2014-10-10 15:25:03

भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान के मलाला को नोबेल पुरस्कार


स्टॉकहोम, शुक्रवार 10 अक्तूबर, 2014 (बीबीसी) वर्ष 2014 का शांति का नोबेल पुरस्कार भारत के सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफज़ई को दिया गया है।
कैलाश सत्यार्थी 'बचपन बचाओ' नाम का एक ग़ैर सरकारी संगठन चलाते हैं जो बाल मज़दूरी के ख़िलाफ़ काम करता है।
वहीं मलाला यूसुफज़ई को पाकिस्तान के क़बायली इलाकों में लड़कियों की शिक्षा की मुहिम चलाने के लिए चरमपंथियों की गोली का निशाना बनना पड़ा।
सम्मान मिलने के बाद सत्यार्थी ने कहा, "ये सभी भारतीयों के लिए बड़े गौरव की बात है. ये उन सब बच्चों के लिए सम्मान की बात है जो प्रौद्योगिकी और अर्थव्यवस्था की इतनी प्रगति के बावजूद दासता में रह रहे हैं।"
सत्यार्थी ने कहा कि वह दुनिया के ऐसे सभी बच्चों को ये सम्मान समर्पित कर रहे हैं।
उनके मुताबिक़ उन्हें पता था कि कई लोगों ने उनका नाम इस सम्मान के लिए भेजा है।
भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को पैदा हुए कैलाश सत्यार्थी 'बचपन बचाओ आंदोलन' चलाते हैं।
उन्हें बच्चों और युवाओं के दमन के ख़िलाफ़ और सभी को शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया है.
उन्होंने पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई के साथ ये नोबेल पुरस्कार साझा किया है.
पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर रहे कैलाश सत्यार्थी ने 26 वर्ष की उम्र में ही करियर छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था.
उन्हें बाल श्रम के ख़िलाफ़ अभियान चलाकर हज़ारों बच्चों की ज़िंदग़ियां बचाने का श्रेय दिया जाता है।
इस समय वे 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' (बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं।
कैलाश सत्यार्थी की वेबसाइट के मुताबिक़ बाल श्रमिकों को छुड़ाने के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए हैं. 17 मार्च 2011 में दिल्ली की एक कपड़ा फ़ैक्ट्री पर छापे के दौरान उन पर हमला किया गया. इससे पहले 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुड़ाने के दौरान उन पर हमला हुआ।
नोबेल पुरस्कार से पहले उन्हें 1994 में जर्मनी का 'द एयकनर इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड', 1995 में अमरीका का 'रॉबर्ट एफ़ कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड', 2007 में 'मेडल ऑफ़ इटेलियन सीनेट' और 2009 में अमरीका के 'डिफ़ेंडर्स ऑफ़ डेमोक्रेसी अवॉर्ड' सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुके हैं।
नोबेल समिति ने बयान जारी करते हुए कहा है, "ये पुरस्कार सभी बच्चों के लिए शिक्षा और बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ किए गए उनके संघर्ष के लिए दिया जा रहा है. ये जरूरी है कि बच्चों का आर्थिक शोषण न हो और हर बच्चा स्कूल जरूर जाए।
दुनिया भर में जितने भी गरीब देश हैं, उनकी 60 फीसदी आबादी की उम्र 25 साल से कम है. विशेष रूप से संघर्ष ग्रस्त देशों में, बच्चों की अनदेखी के कारण उनके साथ हो रही हिंसा की समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती जा रही है।"











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