2014-10-20 15:54:23

कलीसिया खुले घावों पर आँख बंद नहीं कर सकती


वाटिकन सिटी, सोमवार, 20 अक्टूबर 2014 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने रोम स्थिति संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 19 अक्तूबर को, विश्व धर्माध्यक्षीय असाधारण महासभा के समापन तथा ईश्वर के सेवक संत पापा पौल षष्टम की धन्य घोषणा के शुभावसर पर समारोही पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, ″हमने सुसमाचार पाठ के एक प्रमुख अंश को सुना है, ‘जो क़ैसर का है, उसे क़ैसर को दो और जो ईश्वर का है, उसे ईश्वर को’। (मती.22꞉21)

संत पापा ने कहा, ″येसु की ग़लती पकड़ने के लिए फ़रीसियों द्वारा उन्हें अपने शब्दों के जाल में फँसाने तथा उनकी धर्म संबंधी परीक्षा किये जाने पर उन्होंने यह विडंबनात्मक एवं प्रभावशाली जवाब दिया। येसु का ये जवाब उन लोगों को झकझोर सकता है जिन्हें अपने आराम, प्रतिष्ठा, सत्ता, धन, यश तथा प्रसिद्धि की चिंता है और उनपर प्रश्न किये जाने पर उन्हें परेशानी महसूस होती है।″

संत पापा ने कहा कि अपने जवाब में येसु ने इसके दूसरे पक्ष पर अधिक जोर दिया है, ″जो ईश्वर का है उसे ईश्वर को दो।″ यह अंश दुनिया की हर ताकत से बढ़कर, ईश्वर को मानव जाति के मालिक के श्रेय को पहचानने एवं स्वीकार करने की याद दिलाती है। यह हमें नित्य नवीनता की खोज करने तथा भय को दूर करने का उपाय देती है क्योंकि हम बहुधा ईश्वर के अभूतपूर्व कार्यों पर अचम्भित महसूस करते हैं।

ईश्वर नई चीजों से घबराते नहीं इसलिए वे निरंतर नई चीजों से हमें अवगत कराते हैं। वे हमारे हृदय द्वार खोलते और चुनौती भरे रास्तों पर हमें आगे बढ़ने में मदद करते हैं। वे हमें नवजीवन प्रदान करते हैं। एक ख्रीस्तीय धर्मानुयायी जो सुसमाचार के अनुसार जीवन जीता है वह कलीसिया एवं दुनिया में ईश्वर प्रदत्त नवीनता को अपनाता है।

संत पापा ने कहा, ″जो ईश्वर का है उसे ईश्वर को दो, का अर्थ है उनकी इच्छा के प्रति उदार एवं समर्पित होकर, उनके राज्य में दया, प्रेम एवं शांति के लिए कार्य करना क्योंकि हमारी सच्ची शक्ति इसी में निहित है। यहीं ख़मीर है जो उसे बढ़ा देती तथा नमक है जो दुनिया द्वारा प्रस्तुत निराशा पर जीत पाने में हमारे सभी प्रयासों को आशा रूपी स्वाद प्रदान करती है। इसी से हमें आशा मिलती है क्योंकि जब हम ईश्वर पर अपनी आशा रखते हैं तब न तो हम वास्तविकता से भागते और न ही ईश्वर से दूर जाने का प्रयास करते बल्कि हम वही देने का प्रयास करते हैं जो ईश्वर को समर्पित किया जाना चाहिए। यही कारण है कि हम ख्रीस्तीय भविष्य की आशा कर सकते हैं। इस प्रकार, हम सुदृढ़ता पूर्वक जीवन को पूर्णता से जी सकते हैं तथा हमारी राहों पर आने वाली नयी चुनौतियों का सामना साहस के साथ कर सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि इन दिनों हमने विश्व धर्माध्यक्षीय असाधारण महासभा में भाग लिया है तथा इस सच्चाई को महसूस भी किया। सिनॉड का अर्थ है ‘एक साथ यात्रा करना।’ विश्व के विभिन्न हिस्सों से धर्माध्यक्षों, पुरोहितों एवं लोक-धार्मियों का यह बड़ा दल रोम आकर, येसु की ओर दृष्टि लगाकर सुसमाचार की राहों पर आगे बढ़ने हेतु आज के परिवारों की मदद के लिए स्थानीय कलीसिया की आवाज को प्रस्तुत किया जो एक खास अनुभव रहा। इसमें सभी ने कलीसिया की नवीनता हेतु पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का अनुभव किया क्योंकि कलीसिया खुले घावों पर आँख बंद नहीं करने तथा बहुत से लोगों में खोई आशा को जगाना चाहती है।

प्रेरित संत पौलुस के साथ एक होकर सिनॉड की सफलता हेतु सभी ने अपनी रचनात्मक सहयोग दी है. संत पापा ने कहा, ″हम हमेशा आप सब के कारण ईश्वर को धन्यवाद देते है।″ (1थेस.1꞉2) पवित्र आत्मा जिन्होंने इस व्यस्तता के समय में हमें उदारता पूर्वक काम करने का बल प्रदान किया है, सच्ची स्वतंत्रता एवं विनम्रता पूर्ण सक्रियता के साथ काम को जारी रखने में हमारा मार्गदर्शन किया है वे सार्वभौमिक कलीसिया हमें पुनः 2015 में एक साथ एकत्र करेगे। हमने रोपा तथा हम रोपना जारी रखेंगे किन्तु परिणाम ईश्वर के हाथों में है। (1कोरिं.3꞉6)

संत पापा ने कहा, ″संत पापा पौल षष्टम की धन्य घोषणा के दिन में चिंतन करता हूँ कि उन्होंने किस प्रकार सिनॉड की स्थापना की। उसीपर हम समय के चिन्ह को पहचानते हुए उसकी बढ़ती माँग तथा समाज की चुनौती पूर्ण परिस्थितियों के अनुसार, कई रास्तों एवं उपायों को अपनाने का प्रयास किया है।

जब हम इस महान संत पापा की याद करते हैं हम इनके साहसी ख्रीस्तीय और उत्साही प्रेरित होने साक्ष्य के लिए, ईश्वर को धन्यवाद दें। हम हमारे परम आदरणीय एवं प्यारे संत पापा पौल 6वें को भी धन्यवाद दें। ख्रीस्त एवं कलीसिया के प्रति उनकी विनम्र एवं साहसपूर्ण साक्ष्य के कारण वे अत्यन्त लोकप्रिय रहे।

अपने इस व्यक्तिगत डायरी में उन्होंने सभा के अंतिम सत्र में लिखा था, ″शायद ईश्वर ने मुझे बुलाया तथा इस सेवा के लिए नियुक्त किया इसलिए नहीं कि मैं इसके पूर्ण योग्य हूँ तथा कलीसिया पर शासन करते हुए वर्तमान चुनौतियों से इसकी रक्षा करने में समर्थ हूँ किन्तु इसलिए कि मैं कलीसिया के लिए थोड़ा कष्ट उठा सकूँ, इसप्रकार यह प्रकट हो जाए कि सिर्फ ख्रीस्त ही हमारे मुक्तिदाता हैं तथा वे ही इसकी रक्षा भी करते हैं। (पी. मक्की, पौल षष्टम पृ. 120-121)
सांसारिकता एवं प्रतिकूल समाज में विनम्रता के इस भाव ने संत पापा पौल षष्टम का वैभव प्रकट किया।

संत पापा ने कहा, ″धन्य संत पापा पौल षष्टम ने ख्रीस्त के पावन मिशन को पूरा करने हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर यह सिद्ध कर दिया कि उन्होंने ईश्वर को वह सब कुछ अर्पित किया जो ईश्वर का था। कलीसिया को प्यार करने तथा उसका संचालन करने के द्वारा उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि वह समस्त मानव परिवार की ममतामय माता है तथा उनकी मुक्तदायिनी भी।








All the contents on this site are copyrighted ©.