2014-11-19 16:23:56

वर्ष ‘अ’ का इकतीसवाँ रविवार, 30 अक्तूबर, 2014


योब 19: 1-23-27
प्रेरित चरित 10: 34-43
संत मत्ती 5: 1-12
जस्टिन तिर्की,ये.स.

मारकुस की कहानी
मित्रो, आज आपको एक बूढ़े व्यक्ति के बारे में बताता हूँ जिनका नाम था मारकुस। उन्होंने जीवनभर एक गाँव में एक शिक्षक का किया और जब वह सेवानिवृत हो गया तब उसक परिवार के सदस्यों ने कहा कि वह अपना समय घर में बिताये। वह सारा समय आराम करता रहता था । एक दिन उसने अपने बेटे से कहा कि उसे घर में अकेला रहना अच्छा नहीं लगता है तब उसके बेटे ने कहा कि वह जंगल जाये और जलावन की लकड़ी लाये। बूढ़ा मारकुस को यह काम पसन्द आया। वह रोज दिन जलावन की लकड़ी लाने जंगलचला जाता था। लकड़ी जमा करता उसे बाँधता अपने कंधे में ढोकर उसे घर लाता था। कुछ दिन के बाद उसे उस लकड़ी लाने के कार्य से भी परेशानी होने लगी। जब वह लकड़ी लाने जाता और उस बाँधकर अपने कंधे में रखने का प्रयास करता तो लकड़ी के भारी बोझ को संभाल नहीं पाता था तब भगवान से सिर्फ एक प्रार्थना करता। हे भगवान, तू अपने दूत को भेज दे ताकि वह आये और मुझे स्वर्ग ले जाये। बस यही उसकी दिनचर्या बन गयी थी । वह लकड़ी लाने जाता, लकड़ी जमा करता, उसे बाँधता और जब लकड़ी का बोझ भारी लगता तो भगवान से प्रार्थना करता कि " हे प्रभु, आप अपना दूत भेज दीजिये ताकि वह मुझे स्वर्ग ले जाये।" दिन बीतता गया। भगवान ने उसकी प्रार्थना नहीं सुनी न ही दूत को भेजा। एक दिन की बात है मारकुस लकड़ी लाने गया था । लकड़ी जमा करने के बाद लकड़ी बाँधा, उसे उठाने का प्रयास किया और फिर से उसी प्रार्थना को दुहरायी। " हे पिता, अपना दूत भेज दे ताकि वह मुझे स्वर्ग ले जाये।" उसने प्रार्थना समाप्त की ही थी कि एक स्वर्गदूत वहाँ आ विराजा और कहा, " मारकुस तुम्हारी प्रार्थना सुनी गयी है। मुझे पिता ईश्वर ने तुम्हारे पास भेजा है । बताओ, मैं तुम्हारे लिये क्या करुँ? तब मारकुस ने प्रसन्न होते हुए कहा, " महाशय, आपसे मेरी एक छोटी प्रार्थना है कि आप इस लकड़ी के गट्ठर को मेरे घर पहुँचा दीजिये ना। स्वर्गदूत ने आश्चर्य से कहा, क्या है आपकी प्रार्थना? मारकूस ने कहा कि इस लकड़ी के गट्ठर को मेरे घर पहुँचा दीजिये ना।

प्रभु की लौटना
मित्रो, रविवारीय आराधना विधि चिन्तन कार्यक्रम के अन्तर्गत हम पूजन विधि पंचांग के इकतीसवें रविवार के लिये प्रस्तावित पाठों के आधार पर मनन- चिन्तन कर रहें हैं। येसु हमें आज आमंत्रित रहे हैं कि अपने जीवन के दुःख-तकलीफ़ों, परेशानियों, कठिनाइयों और चुनौतियों को लेकर उनके पास लौट आयें वे हमें शांति प्रदान करेंगे। प्रभु हमें याद कराना चाहते हैं कि हमारा वास्तविक शरणास्थल प्रभु ही हैं। प्रभु ही में जीवन की शांति मिलेगी। प्रभु ही हमारी अंतिम मंजिल है। इस दुनिया में तो हम मेहमान हैं हम अपना जीवन जीते हैं विभिन्न कार्यों को पूरा करते हैं अनेक जिम्मेदारियों को अपनी स्वतंत्र इच्छा से निभाते हैं और फिर अपने भले कार्यों की गठरी लेकर पिता ईश्वर के पास लौट जाते हैं। उन्हीं भले कार्यों के आधार पर ईश्वर हमारा न्याय करेंगे और हमें स्वर्ग का पुरस्कार देंगे। मित्रो, आज प्रभु हमें अपने सुसमाचार पाठ के द्वारा निमंत्रण दे रहे हैं और कह रहे हैं कि हम उनके पास जायें ताकि वे हमें विश्राम देंगे। आइये हम प्रभु के दिव्य वचनों को सुनें जिसे संत मत्ती के 11वें अध्याय के 25 से 30 पदों से लिया गया है।

संत मत्ती 11, 25 - 30
25) उस समय ईसा ने कहा, ''पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ; क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है।
26) हाँ, पिता! यही तुझे अच्छा लगा।
27) मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर कोई भी पुत्र को नहीं जानता। इसी तरह पिता को कोई भी नहीं जानता, केवल पुत्र जानता है और वही, जिस पर पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे।
28) ''थके-मँादे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।
29) मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे,
30) क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।''

मित्रो, मेरा पूरा विश्वास है कि आपने अवश्य ही प्रभु की अमृत वाणी को ध्यान से पढ़ा है और इससे आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों का आध्यात्मिक लाभ हुए हैं। मित्रो, आज के सुसमाचार में वर्णित तीन प्रमुख बातों पर हम विचार कर सकते हैं।

धन्यवादी बनें
पहली बात तो है कि हम सदा धन्यवादी बनें जैसे प्रभु येसु धन्यवादी रहे। उन्होंने अपने जीवन में सदा ही धन्यवादी प्रार्थना चढ़ायी। वे कहते हैं, " हे पिता तूने जीवन के रहस्यों को उन सबसे दूर रखा जो अपने को होशियार समझते हैं। जीवन के रहस्यों को समझने की शक्ति उन लोगों को दी जो ईश्वर के सामने अपने को छोटा समझते हैं। जो नम्र हैं जो विनीत हैं जो ईश्वर के वचन को सुनना चाहते हैं जो ईश्वर के वचन को सुनकर लाभान्वित होना चाहते हैं जो ईश्वर को प्यार करते हैं जो ईश्वर को पाने के लिये तरसते हैं।

मित्रो, जब आज अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य के बारे में चर्चा कर रहें हैं तब प्रभु हमें बताना चाहते हैं कि वे व्यक्ति जीवन के अंतिम लक्ष्य अर्थात् मृत्यु के रहस्य से नहीं घबराते हैं जो धन्यवादी हैं और जो नम्र हैं। नम्र और धन्यवादी व्यक्ति ईश्वर के बहुत करीब होते हैं वे ईश्वर को सदा धन्यवाद देते रहते हैं और सदा ही नम्रतापूर्वक उसी की इच्छा पूरी करने में अपने जीवन को सफल मानते हैं चाहे उनके जीवन में दुःखों से भरा हो या सुख-शांति से परिपूर्ण हो। मित्रो, जीवन की सबसे बड़ी रहस्य है कि हम धन्यवादी बनें और नम्रतापूर्वक ईश्वर की इच्छा पूरी करते रहें।

प्रभु की ओर ही लौटें
आज के सुसमाचार में जिस दूसरी बात को प्रभु हमें बताना चाहते हैं वह है वह है कि हमें सदा प्रभु के पास ही लौटना है। प्रभु हमें बुला रहे हैं और कह रहें कि उन्हें मालूम है कि हम थके हारे हैं। प्रभु को मालूम है कि हम परेशान हैं, प्रभु को मालूम है कि हमारे दिल में दुःख है। उन्हें मालूम है कि किसी ने हमें दुःख दिया है, हम आहत हैं, हमारे दिल में बेचैनी है एकाकीपन है, क्षमा का अभाव है। हम परेशान है। घर की परेशानी है बच्चों से परेशानी है। देश में हो रहे निर्दोषों पर हमले से परेशानी और भय है। हम शांति की खोज कर रहे हैं। प्यारे मित्रो, आइये आज हम प्रभु की आवाज़ सुनेँ। वे हमसे कह रहें कि तुम मेरे पास आओ मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।
साथ में प्रभु हमसे यह भी बता रहे हैं कि हम किस तरह से प्रभु की ओर जाना है । मित्रो, अगर हम प्रभु की ओर लौटना है तो हमारे दिल को बदलना होगा। हमें प्रभु के समान नम्र बनना होगा। प्रभु को मालूम है कि जब हम तकलीफों में होते हैं तब हम सोचने लगते हैं कि प्रभु ने हमारा साथ छोड़ दिया है और हम उन बातों चीज़ों और कामों पर भरोसा करने लगते हैं जिससे दिल को शांति तो नहीं ही मिलती है हम और ही अंधकार के गर्त में भटकने लगते हैं। कई लोगों को मैंने यह कहते हुए सुना है कि मैं पीने लगा क्योंकि मैं जीवन के दुःख को ढो नहीं सका। मैं गिरजा जाना छोड़ दिया क्योंकि गिरजा ने मेरे लिये कुछ नहीं किया। कई लोग कहते हैं कि जो धर्म करे वही धक्का पाता है इसलिये मैं कोई भला कार्य नहीं करता हूँ। कई लोगों ने तो कहा दया, क्षमा सत्य और अहिंसा से इस जीवन में जीना आसान नहीं हैं। मुझे इन गुणों पर कोई भरोसा नहीं है। श्रोताओ प्रभु कह रहें है कि हम उनके पास लौटें वही हमें वास्तविक विश्राम देंगे।



नम्र बनें
मित्रो, तीसरी बात जिस प्रभु हमारा ध्यान खींचना चाहते हैं वह है कि नम्रता का गुण प्रभु से सीखें और नम्रता पूर्वक ही जीवन की अच्छाइयों को अपनायें तो प्रभु हमें अवश्य ही जीवन की खुशी प्रदान करेंगे। और मित्रो, आपने सुसमाचार के अंतिम शब्दों को अवश्य ही गौर से सुना होगा। प्रभु हमसे कह रहे हैं प्रभु हमारे लिये एक बहुत बड़े पुरस्कार की घोषणा कर रहे हैं वह है अगर हम धन्यवादी जीवन व्यतीत करना सीख लिये अगर हम नम्रतापूर्वक जीना सीख लिये तो हमें प्रभु के पास लौटने में कोई कठिनाई नहीं होगी। और प्रभु के पास लौटने से बड़ी खुशी जीवन में हो ही क्या सकती है। प्रभु ने हमसे बार-बार कहा है कि अगर हम प्रभु के पास लौटते हैं अर्थात् नम्र बनते हैं धन्यवादी बनते हैं क्षमा देते हैं अपना कर्त्तव्य काम उत्साह से करते हैं बुरी आदतों को छोड़ते हैं अच्छाई, भलाई और सच्चाई के लिये दुःखों को गले लगाते हैं तो हमारी आत्मा को सुकून मिलेगा हमारे दिल को शांति मिलेगी और हमें उस मारकुस नामक उस बूढ़े की तरह डर नहीं लगेगा जो प्रभु के पास लौटना तो चाहता था पर स्वर्गदूत के आने पर अपनी प्रार्थना बदल दी।
जीवन की सफलता तो इसी में है कि हम सदा प्रभु की ओर लौटते रहें प्रभु के साथ चलते रहें नम्रतापूर्वक तो जब भी प्रभु आयें लोगों की आँखों में आँसू हों और हमारे चेहरे में प्रसन्नता की आभा हो और हम एक नये दरवाज़े में प्रवेश करें जिसे हम स्वर्ग के नाम से जानते हैं।













All the contents on this site are copyrighted ©.