लोरेन्सो रूईज़ फिलीपिन्स के पहले सन्त हैं। ख्रीस्तीय धर्म के ख़ातिर मार डाले जानेवाले
वे पहले फिलीपिनो शहीद भी हैं। लोरेन्सो रूईज़ एक लोकधर्मी काथलिक विवाहित विश्वासी थे
जिनकी तीन सन्तानें थीं, दो पुत्र एवं एक पुत्री।
मनीला के बीनोन्दो में
लगभग सन् 1600 ई. में लोरेन्सो रूईज़ का जन्म हुआ था। मनीला में उन्होंने दोमिनीकन धर्मसमाजियों
के अधीन स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी। बाल्यकाल से ही धर्म एवं ईश्वर के प्रति लोरेन्स
उत्सुक थे तथा गिरजाघरों की गतिविधियों में प्रसन्न-मन से भाग लिया करते थे। पहले-पहल
वे ख्रीस्तयागों के दौरान वेदी सेवक रूप में सेवा अर्पित किया करते थे किन्तु बाद में
पेशेवर रूप से उन्होंने गिरजाघर में नौकरी कर ली थी। बिनोन्दो के गिरजाघर में रक्षक,
दरबान, क्लर्क, वेदी सेवक सभी काम किया करते थे। इसके अतिरिक्त, वे रोज़री विनती पाठ
के लिये गठित भ्रातृसंघ के भी सक्रिय सदस्य बन गये थे। अपनी सुन्दर लिखाई की वजह से उन्हें
कई बार दस्तावेज़ों के सुलेखन का काम भी दिया जाता था जिसे वे बड़ी प्रवीणता एवं क्षमता
के साथ सम्पादित करते थे।
सन् 1636 ई. में लोरेन्सो रूईज़ के जीवन में एक
ऐसी घटना हुई जिसकी वजह से उन्हें फिलीपिन्स से भाग जाना पड़ा। जब वे लगभग 35 वर्ष के
थे तब उनपर किसी अपराधिक मामले में लिप्त होने का आरोप लगा दिया गया। लोरेन्सो इस मिथ्या
आरोप का सामना नहीं कर सके तथा फिलीपिन्स छोड़कर चले जाने को बाध्य हुए उन्होंने जापान
में जाकर शरण ली। जापान में उस समय ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों का उत्पीड़न चल रहा था।
उन्होंने कठिन क्षणों में ख्रीस्तीयों को ढ़ारस बँधाया तथा उन्हें प्रभु ख्रीस्त में
अपने विश्वास को मज़बूत करने के लिये प्रेरित किया।
लोरेन्सो के इस नेक कार्यों
को ख्याति मिली तथा जापानी अधिकारियों ने उन्हें तुरन्त गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
कारावास में अन्य ख्रीस्तीयों के संग मिलकर वे प्रार्थना किया करते तथा उन्हें विश्वास
में सुदृढ़ रहने का सन्देश दिया करते थे। अधिकारियों के समक्ष भी वे प्रभु येसु ख्रीस्त
में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करने से नहीं चूकते थे जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कड़ी
से कड़ी यातनाएँ दी गई तथा ख्रीस्तीय धर्म के परित्याग के लिये कहा गया किन्तु लोरेन्सो
ने मरते दम तक ख्रीस्त में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करने का प्रण किया। कारावास के
अधिकारियों से वे कहा करते थे कि यदि ईश्वर उन्हें हज़ार बार जन्म लेने का मौका देंगे
तो वे हज़ार बार ख्रीस्तीय धर्म को ही स्वीकार करेंगे। इस पर जापानी अधिकारी अत्यधिक
क्रुद्ध हुए तथा 27 सितम्बर 1637 ई. को उन्होंने लोरेन्सो को मौत की सज़ा दे दी। लोरेन्सो
को उलटा लटकाकर फाँसी दी गई जिससे प्राण निकलने से पहले दो दिनों तक वे अगाध दर्द से
छटपटाते रहे। दो दिनों की प्राण पीड़ा के उपरान्त श्वास रुक जाने से लोरेन्सो की मृत्यु
हो गई। उनके शव को जला दिया गया तथा राख को समुद्र में फेंक दिया गया। लोरेन्सो रूईज़
के संग 15 अन्य ख्रीस्तीयों को भी प्राण दण्ड देकर मार डाला गया था। लोरेन्सो के साथ-
साथ इन सब शहीदों को सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने मनीला में 18 फरवरी, सन् 1981 ई. को
धन्य घोषित किया था। 18 अक्टूबर, 1987 ई. को शहीद लोरेन्सो रूईज़ को, रोम में, सन्त पापा
जॉन पौल द्वितीय ने सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। सन्त लोरेन्सो रूईज़
का पर्व 28 सितम्बर को मनाया जाता है।
चिन्तनः "धन्य हैं मन के निर्मल
क्योंकि स्वर्ग राज्य उन्हीं का है। धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते
हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं,
तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग
में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी
तरह अत्याचार किया" (सन्त मत्ती 5: 10-12)।