2014-06-14 16:26:46

‘विश्व मिशन रविवार’ 2014 के लिए संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी, शनिवार, 14 जून 2014 (वीआर सेदोक)꞉ संत पापा फ्राँसिस ने 8 जून को ‘विश्व मिशन रविवार’ हेतु एक संदेश प्रकाशित किया।
उन्होंने संदेश में लिखा, ″आज भी एक बड़ी संख्या येसु ख्रीस्त से अनभिज्ञ है इसलिए ‘अद जेंतेस’ अथार्त कलीसिया की प्रेरितिक कार्य को जारी रखना अति आवश्यक है। कलीसिया के प्रत्येक सदस्य इस प्रेरिताई में भाग लेने हेतु बुलाये गये हैं क्योंकि कलीसिया स्वाभाविक रूप से मिशनरी है। यह भेजे जाने के लिए निर्मित हुई है। विश्व मिशन रविवार एक सुनहरा अवसर है जब सभी महाद्वीपों के विश्वासी प्रार्थना एवं उदारता के ठोस कार्यों द्वारा युवा कलीसिया की सहायता करेंगे। यह कृपा एवं आनन्द का त्यौहार है क्योंकि पिता द्वारा भेजे गये पवित्र आत्मा इस कार्य में संलग्न लोगों को प्रज्ञा एवं समर्थ प्रदान करते हैं। इसमें आनन्द है क्योंकि पिता के पुत्र येसु ख्रीस्त ने संसार में सुसमाचार प्रचार के लिए हमें भेजा है।

संत पापा ने लूकस रचित सुसमाचार पर चिंतन करते हुए कहा, ″कि प्रभु ने ईश्वर के राज्य के सुसमाचार प्रचार हेतु 72 शिष्यों को दो-दो करके विभिन्न शहरों तथा गाँवों में भेजा। सुसमाचार प्रचार से लौटकर शिष्य आनन्दित थे किन्तु येसु ने कहा कि वे सुसमाचार प्रचार के कारण आनन्दित न हो वरन् इसलिए कि उनके नाम स्वर्ग में लिखे गये हैं।
दूसरी बिन्दु पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा कि चेले अत्यन्त खुश थे क्योंकि उन्हें लोगों में से अपदूतों को निकालने की शक्ति मिली थी किन्तु येसु ने उन्हें कहा कि वे उस शक्ति के लिए नहीं किन्तु प्यार के लिए आनंदित हों। शिष्यों को ईश्वर के प्रेम की सहभागिता प्राप्त थी किन्तु उन्हें उस प्रेम को अन्यों को बांटने की जिम्मेदारी भी दी गयी थी। येसु का प्यार पिता के पुत्र होने की अनुभूति से उत्पन्न होता है।
स्वर्ग राज्य के रहस्यों को प्रकट करने के लिए येसु पिता ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। ईश्वर उन रहस्यों को ऐसे लोगों को प्रकट नहीं करते जो खुद में केंद्रित हैं तथा खुद को सबसे अधिक ज्ञानी होने का दावा करते हैं। वे अपनी गुस्ताखी से बंधे हुए हैं तथा उनके पास ईश्वर के लिए कोई जगह नहीं है। दूसरी ओर दीन-हीन, विनम्र, साधारण, गरीब एवं हाशिये के लोग जिनकी आवाज कोई नहीं सुनता और जो अनेक चिंताओं से घिरें हैं, उन्हें येसु ‘धन्य’ की संज्ञा देते हैं।

″हाँ, पिता, यही तुझे अच्छा लगा।″ (लूक.10꞉21) सुसमाचार के ये शब्द येसु के आंतरिक उल्लास को प्रकट करता है। आज की दुनिया में सबसे बड़ा भय उपभोक्तावाद की है जो आत्मकेंद्रित किन्तु असंतुष्टि की भावना के कारण अकेलापन एवं पीड़ा उत्पन्न करता है। मानवता को ख्रीस्त द्वारा प्रदत्त मुक्ति को ग्रहण करना अति आवश्यक है। येसु के शिष्य वे हैं जो अपने आप से ज्यादा येसु के प्यार को महत्व देते हैं तथा ईश्वर के राज्य एवं सुसमाचार के आनन्द के प्रचार हेतु अत्यन्त उत्साहित हैं।
विश्व के कई हिस्सों में पुरोहिताई एवं समर्पित जीवन हेतु बुलाहट की कमी महसूस की जा रही है। सुसमाचार का आनन्द ख्रीस्त से मुलाकात कर तथा गरीबों की मदद द्वारा प्राप्त होती है। जहाँ खुशी है वहीं उत्साह तथा अन्यों के लिए ख्रीस्त को बांटने की चाह रूपी बुलाहट उत्पन्न होती है। प्रभावकारी प्रेरिताई के लिए प्रशिक्षण की भी अति आवश्यकता है।

ईश्वर खुशी से देने वाले को प्यार करते हैं। प्रिय भाइयो एवं बहनों, विश्व प्रेरितिक रविवार के दिन में सभी स्थानीय कलीसियाओं की याद करता हूँ। हम सुसमाचार के आनन्द को न खोयें। ख्रीस्त के साथ अपने प्रथम मधुर संबंध को याद करें जिसमें उन्होंने हमें प्यार की उष्मता से भर दिया था। ख्रीस्त के शिष्य उनकी उपस्थित की अनुभूति प्राप्त कर उनके प्रेम में सुदृढ़ बने रहते हैं।








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