2014-10-20 15:31:47

अन्तरधार्मिक विवाह भारतीय कलीसिया की चुनौती


वाटिकन सिटी, सोमवार 20 अक्तूबर, 2014 (सीएनए) परिवार विषय पर 5 से 19 अक्तूबर तक चली धर्माध्यक्षीय महासभा में भारत के प्रतिनिधियों ने अन्तरधार्मिक विवाह पर प्रेरितिक चिन्तन करने का आमंत्रण दिया।

मुम्बई के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल ऑस्वाल्ड ग्रेशियस ने सीएनए को दिये एक साक्षात्कार में कहा कि विवाह के संबंध में भारत के ख्रीस्तीयों की समस्या ' मिक्सड मैरेज़ ' या मिश्रित विवाह से है जिसमें एक पक्ष काथलिक हो और दूसरा पक्ष हिन्दु, मुसलमान, बौद्ध या किसी अन्य सम्प्रदाय का।

उन्होंने कहा कि साधारणतः विवाह के संबंध में एक पक्ष ख्रीस्तीय और दूसरा अख्रीस्तीय रहने से काथलिक कलीसिया में विवाह मान्य नहीं है पर कलीसिया विधान या ' कैनन लॉ ' धारा 1086 के अनुसार स्थानीय धर्माध्यक्ष उक्त बाधा से विवाह के बंधन में बंधनेवालों को मुक्त कर सकते हैं।

संत पापा फ्राँसिस द्वारा कार्डिनलों की विशेष सभा के सदस्य कार्डिनल ऑस्वाल्ड ग्रेशियस ने कहा कि अन्तरधार्मिक विवाह के मामले में कलीसिया को वर-वधु और उनके परिजनों के साथ सकारात्मक मनोभाव अपनाये जाने की ज़रूरत है।

साक्षात्कार के दौरान कार्डिनल ग्रेशियस के साथ उपस्थित मुम्बई महाधर्मप्रांत के स्नेहलया परिवार सेवा केन्द्र के फादर काजेटन मेनेजेस ने भी बल देकर कहा कि एशिया में अन्तरधार्मिक विवाह के कई मामले सामने आते हैं अतः कलीसिया को इस संबंध में विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।

फादर मेनेजेस ने कहा कि अन्तरधार्मिक विवाह की चुनौतियाँ भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान श्रीलंका, थाईलैंड और जापान में हाल के वर्षों में बढ़ीं हैं।

उन्होंने कहा कि विवाह की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि दोनों पक्षों को को विवाह के पूर्व के तैयारीकाल में उचित शिक्षा दी गयी है या नहीं।

उनका मानना है कि यदि दोनों पक्षों को उचित वैवाहिक धर्मक्लास दिये जायें तथा विवाह के बाद उनका साथ दिया जाये तो निश्चय विवाह सफल होंगे।











All the contents on this site are copyrighted ©.