प्रेरक मोतीः सन्त आल्फोन्स मरिया दे लिगोरी (1696-1787)
वाटिकन सिटी, 01 अगस्त सन् 2014:
सन्त आल्फोन्स मरिया दे लिगोरी एक दक्ष वकील
होने के साथ साथ इतालवी काथलिक धर्माध्यक्ष, आध्यात्मिक लेखक, दर्शनशास्त्री तथा धर्मतत्ववैज्ञानिक
थे। आल्फोन्स मरिया दे लिगोरी का जन्म 27 सितम्बर सन् 1696 ई. को इटली के नेपल्स शहर
स्थित मरियानेल्ला में हुआ था। उनका लालन पालन एक धर्मपरायण परिवार में हुआ था। बाल्यकाल
से ही आल्फोन्स अपने पिता डॉन जोसफ के साथ गिरजाघर जाया करते तथा धर्मविधियों में शरीक
हुआ करते थे। कई अवसरों पर वे उनके साथ आध्यात्मिक साधनाओं में भाग लिया करते थे।
16
वर्ष की आयु में आल्फोन्स मरिया दे लिगोरी ने नेपल्स के विश्वविद्यालय से वकालात में
डॉक्टरेड की उपाधि प्राप्त कर ली थी। लगभग आठ वर्षों तक वे वकालात करते रहे जिस दौरान,
बताया जाता है कि, उन्होंने कोई भी मामला हारा नहीं। वकालात में दक्ष होने के बावजूद
आल्फोन्स अपने जीवन को खोखला महसूस किया करते थे। उन्होंने प्रार्थना और चिन्तन में मन
लगाया तथा एक केस हारने के बाद निश्चय कर लिया कि वकालात छोड़कर वे प्रभु में अपना मन
लगायेंगे। वे निर्धनों की सेवा तथा रोगियों की भेंट में अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
सन्
1723 ई. में अगस्त महीने की 28 तारीख को उन्हें दिव्य दर्शन प्राप्त हुए जिसके बाद उन्होंने
अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर के प्रति समर्पित करने का निश्चय कर लिया। उनके इस फैसले का
परिवार के लोगों ने बहुत विरोध किया किन्तु आल्फोन्स अपना मन बना चुके थे। पौरोहित्य
के अध्ययन हेतु उन्होंने सन्त फिलिप नेरी को समर्पित गुरुकुल में पढ़ाई शुरु कर दी। 21
दिसम्बर सन् 1726 ई. को वे पुरोहित अभिषिक्त किये गये। नेपल्स में धर्मनिष्ठ श्रमिकों
के धर्मसमाज के संस्थापक धर्माध्यक्ष थॉमस फालकोआ तथा रहस्यवादी धर्मबहन सि. मरिया चेलेस्ते
की प्रेरणा एवं समर्थन से फादर आल्फोन्स मरिया दे लिगोरी ने सन् 1732 ई. में पुरोहितों
के लिये उद्धारकर्त्ता प्रभु ख्रीस्त को समर्पित रिडेम्पट्रिस धर्मसमाज की स्थापना की
तथा सन् 1743 ई. में महिलाओं के लिये मुक्तिदाता प्रभु ख्रीस्त की धर्मबहनें नामक धर्मसंघ
की स्थापना की। गाँवों में निर्धनों के बीच सुसमाचर का प्रचार तथा रोगियों की सेवा इन
धर्मसमाजों का प्रमुख मिशन था।
सन् 1762 ई. में, सन्त पापा के आदेश का पालन
करते हुए फादर आल्फोन्स मरिया दे लिगोरी नेपल्स शहर के निकटवर्ती गॉथ्स के सन्त आगाथा
धर्मप्रान्त के धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिये गये। अपने धर्माध्यक्षीय काल में उन्होंने
परिवारों को धर्मशिक्षा प्रदान करने, निर्धनों को भोजन कराने तथा रोगियों के उपचार हेतु
अनेक योजनाएँ आरम्भ की। साथ ही गुरुकुलों एवं पौरोहित्य प्रशिक्षण केन्द्रों में सुधार
किये। गुरुकुलों में उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया तथा ईशशास्त्र पर कई धार्मिक पुस्तकें
और प्रवचन लिखे। 01 अगस्त, सन् 1787 ई. को, धर्माध्यक्ष आल्फोन्सो मरिया दे लिगोरी का
निधन हो गया था। सन् 1839 ई. में सन्त पापा ग्रेगरी 15 वें ने आल्फोन्स मरिया दे लिगोरी
को सन्त घोषित किया था तथा सन् 1871 ई. में सन्त पापा पियुस नवम ने उन्हें कलीसिया के
आचार्य घोषित किया था।
चिन्तनः "बुद्धिमान् के शब्दों में प्रज्ञा का
निवास है, किन्तु लोग मूर्ख की पीठ पर लाठी मारते हैं। बुद्धिमान अपने ज्ञान का भण्डार
भरता रहता है। मूर्ख का बकवाद उसके विनाश का कारण बनता है। धनी की सम्पत्ति उसके लिए
किलाबन्द नगर है। कंगाल की गरीबी उसकी विपत्ति का कारण है। धर्मी की कमाई जीवन की ओर,
किन्तु विधर्मी की आमदनी पाप की ओर ले जाती है। जो अनुशासन में रहता, वह जीवन की ओर आगे
बढ़ता है; किन्तु जो चेतावनी की उपेक्षा करता, वह पथभ्रष्ट होता है" (सूक्ति ग्रन्थ अध्याय
10: 13-17)।