सन्त ईफ्रेम साईरस सिरियाई काथलिक कलीसिया के
एक अति प्रिय सन्त हैं। ईफ्रेम का जन्म लगभग 306 ई. में, तुर्की के निसीबिस शहर में हुआ
था। सिरिया की सीमा से संलग्न इस शहर को आज नुसायबिन कहा जाता है। ईफ्रेम द्वारा रचित
भजनों से ज्ञात होता है कि उनके माता पिता आरम्भिक ख्रीस्तीय समुदाय के सदस्य थे। निसिबिस
के द्वितीय धर्माध्यक्ष जैकब के नेतृत्व में ईफ्रेम की शिक्षा दीक्षा सम्पन्न हुई थी
तथा धर्माध्यक्ष जैकब ने ही ईफ्रेम को सिरियाई शिक्षक नियुक्त किया था। अपनी शिक्षा प्रेरिताई
के तहत ही ईफ्रेम ने भजनों की रचना की तथा बाईबिल की विस्तृत व्याख्या की। वे निसिबिस
शहर के प्रमुख ख्रीस्तीय स्कूल के संस्थापक माने जाते हैं जो बाद में जाकर सिरियाई ऑरथोडोक्स
कलीसिया की प्रधान ज्ञानपीठ एवं प्रशिक्षण केन्द्र सिद्ध हुआ।
रोमी काथलिक
कलीसिया में सन्त ईफ्रेम को कलीसिया के आचार्य भी घोषित किया गया है। ईफ्रेम चौथी शताब्दी
के एक विपुल एवं प्रवीण भजन रचयिता एवं ईशशास्त्री थे। उन्होंने बहुत से भजनों एवं कविताओं
की रचना की तथा गद्य रूप में बाईबिल की विस्तृत व्याख्या भी की। ख्रीस्तीय धर्म के आरम्भिक
काल में जब कलीसिया अपधर्म एवं ग़ैरविश्वास के कारण संकट से गुज़र रही थी तब ईफ्रेम के
भजनों, कविताओं एवं व्याख्याओं ने व्यावहारिक धर्मशास्त्र का काम किया तथा लोगों को प्रशिक्षण
दिया।
सिरियक-भाषाई कलीसियाई परम्परा में ईफ्रेम को सर्वाधिक महत्वपूर्ण
धर्मशास्त्री एवं धर्मतत्व वैज्ञानिक माना जाता है। ईफ्रेम ने जीवन का अन्तिम चरण एडेसा
नगर में व्यतीत किया जहाँ लोगों को वे लोक धुनों में भजन सिखाया करते थे। लगभग एक दशक
तक एडेसा की प्रेरिताई के उपरान्त, 09 जून सन् 373 ई. को, ईफ्रेम का निधन हो गया था।
सन्त ईफ्रेम का स्मृति दिवस 09 जून को ही मनाया जाता है।
चिन्तनः प्रज्ञा
कहती हैः "धन्य है वह मनुष्य, जो मेरी बात सुनता, मेरे द्वार पर प्रतिदिन खड़ा रहता और
मेरी देहली पर प्रतीक्षा करता है; क्योंकि जो मुझे पाता है, उसे जीवन और प्रभु की कृपा
प्राप्त होती है। जो मुझे नहीं पाता, वह अपनी हानि करता है। जो मुझ से बैर रखते, वे मृत्यु
को प्यार करते हैं" (सूक्ति ग्रन्थ 8:34-36)।