वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार 14 अगस्त, 2014 (सेदोक, वीआर) संत पापा फ्राँसिस ने दक्षिण
कोरिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन कोरियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय समिति के
सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कोरिया आना उनके लिये एक अद्वितीय वरदान है जब उन्होंने
अपनी आँखों से यहाँ की जीवन्त कलीसिया को देखा है।
दक्षिण कोरिया के धर्माध्यक्षों
के कार्यों की सराहना करते हुए संत पापा ने कहा कि वे दो बातों पर बल देना चाहते हैं
स्मृति इतिहास का संरक्षक होना और आशा का संरक्षक होना।
स्मृति के संरक्षक बनते
हुए हम पौल यून जी चुन्ग और उनके साथियों के जीवन के लिये हम ईश्वर को धन्यवाद दें जिन्होंने
अपने प्राणों का बलिदान कर कलीसिया का बीज बोया है और जिसका फल अपार हैं। कोरिया की कलीसिया
शहीदों के रक्त का फल है। येसु पर विश्वास के लिये साहसपूर्ण बलिदान करने वाले शहीदों
आप उत्तराधिकारी है।
आप एक समृद्ध इतिहास के भी उत्तराधिकारी है जो आज आपके विश्वास,
अध्यवसाय और मुख्य रूप से लोकधर्मियों के प्रयास से बहुत मजबूत हो गया है। दक्षिण
कोरिया के इतिहास की एक विशेष बात है कि यहाँ की कलीसिया का आरंभ सीधे रूप से ईशवचन से
आरंभ हुआ।
पुरानी यादों या इतिहास का संरक्षक बनने का अर्थ है यह स्वीकार
करना कि धार्मिक प्रगति के पीछे ईश्वर का हाथ है।
इसके साथ ही ज़रूरत है आशा
के संरक्षक बनने की उस आशा को जो ईश्वर की कृपा येसु की दया और शहीदों के बलिदान से प्रेरित
होती है। आज हम इसी आशा की घोषणा करने के लिये बुलाये गये।
आशा के संरक्षक होने
का अर्थ निर्धनों की सहायता और काथलिक कलीसिया की सामाजिक शिक्षा के अनुसार कलीसियाई
जीवन के हर पहलु में इसका आभास मिले।
संत पापा ने धर्माध्यक्षों से कहा कि वे
इतिहास और आशा के संरक्षक के रूप में आप कोरियाई कलीसिया की एकता, पवित्रता और उत्साह
को सदा प्रोत्साहन दीजिये। इस कार्य में शहीदों द्वारा बोये गये बीज विश्वसियों द्वारा
सिंचित पौधे को माता मरिया की सहायता प्राप्त हो।