तिरानाः पुरोहित और धर्मबहनें सेन्ट पौल महागिरजाघर में सन्त पापा के साथ
तिराना, रविवार, 21 सितम्बर सन् 2014 (सेदोक): अलबानिया के याजकवर्ग ने रविवार को तिराना
स्थित सेन्ट पौल महागिरजाघर में सन्त पापा फ्राँसिस के साथ सान्ध्य वन्दना का पाठ कर
उनका सन्देश सुना।
साम्यवादी काल के दौरान ख्रीस्तीय धर्म के सभी आराधना स्थलों
के ध्वस्त कर दिये जाने के बाद सन् 2002 में नये सिरे से निर्मित महागिरजाघर का अनुष्ठान
किया गया था। इसकी विशाल रंगीले शीशे की खिड़कियों पर सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय तथा
कोलकाता की मदर तेरेसा की तस्वीरें बनी हैं। महागिरजाघर में 700 व्यक्तियों के बैठने
की व्यवस्था है।
अलबानिया की कलीसिया की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर यदि ग़ौर करें
तो पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के पतन के बाद चार नवम्बर, सन् 1990 को पहली बार स्कूटरी
के ख्रीस्तीय कब्रस्तान पर, धार्मिक गतिविधियों पर लगे सभी आधिकारिक प्रतिबन्धों की परवाह
न करते हुए ख्रीस्तयाग अर्पित किया गया था। 26 वर्ष तक कारावास व्यतीत करनेवाले काथलिक
पुरोहित डॉन सिमोन जुबानी द्वारा अर्पित इस ख्रीस्तयाग समारोह में मुसलमानों सहित 5,000
श्रद्धालु उपस्थित हुए थे। इसी घटना के बाद अलबानिया की ततकालीन सरकार ने भक्ति और आराधना
पर लगे सभी प्रतिबन्धों को हटाने की घोषणा कर दी थी।
सन् 1991 में 30 वर्ष बाद
अलबानिया में एक काथलिक पुरोहित को अभिषिक्त किया गया था। इसी समय वाटिकन के एक प्रतिनिधिमण्डल
ने अलबानिया की यात्रा कर स्कूटरी में "काथलिक एक्शन" समूह तथा विश्वव्यापी काथलिक उदारता
संगठन कारितास की अलबानियाई शाखा का सूत्रपात किया था। परमधर्मपीठ तथा अलबानिया के बीच
कूटनैतिक सम्बन्धों की स्थापना भी इसी समय की गई थी तथा भारत के कार्डिनल आयवन डायस प्रथम
परमधर्मपीठीय राजदूत नियुक्त किये गये थे। सन्त 1993 में सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने
अलबानिया की यात्रा कर देश में धार्मिक स्वतंत्रता के वसन्त का उदघाटन किया था।
रविवार
सान्ध्य वन्दना के अवसर पर सन्त पापा का सन्देश सुनने के लिये तिराना के सेन्ट पौल महागिरजाघर
में अलबानिया के 07 धर्माध्यक्ष, लगभग 150 पुरोहित, 400 धर्मबहनें तथा गुरुकुल छात्र
एवं लोकधर्मी संगठनों के सदस्य उपस्थित थे।