2014-10-15 10:30:54

प्रेरक मोतीः अवीला की सन्त तेरेसा (1515 - 1582)


वाटिकन सिटी, 15 अक्टूबर सन् 2014:

अवीला की सन्त तेरेसा, स्पेन की संरक्षिका तथा स्पेन की एक कारमेल मठवासी धर्मबहन थीं जो कलीसिया में आचार्य की उपाधि प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं। अविला की तेरेसा द्वारा रचित उनकी प्रार्थनाओं के कारण उन्हें कलीसिया की आचार्य उपाधि से सम्मानित किया गया है।


तेरेसा का जन्म स्पेन के अवीला में, 28 मार्च सन् 1515 ई. को हुआ था। उनके पिता तोलेदो के एक समृद्ध व्यापारी थे। जब तेरेसा 15 वर्ष की थीं तब उनकी माता का देहान्त हो गया था। बच्ची की देखरेख में असमर्थ पिता ने तेरेसा को अगस्टीन धर्मसंघ की धर्मबहनों के सिपुर्द कर दिया था। धर्मबहनों के साथ ही उनका पालन पोषण हुआ तथा उन्हीं के साथ उन्होंने शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की।


सन्त जेरोम के पत्रों को पढ़ लेने के बाद तेरेसा ने भी समर्पित जीवन यापन का मन बना लिया तथा सन् 1535 ई. में कारमेल मठ में भर्ती हो गई। कुछ वर्षों तक धर्मबहन तेरेसा मठ में जीवन यापन करती रहीं किन्तु उनका अधिक समय बीमार रहते बीता। उनके उल्टे पाँव में लकुआ लग गया था तथा तीन वर्षों तक वे रोग ग्रस्त रहीं किन्तु इसी दौरान उन्होंने "जख़्मी प्रभु ख्रीस्त" के दर्शन प्राप्त किये और उनका जीवन बदल गया।


दिव्य दर्शन के बाद तेरेसा के जीवन में गहन परिवर्तन आया और जीवन के प्रति उनका नज़रिया ही बदल गया। प्रभु को अपनी पीड़ा अर्पित करते हुए वे सबकुछ को धैर्यपूर्वक सहती रहीं तथा धैर्यपूर्वक दुख कष्टों को सहने हेतु अन्यों को भी प्रेरणा देती रहीं। प्रभु येसु मसीह का दुखभोग उनके चिन्तनों का केन्द्र बन गया। उन्होंने अपने जीवन में नवस्फूर्ति का अनुभव किया तथा अपने धर्मसंघ के सुधार हेतु नई पहलें आरम्भ की। ख़ुद नियमों का निष्ठापूर्वक पालन कर वे अन्य धर्मबहनों के लिये आदर्श बनी। वे प्राचीन प्रकार के मठवासी जीवन से अत्यधिक प्रभावित थीं इसलिये उन्होंने अपने कारमेल मठ में ही बिना जूते के या नंगे पैर रहनेवाले मठवासियों के लिये एक अलग धर्मसंघ की स्थापना की, इसी धर्मसंघ के सदस्यों को "डिसकैल्स्ड कारमेलाईट्स" नाम से जाना जाता है।


सन् 1560 ई. के लगभग तेरेसा ने "पूर्णता का मार्ग", "आन्तरिक दुर्ग" तथा "सर्वश्रेष्ठ गीत पर चिन्तन" शीर्षक से तीन कृतियों की रचना की। सन् 1567 ई. में तेरेसा की मुलाकात क्रूस के सन्त योहन से हुई जिनकी मदद से नंगे पैर रहनेवाले मठवासियों वाला उनका अभियान कारमेल धर्मसमाजी पुरुषों तक पहुँचा। सन् 1582 ई. में तेरेसा का निधन हो गया।

अपने मठवासी जीवन काल में तेरेसा ने कई काथलिक मठों की स्थापना की। ईश्वर की स्तुति में उन्होंने कई कविताओं एवं प्रार्थनाओं की रचना की जिन्हें ख्रीस्तीय रहस्यवाद के इतिहास में महत्वपूर्ण जगह मिली है। प्रार्थनाओं एवं कविताओं के अतिरिक्त, स्पेन की कारमेल मठवासी धर्मबहन तेरेसा ने "अवीला की सन्त तेरेसा का जीवन चरित" शीर्षक से अपनी आत्म कथा भी रख छोड़ी है जो आज ख्रीस्तीय धर्म की धरोहर का अभिन्न अंग है। काथलिक कलीसिया की धर्माचार्या, अवीला की सन्त तेरेसा का पर्व, 15 अक्टूबर को, मनाया जाता है।



चिन्तनः अवीला की सन्त तेरेसा के शब्दों में: "हम ईश्वर की खोज में लगे रहते हैं हालांकि हमें इस बात का ज्ञान नहीं कि ईश्वर के साथ साक्षात्कार कैसा होगा। हम केवल धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर सकते हैं। ...... प्रार्थना करने की हमारी निष्कपट कोशिश हमें अपनी विफलताओं के प्रति सचेत करती है, तथापि हमें विश्वास का परित्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि हमारी दुर्बलता में, पवित्रआत्मा हमारी मदद करते हैं, "हम यह नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए, किन्तु हमारी अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिए विनती करता है" (रोमियो 8:26)।










All the contents on this site are copyrighted ©.