प्रज्ञा ग्रंथ 6: 12-16
थेसलनीकियों के नाम पत्र 4: 13-18
संत मत्ती 25: 1-13 जस्टिन तिर्की, ये.स.
कछुआ और खरगोश मित्रो, आज आप
लागों को एक कछुए और एक खरगोश की कहानी बतलाता हूँ जिसे मैंने उस समय पढ़ी थी जब मैं
पाँचवी कक्षा का विद्यार्थी था। एक जंगल में एक खरगोश और एक कछुआ साथ-साथ रहा करते थे।
खरगोश को इस बात का घमंड था कि वह तेज दौड़ सकता है। कछुवा बेचारा तेज नहीं चल सकता था
अतः खरगोश सदा ही उसकी हँसी उड़ाया करता था। एक दिन खरगोश ने एक प्रतियोगिता का आयोजन
किया। कछुए ने खरगोश की बात मान ली। प्रतियोगिता में करीव एक किलोमीटर पैदल चलना था।
प्रतियोगिता में एक किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित पीपल के पेड़ के पास पहले पहुँचने वाला
विजयी होगा। रास्ते में एक नदी भी थी । जब प्रतियोगिता शुरु हुई तो खरगोश अपनी जीत के
प्रति पूरी तरह से आशान्वित था । प्रतियोगिता शुरु होते ही वह कछुवे से बहुत आगे निकल
गया। कछुवा बेचारा धीरे-धीरे चलता रहा। उसे विश्वास था कि वह उस दूरी को अपने समय से
तय कर लेगा। उधर खरगोश आधी दूरी तय करने के बाद सोचने लगा कि इतनी जल्दी प्रतियोगिता
जीत कर उसे क्या मिलेगा। इसलिये उसने आधी दूरी तय करने के बाद नदी पर बनी पुल के नीचे
चला गया और सुस्ताने लगा। गर्मी का दिन होने के कारण पुल के नीचे बैठने से उसे नींद
आ गयी। उसे पता ही न चला की वहाँ झपकी लेते-लेते उसने जम कर एक नींद पूरी कर ली थी। जब
उसकी नींद खुली तो वह पीपल पेड़ की ओर देखा तो पाया कि कछुआ पीपल के लक्ष्य तक पहुचने
ही वाला है। वह अपने पूरे दमखम के साथ दौड़ने लगा। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कछुवे
ने प्रतियोगिता जीत ली थी। खरगोश बहुत निराश हुआ पर ‘अब पछताये क्या होत जब चिड़िया चुग
गयी खेत’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। वह बहुत पछताया पर उसकी हार हो चुकी थी । इतिहास
में पहली बार कछुआ जीत गया था और खरगोश जो कि विश्व में अपने तेज दौड़ने के लिये जाना
जाता है पराजित हो गया था। लगातार तैयार रहने वाले सतत् प्रयास करने वाले और नम्रता पूर्वक
अपने कर्त्तव्य काम को करने वाले ही जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं। मित्रो, रविवारीय
आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत काथलिक पूजन विधि पंचांग के वर्ष ‘अ’ के बत्तीसवें
रविवार के लिये प्रस्तावित सुसमाचार पाठ के आधार पर हम मनन-चिन्तन कर रहे हैं। श्रोताओ
प्रभु आज हमें यही बताना चाहते है कि हम सदा तैयार रहें । प्रभु हमें बताना चाहते हैं
कि हम अपने बुद्धि पर नहीं पर ईश्वर की बुद्धि पर नाज़ करें । सदा तैयार रहें और अपना
कर्त्तव्य काम बखूबी करें तब इसका पुरस्कार हमारे लिये अनन्त शांति होगी।अगर हम अपने
आप पर बहुत भरोसा करते हैं औऱ प्रभु की शक्ति को नज़रअंदाज़ कर देते हैं तो हम निश्चय
ही जीवन के असल पुरस्कार से वंचित रह जायेंगे। श्रोताओ आज हम संत मत्ती के सुसमाचार
के अध्याय 25 के 1 से 13 पदों को सुनें जिसे हम दस कुँवारियों के दृष्टांत के नाम से
जानते हैं। संत मत्ती 25, 1-13 1) उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के
सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं। 2) उन में से
पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार। 3) नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं। 4)
समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्पियों में तेल भी लायीं। 5) दूल्हे के आने में
देर हो जाने पर ऊँघने लगीं और सो गयीं। 6) आधी रात को आवाज’ आयी, 'देखो, दूल्हा
आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।' 7) तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने
लगीं। 8) नासमझ कुँवारियों ने समझदारों से कहा, 'अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो,
क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं'। 9) समझदारों ने उत्तर दिया, 'क्या जाने, कहीं
हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो, तुम लोग दुकान जा कर अपने लिए ख़रीद लो।'
10) वे तेल ख़रीदने गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ
विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया। 11) बाद में शेष कुँवारियाँ भी
आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए'। 12) इस पर उसने उत्तर दिया,
'मैं तुम से यह कहता हूँ- मैं तुम्हें नहीं जानता'। 13) इसलिए जागते रहो, क्योंकि
तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी। जागते रहो मित्रो, मेरा पूरा विश्वास
है कि आपने प्रभु के दिव्य वचनों को ध्यान से पढ़ा है और इसके द्वारा आपको और आपके परिवार
के सभी सदस्यों को आध्यात्मिक लाभ हुए हैं।मैंने भी इस घटना के बारे में कई बार सुना
है पर आज जब हमने इस घटना के बारे में सुना तो मुझे जिस बात ने प्रभावित किया वह है –
"जागते रहो क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते न ही वह घड़ी।" मित्रो, आज प्रभु हमें बताना
चाहते हैं कि हम तैयार रहें हम जागरुक रहें हमें इस बात का ध्यान रखें कि हमारा जीवन
सही रास्ते पर है। प्रभु हमें बतलाना चाहते हैं कि यदि हम चाहते हैं कि अपने जीवन में
प्रसन्न रहें और अंतिम दिन में भी प्रसन्नतापूर्वक इस दुनिया से विदा लें तो हमें चाहिये
कि हम अपने आपको सदा तैयार रखें। नासमझ कुँवारियाँ मित्रो, यह बात कितना सही है
कि हम सभी जानते हैं कि एक दिन हमें इस दुनिया से विदा लेना है। हम यह भी जानते हैं कि
किन बातों या कार्यों को करने से हमें वास्तविक खुशी प्राप्त होगी फिर हम कई बार ऐसा
जीते हैं मानों हम इस दुनिया के स्थायी निवासी हों। प्रभु हमें आज इस बात को याद कराना
चाहते हैं कि हमारा वास्तविक घर स्वर्गधाम है। इस दुनिया में हम एक तीर्थयात्री की तरह
आगे बढ़ते हैं। हम इस जीवन में अपने आपको तैयार करते हैं ताकि हम नये जीवन में पूर्ण
संतुष्टि के साथ प्रवेश कर सकें। प्रभु को यह बात मालूम है कि मानव अपनी कमजोरियों के
कारण या अपनी लापरवाही के कारण इस बात को भूल सकता है या भूल जाता है और प्रभु के पास
लौटने की तैयारी को स्थगित कर सकता है। कई बार इस बात को आम लोगों को समझाना कठिन होता
है इसलिये प्रभु ने दस कुँवारियों का दृष्टांत बतलाया। उन पाँच कुंवारियों को जिन्होंने
दुल्हे से मिलने की पूरी तैयारी की थी येसु ने बुद्धिमान या समझदार कुँवारी कहा तो उन
पाँच कुँवारियों को जिन्होंने अपने साथ कुप्पी में अलग से तेल नहीं लाया उन्हें मूर्ख
या नासमझ कुँवारियाँ कहा है। मित्रो, जब इस दृष्टांत को सुनते हैं तो हम सहज ही कह
बैठते हैं कि क्यों पाँच कुँवारियों न अपने साथ कुप्पी में तेल नहीं लाया वे तो निश्चय
ही मूर्ख कुँवारियाँ थी क्योंकि उन्हें मालूम नहीं था कि दुल्हा कब लौटेंगे। यह साफ दिखाता
है कि उन्हें दीये जलाये रखने की कोई चिंता नहीं थी। इसका अर्थ यही है कि उनका दीया कभी
भी बुझ सकता था और जब दूल्हा आता तो उन्हें बिना तैयारी के पाता। तेल का अभाव मित्रो,
क्या कभी आपने ग़ौर किया है कि दीये में तेल का अभाव होना या नहीं का क्या अर्थ है। इसका
अर्थ है कि हम आध्यात्मिक रूप से ईश्वर के आगमन के लिये तैयार नहीं हैं। आध्यात्मिक
रूप से तैयार नहीं होने का अर्थ है उन बातों पर ध्यान न देना जिससे हमारे जीवन को आध्यात्मिक
खुशी मिलती हो।अब हम यह भी पूछेंगे कि हमें आध्यात्मिक रूप से खुशी और संतुष्टि कहाँ
मिलती है। निश्चिय ही ख्रीस्तीयों को आध्यात्मिक खुशी तब प्राप्त होती है जब एक ख्रीस्तीय
ईश्वर को प्यार करता है और ईश्वर के अपने समान प्यार करता है। ईश्वर को प्रेम करने वाले
ईश्वर से भय खाते हैं वे उन भली, अच्छी और सच्ची बातों के अनुसार अपना जीवन जीते हैं
जिससे जीवन की सच्ची खुशी प्राप्त होती है। यह सत्य है हर मानव के दिल में एक आत्मा निवास
करता है जो हर कार्य करने के पूर्व या किसी भी निर्णय पर पहुँचने के पूर्व हमारे दिल
में आवाज़ देता है और सही कार्य को चुनने की प्रेरणा देता है। वह हमारे दीपक में तेल
उँडेलता रहता है और हम जो भी भला और अच्छा कार्य करते हैं जाने-अनजाने उसी की सहायता
और प्रेरणा से करते हैं । तैयारियाँ स्थगित न करें मित्रो, हम मनुष्य अपनी मंजिल
तक पहुँचने की राह में आने वाले प्रलोभनों का आसानी से शिकार हो जाता है। मानव सोचता
है कि तैयारी का समय अभी आया नहीं है। वह प्रभु से मिलने की तैयारी उस समय करेगा जब वह
बूढ़ा हो जायेगा, जब वह बीमार होगा यह जब वह मृत्यु शय्या पर होगा। सत्य तो यह है कि
अगर हमने अपने जीवन में येसु से मिलने की तैयारी रोज दिन नहीं करते तो बाद में तैयारी
करना ही भूल जाते हैं। येसु से मिलने की तैयारी एक दिन का कार्य नहीं है यह तो हमारा
दैनिक जीवन है जिसमें हम उन बातों को चुनते हैं जो हमारी बातों को हमारे कार्यों को हमारे
आध्यात्मिक जीवन को व्यवस्थित करते हैं। जो व्यक्ति येसु के पास लौटने के लिये तैयार
रहता है वह उस समय प्रसन्न रहता है जब वह कृपाओं से पूर्ण है और उस समय भी खुश रहता है
जब वह चुनौतियों से होकर गुज़र रहा हो। किसी व्यक्ति ने कहा है कि संतुष्टिपूर्ण जीवन
जीने के लिये हमें चाहिये कि हम रोज दिन ईश्वर के वरदानों की गिनती करें, दूसरों की मदद
करें, उनपर दया दिखायें, क्षमा करें, अपना समय सुमित्रों और परिवार के सदस्यों के साथ
बितायें, अपने स्वास्थ्य का ख़्याल रखें और सदा तैयार रहें। पवित्र आत्मा की आवाज़
सुनें मित्रो, ऐसा करना आसान होगा जब हम हम उन बुद्धिमान कुँवारियों की तरह अपने साथ
कुप्पी में तेल रखेंगे। कुप्पी में तेल रखने का अर्थ है पवित्र आत्मा की आवाज़ को सुनेंगे
येसु का इंतज़ार करेंगे और अपने जीवन में उस प्रभु से मिलने को लालायित रहेंगे जिन्होंने
प्रेम, दया, क्षमा, मेल-मिलाप और मुक्ति के लिये कार्य लगातार किया। इन गुणों में से
किसी एक गुण को अगर हमने वफ़ादारीपूर्वक करना अपने जीवन में जारी रखा तो निश्चय ही ईश्वर
की नज़र में समझदार हैं और पूर्णतः उस सुख के अधिकारी हैं जिसका अंत नहीं।