2014-08-11 14:58:08

डरो मत


वाटिकन सिटी, सोमवार, 11 अगस्त 2014 (वीआर सेदोक)꞉ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 10 अगस्त को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा,
″अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
सुप्रभात,
आज का सुसमाचार पाठ झील के पानी पर येसु के चलने की घटना को प्रस्तुत करता है। (मती.14.22-33) रोटी एवं मछली के चमत्कार के पश्चात् येसु ने शिष्यों को नाव पर सवार होकर झील की दूसरी ओर बढ़ने की सलाह दी तथा भीड़ को विदा करने का बाद, वे प्रार्थना करने के लिए अकेले पर्वत पर चले गये और देर रात तक प्रार्थना करते रहे। उधर झील में नाव भारी आँधी के चपेट में आ गयी। लगभग उसी समय आँधी के बीच येसु पानी के ऊपर चलते हुए शिष्यों के नजदीक पहुँचे। जब शिष्यों ने येसु को पानी पर चलते देखा तो वे भयभीत हो गये। उन्होंने उन्हें भूत समझ लिया किन्तु ″ईसा ने तुरन्त उन से कहा, ''ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।″ (पद.27) पेत्रुस ने अपने विशिष्ट उत्साह में येसु से पूछा, ''प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की आज्ञा दीजिए। ईसा ने कहा, ‘आ जाओ।’ पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा; किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, ''प्रभु! मुझे बचाइए''। ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया।″ (पद. 28.31)

संत पापा ने कहा, ″यह कहानी प्रेरित संत पेत्रुस के विश्वास की सुन्दर छवि प्रस्तुत करता है। येसु की आवाज ″आ जाओ″, में वह झील के तट पर येसु द्वारा अपने प्रथम बुलावे की प्रतिध्वनि को सुनता है तथा पुनः एक बार नाव छोड़ गुरु की ओर आगे बढ़ता है। वह पानी पर चलने का प्रयास करता है। प्रभु के बुलावे का दृढ़ता एवं उदारता पूर्वक प्रत्युत्तर, हमेशा असाधारण बातों को घटित करता है किन्तु जैसे ही पेत्रुस अपनी नज़र येसु पर से हटा लेता है वह पानी में डूबने लगता है। येसु हर परिस्थिति में हमारे साथ उपस्थित रहते हैं अतः जब पेत्रुस ने येसु को पुकारा तब उन्होंने उन्हें डूबने के ख़तरे से बचा लिया।″
उन्होंने कहा कि पेत्रुस के व्यक्तित्व में, उनके गुणों एवं खामियों में हमारे विश्वास की कमजोर, लाचार और बेचैन किन्तु विजयी छवि परिलक्षित होती है। संसार की आँधी और खतरों के बीच ख्रीस्तियों का विश्वास पुनजीर्वित प्रभु से मिलने हेतु आगे बढ़ता है।

संत पापा ने कहा कि उस दृश्य में एक और बहुत महत्वपूर्ण घटना घटी, ″वे नाव पर चढ़े और वायु थम गयी। जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया ''आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं।″ (पद.32-33) नाव पर सवार शिष्यों की तरह हम भी कमजोर, शंका, भय तथा विश्वास की कमी महसूस करते हैं किन्तु जब येसु उस नाव पर आते हैं तो वहाँ की परिस्थिति बदल जाती है। ख्रीस्त में विश्वास के कारण सभी एकजुटता का अनुभव करते हैं। नगण्य एवं डरपोक व्यक्ति भी जब घुटनों के बल गिरकर अपने गुरु को ईश पुत्र के रूप में पहचानता है तो वह भी महान बन जाते हैं। संत पापा ने कहा कि यह कलीसिया के लिए एक बहुत प्रभावशाली प्रतीक है। एक नाव को आँधी का सामना करना पड़ता है तथा कभी-कभी डूबने के कगार पर पहुँच जाती है किन्तु जो उसे बचा लेता है वह है उनके सदस्यों की गुणवत्ता एवं साहस। विश्वास अंधकार एवं कठिनाईयों की स्थिति में भी चलने का साहस प्रदान करता है। विश्वास निरंतर येसु की उपस्थिति की शांति प्रदान करती है उनका हाथ हमें हर ख़तरे से बचा लेता है। हम सभी उसी नाव पर सवार हैं। जब हम घुटनों के बल गिरकर हमारे जीवन के मालिक येसु की आराधना करते हैं तब हम अपनी ख़ामियों एवं कमज़ोरियों के बावजूद सुरक्षित महसूस करते हैं। हम इसके लिए सदा माता मरियम से प्रार्थना करें तथा उन्हें दृढ़ता पूर्वक पुकारें।

इतना कहने के बात संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आर्शीवाद दिया। देवदूत प्रार्थना समाप्त करने के पश्चात् संत पापा ने 13 से 18 अगस्त तक कोरिया में अपनी आगामी प्रेरितिक यात्रा की जानकारी दी तथा यात्रा की सफलता के लिए प्रार्थना की अपील की।
अंत में उन्होंने सभी को शुभ रविवार की मंगलकामनाएँ अर्पित की।








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