2014-08-15 09:09:44

ख्रीस्तीय आध्यात्मिक और सामाजिक नवीनीकरण के साधन


सिओल, शुक्रवार 15 अगस्त, 2014 (सेदोक, वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने दक्षिण कोरिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन दायजोन धर्मप्राँत में करीब पचास हज़ार विश्वासियों के साथ शांति और मेल-मिलाप के लिये यूखरिस्तीय बलिदान चढाया। 15 अगस्त का दिन भारत के समान ही दक्षिण कोरिया का स्वतंत्रता दिवस है। 15 अगस्त सन् 1945 ई. के बाद दक्षिण कोरिया को जापानी दासता से मुक्ति प्राप्त हुई थी।
अपने प्रवचन में संत पापा ने कहा कि सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के साथ माता मरिया के स्वर्गोद्ग्रहण का महोत्सव मनाते हुए आज हम माता मरिया के समान ही आमंत्रित किये जाते हैं ताकि हम पाप और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर येसु के साथ उसके अनन्त राज्य के सहभागी बनें।

कोरियावासी इस त्योहार को और ही उत्साह से मनाते हैं क्योंकि वे अपने राष्ट्र के इतिहास में माता मरिया की मध्यस्थता का अनुभव करते हैं।
संत पौल हमें बताते हैं कि येसु नये आदम हैं जिन्होंने अपने पिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी बनकर पाप और दासता नष्ट कर जीवन और मुक्ति का राज्य स्थापित किया है।
सच्ची स्वतंत्रता ईश्वर की इच्छा को गले लगाने में है। इस सत्य को हम माता मरिया से सीखते है। सच्ची स्वतंत्रता में हम ईश्वर और अपने भाई बहनों को निःस्वार्थ रूप से प्यार करते हैं और आशापूर्ण जीवन जीते हैं।
आज हम माता मरिया से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें मदद दे कि हम उस राजशाही स्वतंत्रता के प्रति वफ़ादार रहें जिसे हमने अपने बपतिस्मा में पाया था ताकि हम दुनिया को ईश्वर की इच्छा के अनुसार बदल सकें और कोरियाई समाज के लिये कार्य कर सके। कोरिया के ख्रीस्तीय इस राष्ट्र के प्रत्येक स्तर में आध्यात्मिक और सामाजिक नवीकरण के साधन बन सकें।
माता मरिया कोरिया काथलिक कलीसिया को मदद दे ताकि वह सांसारिकता के उन सब प्रलोभनों पर विजय प्राप्त कर सकें जो सच्ची आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों तथा स्वार्थ और विवाद पैदा करने वाली बेलगाम प्रतिस्पर्द्धा की भावना पर विजय प्राप्त करे।

ताकि कोरियाई समाज अमानुषिक आर्थिक मॉडल को रोकें जो गरीबी के विभिन्न रूपों को जन्म देती, श्रमिकों को दरकिनार करती, मृत्य की संस्कृति जो ईश्वर को नकारती, मानव मर्यादा का सम्मान नहीं करती, का विरोध करे।
इन सब कार्यों को करने के लिये हम माता मरिया की ओर देखें जो आशा की माँ है। माता मरिया का गीत हमें याद दिलाता है कि ईश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को कदापि नहीं भूलते हैं।
ऐसी आशा सुसमाचार से आती है जो निराशा को समाप्त करती है। निराशा एक कैंसर के समान समाज में फैलती जाती है जिससे ग्रस्त लोग बाहर से धनी लगते हैं पर अन्दर से दुःखी और खोखले होते जाते हैं।
आज हम प्रार्थना करें कि हमारी युवा पीढ़ी आनन्द और आत्मविश्वास का जीवन जीये और आशा को न खोये।
माता मरिया की मध्यस्थता से हम ईश्वर से कृपा माँगे कि हम स्वतंत्रता का उपयोग बुद्धिमत्ता से करें और अपने भाई-बहनों की सेवा करें जो विश्वास का चिह्न बने ताकि एक दिन हम स्वर्गराज्य में इसकी पूर्णता को प्राप्त कर सकें।








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