वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 4 जुलाई 2014 (वीआर सेदोक)꞉ रोम में 4 से 5 जुलाई को तपेदिक पर
अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन सम्पन्न होगा। जिसकी विषय वस्तु है, ″एक व्यापक पैमाने पर
देशों में तपेदिक के उन्मूलन की दिशा में।″ सम्मेलन का आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन
और यूरोपीय श्वसन सोसायटी द्वारा किया गया है। स्वास्थ्य संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के
अध्यक्ष कार्डिनल ज़ैगमंट जिमोस्की ने सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा, ″विश्व स्वास्थ्य
संगठन द्वारा सन् 1993 ई. में तपेदिक को एक वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थिति रूप में घोषित
करने से लेकर अब तक विश्व में टी. बी रणनीति को समझने हेतु कई प्रयास किये गये हैं जिनके
तहत मुख्य रूप से टी बी की चिकित्सा एवं रोक थाम हेतु वैश्विक विस्तार गति तेज पकड़ रहा
है। यह रिर्पोट किया गया है कि सन् 1995 से सन् 2012 तक 22 लाख टी. बी. पीड़ित लोगों
को बचाया गया है तथा 56 लाख लोगों की सफल चिकित्सा की गयी है। उन्होंने कहा कि यद्यपि
ये रिर्पोट उत्साह वर्धक हैं तथापि टी बी विश्वभर में फैली बीमारी होने के कारण अब भी
एक बड़ी चुनौती बनी हुई है अतः इसके पूर्ण समाधान हेतु अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति, अधिक
फंड, शोध, अधिक प्रयास एवं समाधान खोजने की आवश्यकता है। शोध में पाया गया है कि
यह बीमारी गरीबों को जल्द प्रभावित करती है चाहे विकसित देश में हो या विकासशील देश में।
शोध में यह भी पाया गया कि यह रोग कमज़ोर लोगों पर सहज आक्रमण करता है जैसे महिलाओं,
बच्चों, शरणार्थियों, कैदियों, बेघर तथा एड्स से पीड़ित लोगों पर। कार्डिनल जिमोस्की
ने कहा कि टी बी के उन्मूलन, उपचार तथा रोक थाम हेतु वर्ष 2015 के लिए बनी वैश्विक रणनीति
का मैं स्वागत करता हूँ। मेरी आशा है कि इसके उद्देश्यों को पूरा करने हेतु सम्मेलन एक
मार्ग प्रशस्त करे। उन्होंने यह भी कहा कि इस विनाशकारी रोग के उन्मूलन हेतु रणनीति
तैयार करने वालों एवं मेडिकल विभाग के ठोस प्रयास पर्याप्त नहीं है किन्तु आम नागरिकों,
संस्थाओं एवं समुदायों को इसके लिए सहयोग करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संत
पापा फ्राँसिस गरीबों तथा हाशिये पर जीवन यापन करने वाले लोगों के रक्षक माने जाते हैं,
उनका कहना है, ″हम में से कोई भी ग़रीबों, सामाजिक अन्याय के शिकार एवं निस्सहाय लोगों
के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने से बच नहीं सकते। उन्हें अपने ध्यान, सेवा, चिंतन
तथा राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र मानते हुए यह याद रखें कि ग़रीबों की सहायता की माँग
न केवल उदारता करती है किन्तु न्याय भी। यह हमारा परम कर्तव्य है कि सभी लोगों को स्वास्थ्य
का अधिकार दिलाने में मदद हम करें।