बिलासपुर, शुक्रवार 14 नवम्बर, 2014 (बीबीसी) गुरुवार को मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने
मंत्रिमंडल की आपात बैठक के बाद जांच आयोग के गठन की घोषणा की है। इससे पहले सकरी
में कुछ घंटों में 83 से ज्यादा महिलाओं का नसबंदी आपरेशन करने वाले डॉक्टर आरके गुप्ता
और सीएमएचओ डॉक्टर आरे भांगे को सरकार ने बर्खास्त कर दिया है। हालांकि पूरे मामले
में सरकार की कार्रवाई से इंडियन मेडिकल एसोसिएशन नाराज़ है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
का आरोप है कि पूरे मामले में घटिया दवाओं की आपूर्ति की गई है लेकिन सरकार डॉक्टरों
के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की स्थानीय इकाई ने 14 नवंबर
को बिलासपुर जिले में चिकित्सा व्यवसाय को बंद रखने का ऐलान भी किया है। दवाइयों के
विशेषज्ञ चिकित्सक मान रहे हैं कि गड़बड़ी ऑपरेशन के बजाए दवाइयों से जुड़ी हुई है। इंडियन
मेडिकल एसोसिएशन पहले दिन से ही दवाइयों में गड़बड़ी की आशंका जताता रहा है और राज्य
सरकार ने भी 6 दवा कंपनियों को प्रतिबंधित किया है। साथ ही इन कंपनियों के खिलाफ एफआईआर
दर्ज कराने के भी निर्देश दिए हैं। इधर सरकार ने 6 और दवाओं व चिकित्सा सामग्रियों
के इस्तेमाल पर रोक लगाने के निर्देश जारी किए हैं। इनमें कुछ खास कंपनियों की पोवीडोन,
डाइज़ेपाम,पेंटाजोसिन, एंड्रेनालाइन, एट्रोपाइन सल्फेट और सर्जिकल स्प्रिट शामिल हैं। इस
तरह सरकार की ओर से प्रतिबंधित की गई दवाओं और चिकित्सा सामग्री की संख्या 12 हो गई है। दूसरी
ओर सरकार ने जिन दवाओं को प्रतिबंधित किया है, उसी बैच की सिप्रोसीन 500 दवा खाकर तखतपुर,
चकरभाटा और मस्तूरी के इलाके में भी कुछ लोगों के बीमार पड़ने और अस्पताल में भर्ती होने
की खबर है। तखतपुर के सरकारी अस्पताल में इलाज करवाने और इसी दवा को खाने वाले इलाके
से एक बुजुर्ग अंजोर सूर्यवंशी को बुधवार की रात छत्तीसगढ़ आयुर्विजान संस्थान में भर्ती
कराया गया था, जहां उनकी मौत हो गई। कम से कम आठ ऐसे लोग अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती
हैं, जिनका सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में उपचार किया गया था और उन्हें ये दवा दी गई थी। .तखतपुर
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के डाक्टर निखिलेश गुप्ता ने भी बातचीत में माना कि इन मरीजों
को सिप्रोसीन दवा दी गई थी और उसके बाद से उनमें मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर के लक्षण नज़र
आए हैं और उन्हें तत्काल बिलासपुर रेफर किया गया था। इधर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नसबंदी
कांड पर दुख जताते हुए कहा है कि भारत में परिवार नियोजन से जुड़ी संस्थाओं को मानवाधिकार
कानूनों का पालन सुनिश्चित कराना चाहिए. मौतों की बिना किसी पक्षपात के जांच हो। दूसरी
ओर, ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि भारत में स्वास्थ्यकर्मियों पर नसबंदी का ज्यादा से
ज्यादा लक्ष्य पूरा करने का दबाव डाला जा रहा है, जो मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन है।