मठाधीश सन्त अन्तोनी महान के शिष्य एवं सन्त
हेसिकियुस के साथी सन्त हिलारियन का जन्म, सन् 291 ई. में, फिलीस्तीन के तबाथा नगर में
हुआ था। मिस्र के एलेक्ज़ेनड्रिया में उनकी शिक्षा दीक्षा सम्पन्न हुई थी।
इसराएल
के गज़ा के माजुमा में साधु एवं भिक्षु बनने से पहले हिलारियन सन्त अन्तोनी के साथ रेगिस्तान
में जीवन यापन कर चुके थे। सन् 356 ई. में हिलारियन पुनः मिस्र के रेगिस्तान लौटे तथा
सन्त अन्तोनी के साथ रहने लगे उसी समय उन्हें पता चला कि वहाँ भी उनकी प्रसिद्धि फैल
गई थी। लोगों से बचने के लिये वे इटली के सिसली द्वीप भाग गये जहाँ उनकी मुलाकात सन्त
हेसिकियुस से हो गई। हेसिकियुस के साथ हिलारियन ने अपनी पैदल यात्रा शुरु कर दी तथा थोड़े
ही समय में दालमातिया, क्रोएशिया एवं साईप्रस की यात्रा पूरी की। इन यात्राओं में सन्त
हिसेकियुस के साथ मिलकर उन्होंने ख्रीस्तीय सुसमाचार का प्रचार किया, प्रभु येसु ख्रीस्त
के नाम पर कई चमत्कार सम्पादित किये तथा चंगाई प्रदान की। चमत्कारों एवं चंगाई की ख़बर
विद्युत की तरह फैली तथा हज़ारों की संख्या में लोग उनके प्रवचन सुनने के लिये एकत्र
होने लगे।
साईप्रस में हिलेरियन बीमार पड़े तथा सन् 371 ई. में उनका निधन
हो गया। हिलारियन के साथी सन्त हिसेकियुस ने, गुप्त रूप से, उनके पवित्र अवशेषों को उनकी
जन्मभूमि फिलीस्तीन पहुँचाया। तब से ही फिलीस्तीन में सन्त हिलारियन की भक्ति की जाने
लगी थी। सन्त हिलारियन का पर्व 21 अक्टूबर को मनाया जाता है।
चिन्तनः
"प्रभु पर श्रद्धा रखो! पाप से दूर रहो! शय्या पर मौन हो कर ध्यान करो। प्रभु को योग्य
बलिदान चढ़ाओ और उस पर भरोसा रखो। कितने ही लोग कहते हैं: हमें सुख-शान्ति कहाँ से मिलेगी?
प्रभु! हम पर दयादृष्टि कर! जो आनन्द तू मुझे प्रदान करता है, वह उस आनन्द से गहरा है,
जो लोगों को अंगूर और गेहूँ की अच्छी फसल से मिलता है। प्रभु! मैं लेटते ही सो जाता हूँ,
क्योंकि तू ही मुझे सुरक्षित रखता है" (स्तोत्र ग्रन्थ, 4: 3-7)।