वाटिकन सिटीः सत्यनिष्ठा, दृढ़ता ख्रीस्तीय विवाह की आवश्यकताएँ
वाटिकन सिटी, 03 जून सन् 2014 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा है कि सत्यनिष्ठा,
अध्यवसायता तथा प्रजनन ख्रीस्तीय विवाह के आवश्यक तत्व हैं। उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय
धर्मानुयायियों को येसु के तीन प्रेम अर्थात् पिता के प्रति प्रेम, माता के प्रति प्रेम
तथा कलीसिया के प्रति प्रेम को ध्यान में रखना चाहिये।
वाटिकन स्थित सन्त मर्था
प्रेरितिक निवास के प्रार्थनालय में सोमवार को सन्त पापा फ्राँसिस ने 15 विवाहित दम्पत्तियों
के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित किया। इस अवसर पर प्रवचन करते हुए उन्होंने ख्रीस्तीय विवाह
का अर्थ समझाया।
काथलिक कलीसिया को प्रभु येसु की वधु बताकर सन्त पापा ने कहा,
"कलीसिया के प्रति येसु का प्रेम सत्यनिष्ठ है, अध्यवसायी है। येसु कलीसिया से प्रेम
करते कभी थकते नहीं हैं इसी प्रकार ख्रीस्तीय दम्पत्तियों को भी परस्पर प्रेम करना चाहिये।"
उन्होंने
कहा, "विवाहित जीवन को प्रेम में सुदृढ़, अटल एवं अध्यवसायी होना चाहिये वरना वह विकास
नहीं कर सकता। चाहे सुख हो या दुःख, चाहे अच्छे दिन हों या बुरे, हर परिस्थिति में, विवाहित
दम्पत्तियों के बीच प्रेम का होना अनिवार्य है।"
सन्त पापा ने कहा, "विवाहित जीवन
कठिनाइयों एवं समस्याओं से खाली नहीं होता, कभी आर्थिक कठिनाइयाँ सामने आती हैं तो कभी
सन्तानों से सम्बन्धित समस्याएँ आती हैं किन्तु प्रेम के द्वारा निरन्तर आगे बढ़ते रहने
में ही विवाह की सफलता निहित है। प्रेम के कारण ही माता पिता परिवार की सुरक्षा हेतु
प्रातः जल्दी उठते और परिवार के हित में अपने कार्यों को अन्जाम देते हैं।"
प्रजनन
को विवाह का अभिन्न अंग बताते हुए सन्त पापा ने कहा कि कभी कभी बीमारी या अन्य किसी कारण
के विवाहित दम्पत्ति सन्तान प्राप्ति नहीं कर सकते तो दूसरी ओर व्यक्तियों के स्वार्थगत
चयन की वजह से सन्तान उत्पत्ति में बाधा आती है जो ख्रीस्तीय विवाह के विरुद्ध है।
इस
प्रकार के आरामदायक विवाहों को ख्रीस्तीय मूल्यों के विरुद्ध बताते हुए उन्होंने कहा,
"इन विवाहों में बच्चों को न रखने का चयन किया जाता है ताकि आरामदायक जीवन बिताया जा
सके, विश्व की खोज पर निकला जा सके, छुट्टियाँ मनाई जा सकें, भोग विलास के साधन जुटायें
जा सकें।" उन्होंने कहा, "ऐसे लोग बच्चों के बजाय कुत्तों एवं बिल्लियोँ को पालना पसन्द
करते हैं।"
प्रजनन की अनुपस्थिति में विवाह को अधूरा बताकर सन्त पापा ने
कहा कि इसमें दम्पत्तियों को वृद्धावस्था का अकेलापन सहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि
जिस प्रकार प्रभु येसु अपनी वधु कलीसिया से अनवरत प्रेम करते हैं तथा उसे नित्य उर्वरक
बनाते हैं उसी प्रकार ख्रीस्तीय दम्पत्तियों को भी प्रेम में विकसित निरन्तर होते रहना
चाहिये।