वाटिकन सिटी, 17 अक्टूबर सन् 2014: 17 अक्टूबर को कलीसिया अन्ताखिया के सन्त इग्नेशियस
का स्मृति दिवस मनाती है। इग्नेशियस, सिरिया में, अन्ताखिया के द्वितीय धर्माध्यक्ष थे।
सन् 107 ई. में, क्रूर सम्राट त्रायान के शासनकाल में, ख्रीस्तीय धर्म के परित्याग से
इनकार करने के लिये धर्माध्यक्ष इग्नेशियस को प्राणदण्ड दे दिया गया था। धर्माध्यक्ष
इग्नेशियस को अन्ताखिया से एशिया माईनर तथा ग्रीस की यात्रा कराते हुए उनके आततायी रोम
ले आये जहाँ एक सार्वजनिक समारोह के दौरान उन्हें जंगली जानवरों के आगे डाल दिया गया
था तथा उनका तमाशा बनाया गया था। मरते वक्त इग्नेशियस कह उठे थेः "धरती के अन्तिम छोर
तक की सत्ता के बजाय मैं ख्रीस्त में मरना पसन्द करता हूँ।"
रोमी शहादतनामे के
अनुसार धर्माध्यक्ष इग्नेशियस प्रभु येसु के प्रिय शिष्य योहन के शिष्य थे। उनका धर्माध्यक्षीय
अभिषेक सन् 69 ई. में हुआ था। अपनी पवित्रता के लिये धर्माध्यक्ष इग्नेशियस ख्रीस्तीय
धर्मानुयायियों के प्रिय धर्माध्यक्ष बन गये थे। ख्रीस्तीय विश्वास के सिद्धान्तों की
उन्होंने जी-जान से रक्षा की तथा भ्रामक विचारधाराओं से लोगों को मुक्ति दिलाने का अनुपम
कार्य किया।
अन्ताखिया से रोम की यात्रा के दौरान धर्माध्यक्ष इग्नेशियस ने
अपने लोगों का उत्साहवर्द्धन करते हुए 07 पत्र लिखे थे। इन पत्रों में धर्मशिक्षा प्रदान
करने के साथ-साथ उन्होंने तत्कालीन ख्रीस्तीय समुदायों को विश्वास में सुदृढ़ होने के
लिये प्रेरित किया था। अन्ताखिया के सन्त इग्नेशियस के ये पत्र आज भी काथलिक कलीसिया
के विशाल कोष का भाग हैं। ये पत्र आरम्भिक काल की कलीसिया पर प्रकाश डालते हैं जब उसमें
किसी प्रकार का विच्छेद नहीं हुआ था।
जब धर्माध्यक्ष इनेशियस को पता चल
गया था कि उन्हें जंगली जानवरों के आगे डाल दिया जायेगा तब उन्होंने अपने लोगों को लिखा
थाः "मैं जानता हूँ क्या मेरे लिये लाभकर है। अन्ततः, मैं उनका शिष्य बनने जा रहा हूँ।
जब तक मैं, हर्षपूर्वक, प्रभु येसु तक अपना रास्ता तय कर रहा हूँ तब तक कुछ भी मुझे लुभाये
नहीं। अग्नि, क्रूस, जंगली जानवरों के साथ संघर्ष, हड्डियों में मोच, अंगों कि क्षति-विक्षति
सबको आ जाने दो बशर्ते कि मैं येसु मसीह तक जा सकूँ। सम्पूर्ण पृथ्वी का राजा बनने के
बजाय मैं मर कर प्रभु येसु तक जाना पसन्द करूँगा। मैं उनकी खोज करता हूँ जो हमारे लिये
मर गये, उनसे प्रेम करता हूँ जो हमारी मुक्ति के लिये पुनः जी उठे।"
चिन्तनः
"मैं हर समय प्रभु को धन्य कहूँगा; मेरा कण्ठ निरन्तर उसकी स्तुति करेगा। मेरी आत्मा
गौरव के साथ प्रभु का गुणगान करती है। दीन-हीन उसे सुन कर आनन्द मनाये। मेरे साथ प्रभु
की महिमा का गीत गाओ। हम मिल कर उसके नाम की स्तुति करें। मैंने प्रभु को पुकारा। उसने
मेरी सुनी और मुझे हर प्रकार के भय से मुक्त कर दिया" स्तोत्र ग्रन्थ 33:1-5)।