वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 6 नवम्बर 14 (वीआर सेदोक)꞉ ″कलीसिया जो अपने धर्माध्यक्ष की
एकता में नहीं है वह रोगग्रस्त कलीसिया है। येसु चाहते हैं कि धर्माध्यक्षों, पुरोहितों,
याजकों एवं ख्रीस्तीय विश्वासियों के बीच एकता हो। धर्माध्यक्ष का पद सम्मान का नहीं,
सेवा का है इसलिए सांसारिक तथा व्यवसाय की मानसिकता वाले का कलीसिया में कोई स्थान नहीं
है। धर्माध्यक्ष जो सेवा प्रदान करने में विनम्र होने के बदले जीविका की खोज करते तथा
सम्मान एवं सत्ता के भूखे हैं उन्हें कलीसिया जगह नहीं देती है।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस
ने बुधवार को साप्ताहिक आमदर्शन के अवसर पर कही।
उन्होंने 5 नवम्बर को, संत पेत्रुस
महागिरजाघर के प्राँगण में भक्त समुदाय के सम्मुख अपनी धर्मशिक्षा माला जारी करने के
पश्चात् लोगों को सम्बोधित करते हुए धर्माध्यक्षों के लिए प्रार्थना करने का आग्रह किया। संत
पापा ने कहा, ″आप सभी धर्माध्यक्षों के लिए प्रार्थना करें क्योंकि उन्हें सद्गुणी होना
चाहिए किन्तु हम सभी पापी हैं।″
उन्होंने बतलाया कि कलीसिया के निर्माण हेतु
स्वयं ख्रीस्त ने याजकों का अभिषेक किया है। याजकों के बीच धर्माध्यक्षों की भूमिका अहम
है क्योंकि वे ख्रीस्त के प्रतिनिधि हैं। संत पापा ने कहा, ″यद्यपि वे ख्रीस्त के
प्रतिनिधि है पर यह पद सम्मान या प्रतिष्ठा मात्र के लिए नहीं है। सेवा के कार्यों में
उनका सम्मान पूर्ण स्थान आरक्षित नहीं है क्योंकि स्वयं येसु ने भी ये सम्मान नहीं चाहा
है।
कई धर्माध्यक्ष जो संत बन गये हैं उन्होंने उन सांसारिक चीजों की खोज नहीं
की किन्तु सदगुणों को अपनाया। यह खरीदा नहीं जा सकता किन्तु आज्ञा पालन द्वारा प्राप्त
किया जा सकता है उसी प्रकार जिस प्रकार येसु ने किया वे मृत्यु तक आज्ञाकारी बने रहे।