2014-10-21 08:58:26

वाटिकन सिटीः दीपावली सन्देश में "समावेशी संस्कृति के संपोषण" का वाटिकन ने किया आग्रह


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 21 अक्टूबर सन् 2014 (सेदोक): वाटिकन ने विश्व के समस्त हिन्दू धर्मानुयायियों के नाम दीपावली महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं।

दीपावली महोत्सव इस वर्ष 23 अक्तूबर को मनाया जा रहा है। यह महोत्सव अन्धकार पर प्रकाश की, बुराई पर भलाई की तथा झूठ पर सत्य की विजय का महापर्व है।

वाटिकन स्थित अन्तरधार्मिक सम्वाद परमधर्मपीठीय परिषद ने दीपावली के उपलक्ष्य में प्रकाशित सन्देश में समावेशी संस्कृति के संपोषण का आग्रह किया है जो वैश्वीकरण के दुष्परिणामों पर विजयी हो सके। परमधर्मपीठीय परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल जाँ लूई तौराँ तथा उपाध्यक्ष मान्यवर मिगेल आन्गेल गिक्सो ने सन्देश में कहा, "समस्त विश्व में भेदभाव, हिंसा तथा बहिष्कार की वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में, ‘समावेशी संस्कृति का संपोषण’ सही मायने में, लोगों की यथार्थ आकाँक्षाओं में से एक के रूप में सर्वत्र देखा जा सकता है।"

उन्होंने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया है कि हालांकि वैश्वीकरण ने कई नवीन क्षितिजों को खोला है, विकास के नये अवसर प्रदान किये हैं तथा शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाया है तथापि, स्थानीय लोगों के एकीकरण में वैश्वीकरण विफल ही रहा है।

दीपावली महोत्सव पर वाटिकन से प्रकाशित पूर्ण सन्देश इस प्रकार हैः

हिन्दू एवं ख्रीस्तीय धर्मानुयायीः समावेशी संस्कृति के संपोषण हेतु मिलकर कार्य करें

प्रिय हिन्दू मित्रो,
    अन्तरधार्मिक सम्वाद सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद, इस वर्ष 23 अक्टूबर को मनाये जानेवाले, दीपावली महोत्सव के उपलक्ष्य में, आनन्दपूर्वक, आप सबके प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित करती है। दैवीय प्रकाश आपके दिलों, घरों और समुदायों को आलोकित करे तथा आपके सभी समारोह आपके परिवारों और अड़ोस-पड़ोस में अपनत्व के भाव को सुदृढ़ करे जिससे सद्भाव एवं सुख, शांति एवं समृद्धि को प्रोत्साहन मिले।


    इस वर्ष हम आपके साथ “समावेशी संस्कृति के संपोषण हेतु मिलकर कार्य करें” विषय पर चिन्तन-मन्थन करना चाहते हैं। समस्त विश्व में भेदभाव, हिंसा तथा बहिष्कार की वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में, ‘समावेशी संस्कृति का संपोषण’ सही मायने में, लोगों की यथार्थ आकाँक्षाओं में से एक के रूप में सर्वत्र देखा जा सकता है।


    यह सच है कि वैश्वीकरण ने, बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि सहित हमारे विकास के लिये कई नवीन क्षितिजों, नई सम्भावनाओं एवं समर्थ अवसरों का मार्ग प्रशस्त किया है। इसने विश्व में प्रजातंत्रवाद एवं सामाजिक न्याय के प्रति अधिकाधिक जागरुकता को उदघाटित किया है तथा काफी हद तक संचार और परिवहन के आधुनिक साधनों के कारण हमारे इस ग्रह को एक 'वैश्विक गांव' बना दिया है। तथापि, यह भी कहा जा सकता है कि भूमण्डलीकरण, लोगों को,एक वैश्वीकृत समुदाय के रूप में एकीकृत करने के अपने मूल लक्ष्य की प्राप्ति में विफल रहा है। साथ ही, वैश्वीकरण ने बड़े पैमाने पर लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक अस्मिता के खो जाने में भी योगदान दिया है।


    वैश्वीकरण के दुष्प्रभावों का असर समस्त विश्व में व्याप्त धार्मिक समुदायों पर भी पड़ा है क्योंकि ये आस-पड़ोस की संस्कृतियों से अभिन्न रूप से सम्बन्धित हैं। वस्तुतः, वैश्वीकरण ने समाज के विखंडन तथा धार्मिक मामलों में सापेक्षवाद एवं समन्वयवाद को बढ़ावा दिया है। साथ ही, धर्म के निजीकरण को प्रश्रय दिया है। आज विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त धार्मिक कट्टरवाद तथा जातीय, जन-जातीय एवं साम्प्रादयिक हिंसा, मोटे तौर पर, वैश्वीकरण के लाभों से वंचित लोगों, विशेषकर, निर्धनों एवं हाशिये पर जीवन यापन करनेवालों के बीच असंतोष, अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना को प्रदर्शित करती हैं।


    वैश्वीकरण के नकारात्मक परिणाम जैसे व्यापक भौतिकतावाद और उपभोक्तावाद ने, इसके अलावा, व्यक्तियों को और अधिक आत्म-अवशोषित, सत्ता के भूखे तथा अन्यों के अधिकारों, आवश्यकताओं एवं दुखों के प्रति उदासीन बना दिया है। सन्त पापा फ्राँसिस के शब्दों में, इसने "उदासीनता के वैश्वीकरण" को प्रश्रय दिया है जो हमें शनैःशनैः दूसरों की पीड़ा के प्रति अभ्यस्त कर अपने आप में संकीर्ण बना देता है (2014, विश्व शांति दिवस हेतु सन्देश)। इस प्रकार की उदासीनता 'बहिष्कार की संस्कृति' को उत्पन्न करती है (सन्त पापा फ्राँसिस, नेत्रहीन लोगों के प्रेरितिक अभियान तथा बधिर व मूक के हितार्थ लघु मिशन को सम्बोधन, 29 मार्च 2014) जिससे निर्धन, हाशिये पर जीवन यापन करनेवाले तथा कमज़ोर वर्ग अपने अधिकारों से वंचित कर दिये जाते तथा उन्हें वे अवसर एवं संसाधन नहीं मिलते जो समाज के अन्य सदस्यों के लिये उपलब्ध रहते हैं। उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है मानो वे नगण्य, तुच्छ, बोझिल, अनावश्यक, इस्तेमाल किये जाने वाले और यहाँ तक कि वस्तुओं की तरह खारिज कर दिये जाने वाले हों। अनेक तरीकों से, बच्चों और महिलाओं का शोषण, वयोवृद्धों, बीमारों, विकलांगों, आप्रवासियों एवं शरणार्थियों की उपेक्षा, बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, बहिष्कार की संस्कृति के सुनिश्चित संकेतक हैं।


    इस तरह समावेशी संस्कृति का पोषण हम सबके लिये एक सामान्य आह्वान एवं साझा ज़िम्मेदारी है, जिसे तत्काल कार्यरूप देने की आवश्यकता है। यह एक ऐसी परियोजना है जिसमें वे सब संलग्न हैं जो, इस धरती पर, मानव परिवार के स्वास्थ्य एवं उसकी उत्तरजीविता के प्रति उत्कंठित हैं। इस परियोजना को, बहिष्कार की संस्कृति के बीच और इसके बावजूद भी, पूरा किया जाना आवश्यक है।


    अपनी-अपनी निजी धार्मिक परम्पराओं में मूलबद्ध तथा सहभागी प्रतिबद्धता रखनेवाले लोगों के रूप में, हम, हिन्दू एवं ख्रीस्तीय धर्मानुयायी, न्यायिक एवं शांतिपूर्ण समाज के लिये समावेश की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु, अन्य धर्मों के अनुयायियों एवं सभी शुभचिन्तकों के साथ एकजुट होवें।

आप सबको दीपावली महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!

कार्डिनल जाँ लूई तौराँ
अध्यक्ष


श्रद्धेय मिगेल आन्गेल अयुसो गिक्सो, एमसीसीजे
सचिव










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