2014-09-01 12:38:11

प्रेरक मोतीः सन्त गाईल्स या सन्त ईजिदियो (650-710)


वाटिकन सिटी, 01 सितम्बर सन् 2014:

सन्त गाईल्स यूनानी थे जिनका जन्म आथेन्स के एक कुलीन परिवार में सन् 650 ई. के लगभग हुआ था। ग्रीक तथा फ्रेंच भाषा में ये सन्त गाईल्स तथा स्पानी एवं इताली भाषथा में सन्त ईजिदियो के नाम से जाने जाते हैं।


उनकी धर्मपरायणता एवं ज्ञान इतना अधिक प्रखर था कि अपने ही देश में वे प्रशंसा के पात्र बन गये थे किन्तु, अधिक प्रशंसा और लोकप्रियता के भय से, विनीत गाईल्स ने ग्रीस से पलायन कर लिया था तथा जलमार्ग से होते हुए फ्राँस की ओर निकल गये थे। शुरु में उन्होंने रोन नदी के निकट जंगलों में शरण ली, फिर गार्द नदी के तट पर और अन्त में नाईन्स धर्मप्रान्त में।


ईश्वर के साथ सम्वाद में गाईल्स ने कई वर्ष अकेलेपन में व्यतीत कर दिये। अपनी प्रार्थनाओं द्वारा वे लोगों को चंगाई प्रदान करने लगे जिसके लिये फ्राँस में दूर दूर तक वे विख्यात हो गये। गाईल्स अपना अधिकाधिक समय जंगलों में तपस्या, ध्यान और मनन चिन्तन में व्यतीत किया करते थे। किंवदन्ती है कि गाईल्स के जंगलों में निवास के दौरान उनका एकमात्र साथी एक हिरन था जिसे लाल हिरणी भी कहा गया है। कुछेक वृत्तान्तों में बताया गया है कि इस हिरणी के दूध से ही गाईल्स को पोषण मिलता रहा था। उस समय वाम्बा नाम के राजा के शिकारी जंगलों में घूमा करते थे। गाईल्स के जंगलों में वास से वे वाकिफ़ थे। एक दिन जब वे शिकार पर गये उन्होंने धनुष बाण से लाल हिरणी को निशाना बनाय किन्तु बाण गाईल्स को लग गया और वे घायल हो गये। इसीलिये सन्त गाईल्स को विकलांग या अलग तरह से सक्षम लोगों का संरक्षक सन्त माना गया है।


शिकार की इस घटना के बाद राजा वाम्बा एकान्तवासी भिक्षु गाईल्स के निकट आये और उनसे बहुत प्रभावित हुए। राजा वाम्बा ने उन्हें अपने दरबार का पुरोहित नियुक्त करना चाहा किन्तु उनकी विनम्रता ने इस सम्मान का बहिष्कार कर दिया। उन्होंने राजा से केवल कुछ सेवक ले लिये जो बाद उनके साथ जंगल में जीवन यापन करने लगे। राजा ने जंगल में ही भिक्षु गाईल्स के लिये एक मठ का निर्माण करवा दिया। यही मठ बाद में जाकर सन्त-गाईल्स-दु-गार्द नाम से विख्यात हुआ। गाईल्स ने इस मठ में बेनेडिक्टीन मठवासी नियमों को लागू किया और इसके वे प्रथम मठाध्यक्ष बने। आठवीं शताब्दी के आरम्भ में, लगभग सन् 710 ई. में, इसी मठ में ग्रीस के काथलिक भिक्षु गाईल्स का निधन हो गया। विभिन्न बीमारियों से रक्षा हेतु जिन 14 सन्तों की मध्यस्थता की प्रार्थना की जाती है उनमें सन्त गाईल्स भी शामिल हैं। सन्त गाईल्स को विकलांगों के अतिरिक्त, भिक्षुओं, स्तनपान करानेवाली महिलाओं, कैंसर एवं मिर्गी रोगियों, कुष्ठ रोगियों, मानसिक विकार से ग्रस्त व्यक्तियों तथा निर्धनों का संरक्षक सन्त घोषित किया गया है।


फ्राँस के सन्त-गाईल्स-दु-गार्द मठ में गाईल्स की पवित्र समाधि है जो अब आर्ल्स से सान्तियागो दे कोम्पोस्तेला जानेवाले मार्ग यानि सन्त जेम्स के तीर्थ तक जानेवाले रास्ते से गुज़रनेवाले तीर्थयात्रियों का मुख्य पड़ाव बन गया है। ग्रीस के काथलिक भिक्षु, सन्त गाईल्स अर्थात् सन्त ईजिदियो, का पर्व 01 सितम्बर को मनाया जाता है।


चिन्तनः सतत् प्रार्थना, ध्यान, मनन चिन्तन एवं बाईबिल पाठ द्वारा हम प्रभु ईश्वर की खोज में लगे रहें। इसायाह के ग्रन्थ के 61 अध्याय के तीसरे पद में हम पढ़ते हैं: "राख के बदले उन्हें मुकुट पहनाऊँ, शोक-वस्त्रों के बदले आनन्द का तेल प्रदान करूँ और निराशा के बदले स्तुति की चादर ओढाऊँ। उनका यह नाम रखा जायेगाः ''सदाचार के बलूत, प्रभु की महिमा प्रकट करने वाला उद्यान''।








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