सेओल, 16 अगस्त सन् 2014 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस के दर्शन करने और साथ ही कोरिया
के 124 प्रभु सेवकों के धन्य घोषणा समारोह में शरीक होने के लिये सम्पूर्ण दक्षिण कोरिया
से लगभग आठ लाख श्रद्धालु शनिवार, 16 अगस्त को सेओल के ग्वाँगघुआमून प्लाज़ा पर एकत्र
हुए।
सेओल के सेओ-सू-मून तीर्थ से लगभग दो किलो मीटर की दूरी पर ग्वाँगघुआमून
प्लाज़ा स्थित है। इस तीर्थ से प्लाज़ा तक के मार्ग को "मौत का रास्ता" और "शहीदों का
पथ" कहा जाता है इसलिये कि 18 वीं एवं 19वीं शताब्दियों में काथलिक धर्म का परित्याग
करने से इनकार करनेवाले कोरिया के लोगों को प्रायः सेओल के ग्वाँगघुआमून प्लाज़ा से सेओ-सू-मून
द्वार तक पैदल ले जाया जाता था तथा सार्वजनिक रूप से मार डाला जाता था।
शनिवार
के ख्रीस्तयाग के दौरान सन्त पापा फ्राँसिस ने कोरिया में 18 वीं शताब्दी में कोरियाई
कलीसिया की नींव रखने वाले प्रभु सेवक पौल यून जी-चूँग तथा उनके 123 साथी शहीदों को धन्य
घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया। पौल यून जी-चूँग कोरिया के पहले काथलिक शहीद थे
जिन्होंने अपनी माता की अन्तयेष्टि कन्फ्यूसियन रीति के अनुसार सम्पादित करने से मना
कर दिया था। उन्होंने कन्फ्यूसियन अधिकारियों का विरोध किया तथा सबके समक्ष काथलिक विश्वास
का साक्ष्य प्रदान किया इसीलिये उन्हें मार डाला गया था।
काथलिक कलीसिया द्वारा
प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार सन् 1784 ई. में काथलिक धर्म कोरियाई प्रायद्वीप में स्थापित
किया गया था जिसके बाद के प्रथम 100 वर्षों के दौरान, कन्फ्यूसियन धर्म को माननेवाले
जोसेओन वंश के शासनकाल में लगभग 10,000 कोरियाई काथलिकों को प्रभु ख्रीस्त में उनके विश्वास
के ख़ातिर मार डाला गया था।
शनिवार के धन्य घोषणा समारोह में सम्पूर्ण दक्षिण
कोरिया से लगभग आठ लाख श्रद्धालु उपस्थित हुए। चूँकि, दक्षिण कोरिया की पाँच करोड़ की
आबादी में काथलिक धर्मानुयायी केवल दस प्रतिशत हैं यह संख्या वास्तव में महत्वपूर्ण
है। उच्च तापमान, गर्मी एवं नमी से भरे चिपचिपे मौसम की परवाह न करते हुए ख्रीस्तायग
समारोह के निर्धारित समय से घण्टों पूर्व लाखों श्रद्धालु प्लाज़ा के इर्द गिर्द जमा
होना शुरु हो गये थे। सन्त पापा के प्लाज़ा में आते ही उन्होंने विशाल पोस्टरों एवं रंगबिरंगे
ध्वजों को उठाते हुए जयनारों एवं करतल ध्वनि से उनका भावपूर्ण स्वागत किया।
शनिवार
को ख्रीस्तयाग प्रवचन में सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा कि कोरिया के शहीद केवल कोरिया की
कलीसिया के लिये नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व की कलीसियाओं के लिये बलिदान का सर्वोत्तम
आदर्श हैं।