तिरानाः अलबानिया में सन्त पापा फ्राँसिस का हार्दिक स्वागत
तिराना, 21 सितम्बर सन् 2014 (सेदोक): सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु, सन्त
पापा फ्राँसिस ने रविवार 21 सितम्बर को अलबानिया की प्रेरितिक यात्रा की। यह यात्रा कलीसिया
के परमाध्यक्ष सन्त पापा फ्राँसिस की चौथी अन्तरराष्ट्रीय प्रेरितिक यात्रा है। इटली
से बाहर यूरोप में सन्त पापा फ्राँसिस की यह पहली यात्रा है।
यूरोपीय महाद्वीप
में अपना सन्देश प्रसारित करने के लिये सन्त पापा फ्राँसिस ने सर्वप्रथम अलबानिया को
चुना जहाँ दशकों तक काथलिक धर्मानुयायी नास्तिकतावादी साम्यवादी सरकार के शासनाधीन दमन
चक्र का शिकार बनाये गये थे। काथलिक धर्म के इन्हीं शहीदों के प्रति श्रद्धार्पण हेतु
सन्त पापा फ्राँसिस ने अलबानिया की यात्रा की ताकि सम्पूर्ण यूरोप को उसकी ख्रीस्तीय
जड़ों का स्मरण दिलाया जा सके तथा उपभोक्तावाद एवं भौतिकतावाद के उन्माद में डूबे यूरोप
के लोगों को इस तथ्य के प्रति सचेत कराया जा सके कि इस समय उनके महाद्वीप में व्याप्त
समस्याएँ जैसे आर्थिक संकट, युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी एवं भविष्य की चिन्ता तथा विविधता
का भय आदि का मूल कारण मानवीय मूल्यों को खोना ही रहा है।
रविवार को सन्त पापा
फ्राँसिस रोम समयानुसार प्रातः साढ़े सात बजे रोम के फ्यूमीचीनों अन्तरराष्ट्रीय हवाई
अड्डे से अलबानिया के लिये रवाना हुए। डेढ़ घण्टे की हवाई यात्रा के उपरान्त वे तिराना
के मदर तेरेसा अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पधारे जहाँ अलबानिया में परमधर्मपीठ के राजदूत
महाधर्माध्यक्ष रामीरो मोलीनेर, अलबानिया के प्रधान मंत्री एडी रामा, अलबानिया के विदेश
मंत्री एवं संस्कृति मंत्री सहित अनेक कलीसियाई एवं सरकारी उच्चाधिकारियों ने ससम्मान
उनका स्वागत किया।
किसी राष्ट्र में सन्त पापा की यात्राओं के दौरान सड़कों के
ओर छोर उस देश एवं वाटिकन के ध्वजों को फहराकर विशिष्ठ अतिथि का स्वागत करना सामान्य
बात है किन्तु अलबानिया की राजधानी तिराना की सड़कों पर रविवार को वाटिकन अथवा अलबानिया
के ध्वज नहीं दिखाई दिये बल्कि अलबानिया के 40 शहीदों के पोस्टरों ने इन ध्वजों की जगह
ले ली। इन शहीदों ने सन् 1944 ई. से नेशनल लिबरेशन पार्टी के नेता एनवर होक्सा के तानाशाही
शासनकाल में भयावह उत्पीड़न एवं यातनाएं सही थीं तथा प्रभु येसु ख्रीस्त में अपने विश्वास
के कारण मार डाले गये थे। कार्डिनल सेपे के शब्दों में: "अलबानिया की कलीसिया ने उचित
ही 20 वीं शताब्दी के शहादतनामे के सुनहरें पृष्ठों पर अपनी जगह बना ली है।"
दशकों
के साम्यवादी शासन के उपरान्त सन् 1992 में अलबानिया में धर्म पालन पर लगे प्रतिबन्ध
हटाये गये जिसके दस वर्ष बाद सन् 2002 में, परमधर्मपीठीय सुसमाचार प्रचार परिषद के अध्यक्ष
कार्डिनल क्रेशेन्सियो सेपे द्वारा इन 40 शहीद प्रभु सेवकों की सन्त घोषणा प्रक्रिया
आरम्भ की गई थी। पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के पतन के बाद सन् 1991 ई. में अलबानिया ने
पुनः वाटिकन के साथ कूटनैतिक सम्बन्धों की स्थापना कर ली थी तथा भारत के कार्डिनल आयवन
डायस पहले परमधर्मपीठीय राजदूत नियुक्त किये गये थे।
अलबानिया की कुल आबादी सवा
32 लाख है जिनमें 56 प्रतिशत इस्लाम धर्मानुयायी, 16 प्रतिशत काथलिक, लगभग 07 प्रतिशत
ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीय धर्मानुयायी हैं। इनके अतिरिक्त, 02 प्रतिशत यहाँ 13 वीं शताब्दी
के सूफी रहस्यवादी सन्त हाजी बेकताश द्वारा स्थापित धर्म बेकताशी को माननेवाले मुसलमान
हैं तथा 5.7 प्रतिशत अन्य धर्मों के अनुयायी हैं। लगभग 16 प्रतिशत लोग किसी धर्म को नहीं
मानते हैं।