति " से बचना।

उन्होंने कहा कि यह सच है कि टकराव या मतान्तर को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते, न ही इसे छिपा सकते हैं पर हमें इसका सामना करना है। पर ये टकराव हमें पंगु बनाते, हमारी दृष्टि को धुँधला करते और हमारी क्षितिज सिकुड़ जाती तथा हम सच्चाई के मात्र एक भाग को जान पाते हैं।

संत पापा ने कहा कि ऐसे समय में हम आगे नहीं बढ़ पाते, हमारी एकता कमजोर हो जाती, इतिहास ठहर जाती और हम ऐसे झगड़ों में उलझा दिये जाते जो अर्थहीन है।

मालूम हो कि स्ट्रासबर्ग में यूरोपीय कौंसिल का जो मुख्यालय है जो एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो मानवाधिकार, भ्रष्टाचार और आतंकवाद से लड़ने तथा कानूनी सुधार के कार्य करता है।

सभा में 47 सदस्य देशों के प्रतिनिधि, यूरोपीय मानवाधिकार अदालत के न्यायधीश और यूरोपीय कौंसिल के अन्य समितियों के सदस्य भी उपस्थित थे।
संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय दर्शन के अनुसार शांति ईश्वर का वरदान है तथा स्वतंत्र और विवेकपूर्ण मानव क्रिया है जो प्रेम और सत्य में सार्वजनिक हित के लक्ष्य के लिये कार्य करता है।
संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय धर्म के अनुसार विश्वास और विवेक तथा धर्म और समाज से अपेक्षा की जाती है कि वह एक-दूसरे को आलोकित करे, मदद करे तथा वैचारिक अतिवादिता को परिशुद्ध करे।











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