वाटिकन सिटी, शनिवार, 22 नवम्बर 2014 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार 22 नवम्बर
को वाटिकन स्थित पौल षष्टम सभागार में मिशनरी के सहयोग हेतु राष्ट्रीय कार्यालय द्वारा
आयोजित इटली के धर्माध्यक्षीय सम्मेलन तथा परमधर्मपीठीय मिशन सोसाईटी के संयुक्त सम्मेलन
के सदस्यों से मुलाकात की।
इटली के चौथे राष्ट्रीय मिशनरी सम्मेलन की विषयवस्तु
है, ″उठो निन्हवे जाओ।″ संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा कि सम्मेलन की विषय
वस्तु प्रभु द्वारा नबी जोना को निन्हवे प्रेषित किये जाने पर आधारित है। नबी जोना उस
बड़े शहर निन्हवे जाने से घबराने के कारण, आरम्भ में ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया
किन्तु बाद में वह गया और निन्हवे के लोगों ने मन-परिवर्तन किया। संत पापा ने कहा कि
मिशनरियों की बुलाहट सभी पीढ़ियों में हुई है।
संत पापा ने अपने प्रेरितिक प्रबोधन
इवन्जेली गौदियुम की याद दिलाते हुए कहा कि उसमें कलीसिया से बाहर आने की बात पर जोर
दी गयी है। जो व्यक्ति मुलाकात करने से नहीं डरता वही बाहर आ सकता है तथा सुसमाचार के
आनन्द को बांट सकता है।
संत पापा ने इटली के चौथे राष्ट्रीय मिशनरी सम्मेलन को
उनके मिशनरी मनोभाव के लिए उन्हें धन्यवाद दिया तथा उस मनोभाव को बनाये रखने का प्रोत्साहन
दिया। उन्होंने कहा कि प्रेरिताई ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों का कर्तव्य है।
संत
पापा ने इटली उन पुरोहितों तथा लोकधर्मियों की सराहना की जो दुनिया के विभिन्न देशों
में मिशनरी बन कर गरीबों एवं असहाय लोगों की सेवा द्वार, कलीसिया के निर्माण का कार्य
कर रहे हैं। यह कलीसिया के लिए एक बड़ा उपहार है। सुसमाचार द्वारा दुनिया को बदलने की
आशा न खोयें। हम यह याद रखें कि कई लोग हमारी दया तथा सहानुभूति की आस में हैं।
संत
पापा ने उपस्थित लोगों से अपील की कि वे मिशनरी मनोभाव में बढ़े, अपने समर्पण दृढ़ बने
रहें। उन्होंने कहा कि बाहर जाने का अर्थ ग़रीबों के प्रति उदासीनता, युद्ध, हिंसा,
वयोवृद्धों का परित्याग, जरूरतमंदों की अनदेखी तथा बच्चों से अपने को अलग रखना नहीं है।
बाहर निकलने का अर्थ है शांति का वाहक बनना। उस शांति को बांटना जिसे हमें प्रभु रोज
प्रदान करते हैं। एक मिशनरी कभी शांति नहीं खोता है, ऐसे समय में भी जब उसे कठिनाईयों
एवं अत्याचारों का सामना करना पड़े।
संत पापा ने उन्हें मिशन के उत्साह में बढ़ने
तथा ख्रीस्त के प्रेम एवं करुणा का साक्ष्य देने की शुभकामनाएँ अर्पित की।