2014-10-02 12:31:31

वाटिकन सिटीः वैश्वीकृत विश्व में बढ़ती असमानता के प्रति सन्त पापा की चेतावनी


वाटिकन सिटी, गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने वैश्वीकृत विश्व में धनवान एवं निर्धनों के बीच नित्य बढ़ती असमानता के ख़तरों के प्रति सचेत कराया है।

गुरुवार को, न्याय एवं शांति सम्बन्धी परमधर्मपीठीय समिति की पूर्ण कालिक सभा में भाग लेनेवाले प्रतिभागियों ने सन्त पापा फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका सन्देश सुना।

सन्देश में सन्त पापा ने समिति के अध्यक्ष कार्डिनल पीटर टर्कसन तथा उनके सहयोगियों द्वारा न्याय एवं शांति की दिशा में किये जा रहे कार्यों के लिये धन्यवाद ज्ञापित किया तथा स्मरण दिलाया कि दुर्बल एवं कमज़ोर वर्ग के हित में काम करना काथलिक कलीसिया का मिशन है।

अपनी पूर्णकालिक सभा के दौरान उक्त समिति के सदस्य सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के "कारितास इन वेरिताते" विश्व पत्र पर विशद विचार विमर्श कर रहे हैं। इस सन्दर्भ में सन्त पापा ने कहा कि इस विश्व पत्र में सामाजिक न्याय की मूलभूत बातों को प्रकाशित किया गया है तथा काथलिकों को सामाजिक, आर्थिक, वित्तीय एवं राजनैतिक जीवन के लिये मार्गदर्शन दिया गया है।

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उक्त विश्व पत्र ने वैश्वीकरण के लाभों की ओर ध्यान आकर्षित कराने के साथ साथ इसके ख़तरों के प्रति भी सचेत किया है। सन्त पापा ने कहा कि जब वैश्वीकरण का लक्ष्य लोगों का हित नहीं होता तब वह ख़तरनाक हो उठता है।

उन्होंने कहा, "एक ओर वैश्वीकरण ने कुछ लोगों को समृद्ध और धनाढ्य बनाया है तो दूसरी ओर इसने सामाजिक समूहों के बीच की खाई को भी गहरा कर दिया है तथा अमीर और ग़रीब के बीच असमानता को बढ़ावा दिया है।" उन्होंने कहा, "वैश्वीकरण ने केवल निर्धन एवं विकासशील देशों में ही असमानता को नहीं बढ़ाया बल्कि कथित धनवान देशों में भी नई प्रकार की निर्धनता को जन्म दिया है।"

इस बात की ओर सन्त पापा फ्राँसिस ने ध्यान आकर्षित कराया कि वर्तमान आर्थिक निकाय का एक पक्ष श्रम की लागत का शोषण है जिसमें उन लाखों लोगों से कम लागत में श्रम करवाया जा रहा है जो दो डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीने के लिये बाध्य हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की शोषक प्रवृत्ति श्रम के स्रोतों को ही नष्ट कर रही है तथा लोगों से रोज़गार के अधिकार छीन रही है।

इस नकारात्मक प्रवृत्ति को उलटने की आवश्यकता बल देते हुए सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि नित्य बढ़ती असमानता एवं निर्धनता प्रजातंत्रवाद को ही नष्ट कर देती है इसलिये उस प्रकार के निकायों का निर्माण अनिवार्य है जिसमें रोज़गार के अधिकारों की रक्षा हो और साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाये।

उन्होंने कहा कि सबके लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु ठोस संरचनाओं के निर्माण से लोगों के बीच व्याप्त असमानता एवं निर्धनता के मूल कारणों पर विजय पाई जा सकती है।

सन्त पापा ने कहा, "लोगों के सामाजिक अधिकारों और, विशेष रूप से, रोज़गार के अधिकार को छीना नहीं जा सकता। इस अधिकार को वित्तीय बाज़ार के अधीन नहीं किया जा सकता क्योंकि मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा, परिवार की संरचना, जनकल्याण एवं शांति के लिये रोज़गार का अधिकार मूलभूत शर्त है।








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