क्रूस के बिना येसु के मानव मुक्ति कार्य को समझना कठिन
वाटिकन सिटी, शनिवार, 27 सितम्बर 2014 (वीआर सेदोक)꞉ वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत
मार्था के प्रार्थनालय में शुक्रवार 26 सितम्बर को, संत पापा फ्राँसिस ने पावन ख्रीस्तयाग
अर्पित करते हुए प्रवचन में, ख्रीस्त को अपने मुक्तिदाता रूप में पहचानने तथा उनके मुक्ति
कार्य में क्रूस की भूमिका पर प्रकाश डाला।
उन्होंने प्रवचन में कहा कि एक ख्रीस्तीय
तब तक ख्रीस्त को मुक्तिदाता के रूप में नहीं पहचान सकता है जब तक कि वह क्रूस की महत्ता
को न समझ सके तथा येसु के साथ अपना क्रूस उठाने को तैयार न हो।
संत पापा ने प्रवचन
में संत लूकस रचित सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जहाँ येसु ने शिष्यों से जानना चाहा था
कि लोग उन्हें क्या कहते हैं तथा तत्पश्चात् अपने दुखःभोग की भविष्यवाणी की थी।
संत
पापा ने कहा, ″एक ख्रीस्तीय धर्मानुयायी कहलाने का अर्थ है सीरीनी सिमोन के समान बनना।
क्रूस के रास्ते पर सीरीनी सिमोन ने क्रूस ढोने में येसु की सहायता की थी अतः वह येसु
के दुखःभोग का सहभागी बन गया था।″
संत पापा ने कहा कि हम येसु के शिष्य तभी
हो सकते हैं जब हम उनके साथ क्रूस उठाते हैं यदि हम उनके साथ क्रूस नहीं उठाते है तो
हम उनसे अलग रास्ते पर चल रहे है जो अच्छा हो सकता है किन्तु सच्चा नहीं।
शिष्यों
के सम्मुख येसु अपनी पहचान प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट रूप से बतला देना चाहते हैं कि
वे, ″ईश पुत्र मसीह हैं जिन्हें पिता द्वारा अभिषिक्त किया गया है तथा एक मिशन सौंपा
गया है उसके तहत उन्हें घोर दुःख उठाना है, नेताओं और महायाजकों द्वारा तिरस्कृत किया
जाना, मार डाला जाना तथा तीसरे दिन जी उठना है। मानव मुक्ति का यही एक मात्र रास्ता है।″
शिष्य येसु को एक मसीह रूप में स्वीकार करते हैं किन्तु मसीह रूप में उनके मिशन को
समझने में असमर्थ हैं।
संत पापा ने कहा पाप कितना घिनौना है किन्तु ईश्वर का
प्यार महान है जिसके कारण उन्होंने हमें बचाने के लिए इस रास्ते को अपनाया अतः हम क्रूस
के बिना येसु के मानव मुक्ति कार्य को नहीं समझ सकते हैं।
संत पापा ने कहा कि
हमारा ख्रीस्तीय जीवन सीरीनी सीमोन के समान दूसरों के लिए मददगार हो न कि हम ख्रीस्तीय
होने का श्रेय मात्र पायें। निश्चय ही, ख्रीस्तीय होना एक कृपा है।