इटली के फादर पियो नाम से विख्यात "पादरे
पियो" का जन्म इताली गाँव पियेत्रेलचीना में, 25 मई, सन् 1887 ई. को हुआ था। जन्म के
अवसर पर माता पिता ने उन्हें असीसी के सन्त फ्राँसिस को समर्पित कर उनका नाम फ्राँन्चेस्को
रख दिया था। बाल्यकाल से फाँन्चेस्को का मन ईश्वर में लगा रहता था। 16 वर्ष का आयु में
उन्होंने फ्राँसिसकन कैपुचिन धर्मसमाज में प्रवेश पा लिया था तथा 1910 में पुरोहित अभिषिक्त
कर दिये गये थे। इसी समय से उन्होंने पादरे पियो नाम धारण कर लिया था।
20
सितम्बर, सन् 1918 ई. की बात हैः एक विशाल क्रूस की प्रतिमा के आगे पादरे पियो घुटने
टेके हुए थे अचानक उनकी हथेलियों पर प्रभु येसु के घाव बन गये। इस प्रकार, कलीसिया के
इतिहास में पादरे पियो प्रभु येसु के घावों से चिह्नित पहले पुरोहित सिद्ध हुए। चिकित्सकों
को घावों का कोई प्राकृतिक कारण नहीं मिला। चमत्कारिक ढंग से सन् 1968 ई. में उनकी मृत्यु
के क्षण ही वे घाव ग़ायब हो गये।
50 वर्षों तक पादरे पियो अपनी हथेलियों
पर येसु के घावों का कष्ट भोगते रहे किन्तु मृत्यु के क्षण ये केवल ग़ायब ही नहीं हुए
बल्कि उनका नामोनिशाँ तक मिट गया तथा उनकी खाल बिलकुल नई हो गयी। 50 वर्षों पूर्व पादरे
पियो ने इस बात की भविष्यवाणी कर दी थी कि मृत्यु के क्षण उनके सभी घावों को चंगाई मिलेगी।
पादरे पियो से मुलाकात करने का सौभाग्य प्राप्त करनेवाले कई लोगों बताया
है कि उनके घावों से निकलनेवाले रक्त से फूलों की खुश्बू आती थी। यह भी कहा जाता है कि
उन्हें एकसाथ दो जगहों पर उपस्थित होने का वरदान भी प्राप्त था। पादरे पियो दिन में दस
से 12 घण्टे लोगों के पापस्वीकार सुनते तथा पुनर्मिलन संस्कार की कृपा प्रसारित करते
रहते थे। कई पश्चातापी व्यक्तियों को वे ईश्वर की ओर अभिमुख करने में वे सफल हुए। कई
लोगों को उनकी मध्यस्थता से शारीरिक एवं मानसिक रोगों से मुक्ति मिली।
23 सितम्बर,
सन् 1968 ई. को, 81 वर्ष की आयु में, पादरे पियो का निधन हो गया था। उनके अन्तयेष्टि
याग में लगभग एक लाख श्रद्धालु उपस्थित हुए थे। 16 जून, सन् 2002 को सन्त पापा जॉन पौल
द्वितीय ने पादरे पियो को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। उनकी सन्त घोषणा
समारोह में इटली तथा विदेश से लगभग पाँच लाख तीर्थयात्री रोम पहुँचे थे। 23 सितम्बर को
पियेत्रेलचीना के सन्त पियो का पर्व मनाया जाता है।
चिन्तनः "प्रभु का नियम
सर्वोत्तम है; वह आत्मा में नवजीवन का संचार करता है। प्रभु की शिक्षा विश्वसनीय है;
वह अज्ञानियों को समझदार बनाती है। प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं, वे हृदय को आनन्दित
करते हैं। प्रभु की आज्ञाएं स्पष्ट हैं; वे आँखों को ज्योति प्रदान करती हैं। प्रभु की
वाणी परिशुद्ध है; वह अनन्त काल तक बनी रहती है। प्रभु के निर्णय सही है; वे सब-के-सब
न्यायसंगत हैं। वे सोने से अधिक वांछनीय हैं, परिष्कृत सोने से भी अधिक वांछनीय। वे मधु
से अधिक मधुर हैं, छत्ते से टपकने वाले मधु से भी अधिक मधुर"(स्तोत्र ग्रन्थ 19:08-11)।