वाटिकन सिटीः पवित्रभूमि में सन्त पापा फ्राँसिस, रिपोर्ट
वाटिकन सिटी, 02 जून सन् 2014 (सेदोक): विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त
पापा फ्राँसिस ने 24 से 26 मई तक "पवित्रभूमि" की तीन दिवसीय यात्रा की थी। मध्यपूर्व
में सन्त पापा फ्राँसिस की यह पहली तीर्थयात्रा थी जो उन्हें जॉर्डन, फिलीस्तीनी क्षेत्र
तथा इसराएल ले गई।
ख्रीस्तीयों की "पवित्रभूमि" में सन्त पापा फ्राँसिस की यात्रा
का उद्देश्य विश्व के इस क्षेत्र से नित्य घटती ख्रीस्तीय जनता में आशा का संचार करना
तथा समस्त धर्मों के नेताओं से शांति हेतु कार्य करने की अपील करना था। इस यात्रा की
पूर्व सन्ध्या ईराक के प्राधिधर्माध्यक्ष लूईस साको ने कहा था, "सन्त पापा मध्यपूर्व
के ख्रीस्तीयों के दर्द को महसूस करते हैं तथा क्षेत्र में व्याप्त हत्याओं, विनाश एवं
संघर्षों की पृष्ठभूमि में उनका आगमन जीवन का सन्देश है। यह एक अपील है कि इस क्षेत्र
को दमघोंटू संकट से बाहर निकलने के लिये सभी पक्ष अपनी-अपनी स्थिति के पुनरावलोकन का
साहस जुटायेँ।"
पवित्रभूमि में ख्रीस्तीय धर्मानुयायी
ग़ौरतलब
है कि मध्यपूर्व में, 20 वीं शताब्दी के दौरान, ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों की संख्या में
नित्य गिरावट आती गई है। हाल के वर्षों में हुए अरबी संघर्ष, सिरियाई गृहयुद्ध तथा इस्लामी
चरमपंथ ने ख्रीस्तीयों के पलायन की प्रक्रिया को और अधिक प्रश्रय दिया है। इस शताब्दी
के आरम्भ में मध्यपूर्व के ख्रीस्तीयों की संख्या 20 प्रतिशत हुआ करती थी जो इस समय मात्र
4 प्रतिशत रह गई है। एक सदी पूर्व फ़िलिस्तीनी क्षेत्र के बेथलहम शहर की जनसंख्या पूर्णतः
ख्रीस्तीय थी जबकि आज यहाँ की दो तिहाई जनता इस्लाम धर्मानुयायी है।
जैरूसालेम
में लातीनी रीति के काथलिक प्राधिधर्माध्यक्ष फोआद त्वाल ने चेतावनी दी है कि यदि पवित्रभूमि
में ख्रीस्तीयों के पलायन की यही प्रवृत्ति जारी रही तो पवित्रभूमि शानदार आकर्षणों से
भरा किन्तु विश्वासियों से खाली एक "आध्यात्मिक डिज़नीलैंड 'बन सकता है।
इस्राएल
की यदि बात की जाये तो ख्रीस्तीयों की संख्या में यहाँ आशाजनक वृद्धि देखी गई है किन्तु
यह कहना मुश्किल है कि उनका जीवन सुगम एवं सरल है। यहूदी चरमपंथियों के हमलों से वे जूझ
रहे हैं जिनमें कई ख्रीस्तीय पुण्य स्थलों पर अंकित भित्तिचित्रों में "अरब और ईसाइयों
को मौत" तथा "येसु कचरा हैं" जैसे घृणात्मक एवं अपकीर्तिकर वाक्यांश पढ़ने को मिलते हैं।
फिलीस्तीनी क्षेत्र में भी ख्रीस्तीयों का जीवन आसान नहीं है। सन् 2007 में,
इस्लामी कट्टरपंथियों ने गज़ा पट्टी के एकमात्र ख्रीस्तीय पुस्तकालय को आग के हवाले कर
उसके मालिक की हत्या कर दी थी। सन् 2010 में, पश्चिमी तट पर निर्मित एकमात्र ख्रीस्तीय
अनाथालय को फिलीस्तीनी अधिकारियों के दबाव के बाद बन्द करना पड़ा था।
इस सन्दर्भ
में, सन्त पापा फ्राँसिस की तीन दिवसीय यात्रा ने, निश्चित्त रूप से, मध्यपूर्व के अल्पसंख्यक
ख्रीस्तीयों में साहस एवं आशा के संचार किया है तथा चुनौतियों का सामना करने हेतु उनमें
धैर्य एवं शक्ति को प्रोत्साहित किया है।
जॉर्डन के सम्राट से मुलाकात
मध्यपूर्व
की यात्रा के प्रथम पड़ाव जॉर्डन में सन्त पापा फ्राँसिस ने जॉर्डन के सम्राट अब्दल्लाह
द्वितीय बिन अल हुसैन से मुलाकात कर "अल हुसैन यूथ सिटी" कॉम्प्लेक्स में निर्मित अम्मान
के अन्तरराष्ट्रीय स्टेडियम में जॉर्डन के काथलिकों के लिये सार्वजनिक रूप से ख्रीस्तयाग
अर्पित कर 1,400 बच्चों को प्रथम परमप्रसाद प्रदान किया था।
जॉर्डन में ही उन्होंने
शरणार्थियों एवं समाज के कथित उपेक्षितों के प्रति विश्व का ध्यान आकर्षित कराने के लिये,
यदर्न नदी के तट परे, येसु मसीह के बपतिस्मा स्थल, बेथनी में सिरिया एवं ईराक के शरणार्थियों
से भेंट की थी। इसी अवसर पर उन्होंने, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से, ईराक एवं सिरिया के
लगभग दस लाख शरणार्थियों को शरण प्रदान करनेवाले जॉर्डन की हर सम्भव सहायता हेतु अपील
की थी।
जॉर्डन के शरणार्थी शिविर से ही सन्त पापा फ्राँसिस ने सिरिया में
युद्ध की समाप्ति का आह्वान भी किया था तथा शस्त्र व्यापार के विरुद्ध ज़ोरदार अपील की
थी। मध्यपूर्व में शांति की ज़रूरत है शस्त्रों एवं युद्ध की नहीं कहते हुए उन्होंने
उन लोगों को फटकार बताई थी जो युद्ध को आगे बढ़ाते हैं। उन्होंने कहा था, "युद्ध का मुख्य
कारण शस्त्र हैं, उन लोगों के लिये हम प्रार्थना करें जो शस्त्रों के व्यापार और विक्रय
में लगे हैं ताकि उनके हृदय दया से पसीज उठें। प्रभु ईश्वर हिंसकों, युद्ध की कामना करनेवालों
एवं शस्त्रों का उत्पादन एवं व्यापार करनेवालों का मनपरिवर्तन करें। साथ ही, शांति निर्माताओं
को साहस एवं शक्ति प्रदान करें।"
शरणार्थियों तथा बीमार एवं अनाथ बच्चों
से मुलाकात
येसु मसीह के बपतिस्मा पुण्यस्थल के निकट स्थित लातीनी
गिरजाघर में सन्त पापा फ्राँसिस ने मौन प्रार्थना की, जल पर आशीष दी तथा अनाथ, बीमार
एवं विकलांग युवाओं के साक्ष्य सुने। इसी स्थल पर उन्होंने अतिथि ग्रन्थ पर हस्ताक्षर
किये तथा एक सन्देश में लिखाः "मैं सर्वशक्तिमान एवं दयावान ईश्वर से विनती करता हूँ
कि वे हमें, अपने भाई बहनों के प्रति करुणा से भरे उदार हृदयों के साथ, उनकी उपस्थिति
में चलना सिखायें। इस प्रकार, ईश्वर का वास सर्वत्र और सब में रहे तथा शांति का राज्य
स्थापित हो सके। मानवजाति को वरदान स्वरूप मिली साक्ष्य की इस अनुपम धरती के लिये प्रभु
हम आपको धन्यवाद देते हैं। फ्राँसिस 24.5.2014।"
मध्यपूर्व में अपनी तीन दिवसीय
यात्रा के दूसरे चरण में सन्त पापा फ्रांसिस ने फिलीस्तीनी क्षेत्रों का दौरा किया। हालांकि,
नवम्बर सन् 2012 में संयुक्त राष्ट्र संघीय सभा ने पश्चिमी तट, गज़ा एवं पूर्वी जैरूसालेम
में फिलीस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य रूप में मान्यता दी थी तथापि, इन क्षेत्रों पर अभी
भी इस्राएल का कब्ज़ा बना हुआ है।
रविवार, 25 मई को, प्रभु येसु मसीह की जन्मभूमि,
बेथलेहेम, में सन्त पापा फ्राँसिस ने फिलीस्तीनी राज्याध्यक्ष मुहम्मद अब्बास से मुलाकात
की तथा फिलीस्तीन के ख्रीस्तीय समुदाय के लिये ख्रीस्तयाग अर्पित कर सम्पूर्ण "पवित्रभूमि"
में शांति के लिये प्रार्थना की थी। बेथलेहेम से ही उन्होंने इस्राएलियों एवं फिलीस्तीनीयों
के बीच दीर्घकाल से व्याप्त संघर्ष की समाप्ति का आह्वान किया था।
फिलीस्तीनी
एवं इसराएल को विभाजित करनेवाली दीवार पर सन्त पापा
बेथलेहेम
स्थित येसु जन्म को समर्पित नेटीविटी महागिरजाघर के रास्ते में पड़नेवाली, इस्राएल एवं
फिलीस्तीन को अलग करनेवाली, दीवार पर सन्त पापा फ्राँसिस ने रुककर कुछ मिनटों मौन प्रार्थना
की। उनकी इस प्रार्थना ने सम्पूर्ण विश्व का ध्यान उनकी ओर आकर्षित किया मानों कह रहे
हों कि शत्रुता की दीवारों के निर्माण के बजाय मैत्री के सेतु बनाये जायें।
ग़ौरतलब
है कि सुरक्षा की दलील देकर इस्राएल ने दस वर्षों पूर्व इस दीवार का निर्माण किया था
जो बेथलेहेम को जैरूसालेम से अलग करती है।
इसराएली-फिलीस्तीन संघर्ष को वार्ताओं
की पटरी पर लाने के उद्देश्य से सन्त पापा फ्राँसिस ने इसराएल एवं फिलीस्तीन के राज्याध्यक्षों
को आगामी माह वाटिकन में एकसाथ मिलकर शांति हेतु प्रार्थना के लिये भी आमंत्रित किया
है। वाटिकन ने प्रकाशित किया है कि आठ जून को इसराएल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेस एवं फिलीस्तीन
के राष्ट्रपति मुहम्मद अब्बास अपने अपने प्रतिनिधिमण्डलों के साथ रोम पहुँच रहे हैं।
"शांति के राजकुमार येसु के इस जन्मस्थल से मैं आपको फिलीस्तीनी राज्याध्यक्ष
मुहम्मद अब्बास राष्ट्रपति शिमोन पेरेस के साथ शांति हेतु प्रार्थना के लिये आमंत्रित
करता हूँ।" इन शब्दों का उच्चार कर सन्त पापा फ्राँसिस ने वह आमंत्रण दिया जिसे शांति
की दिशा में अभूतपूर्व पहल माना जा रहा है।
प्रार्थना का आमंत्रण सन्त पापा
की उदारता का परिचायक, फादर लोमबारदी सन्त पापा फ्राँसिस की ओर से दिये गये आंमत्रण
को उनकी उदारता का परिचायक निरूपित कर वाटिकन के प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने पत्रकारों
से कहा थाः "सदभावना से भरे व्यक्तियों को दिया गया प्रार्थना का आमंत्रण शांति निर्माण
के प्रयास में सन्त पापा फ्राँसिस के साहस एवं उनकी रचनात्मकता का संकेत देता है।"
बेथलेहेम
में शांति की अपील करने के उपरान्त रविवार 25 मई की सन्ध्या सन्त पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तीय,
इस्लाम एवं यहूदी तीनों एकेश्वरवादी धर्मों के लिये, समान रूप से, पवित्र, इसराएल के
जैरूसालेम शहर के लिये प्रस्थान किया था।
ऑरथोडोक्स प्राधिधर्माध्यक्ष बारथोलोम
प्रथम से मुलाकात
जैरूसालेम में "होली सेपुलकर" यानि येसु मसीह
की पवित्र समाधि को समर्पित गिरजाघर में, सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष सन्त
पापा फ्राँसिस तथा सन् 1050 ई. में काथलिक कलीसिया से अलग हुई विश्वव्यापी ऑरथोडोक्स
ख्रीस्तीय कलीसिया के धर्माधिपति, कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्ष बारथोलोम प्रथम
ने, परस्पर आलिंगन कर, एक साथ मिलकर प्रार्थना अर्पित की थी।
काथलिक एवं ऑरथोडोक्स
ख्रीस्तीयों का विश्वास है कि "होली सेपुलकर" वही पुण्य स्थल है जहाँ येसु क्रूस पर चढ़ाये
जाने के बाद दफनाये गये थे तथा तीसरे दिन पुनः जी उठे थे। इस पावन स्थल पर सन्त पापा
तथा प्राधिधर्माध्यक्ष ने श्रद्धापूर्वक घुटने टेके तथा एकसाथ प्रार्थना कर शताब्दियों
से काथलिक एवं ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीयों के बीच विद्यमान मतभेदों की दीवार को गिराने का
अभूतपूर्व प्रयास किया।
वाटिकन ने पहले ही घोषित कर दिया था कि जॉर्डन, फिलीस्तीनी
क्षेत्र तथा इस्राएल में सन्त पापा फ्राँसिस की तीर्थयात्रा का प्रमुख उद्देश्य 50 वर्षों
पूर्व, जैरूसालेम में, सन्त पापा पौल षष्टम तथा कॉन्स्टेनटीनोपल के ऑरथोडोक्स प्राधिधर्माध्यक्ष
अथनागोरा की बीच सम्पन्न ऐतिहासिक मुलाकात की 50 वीं वर्षगाँठ का समारोह मनाना था। 05
जनवरी सन् 1964 ई. को सन्त पापा पौल षष्टम ने प्राधिधर्माध्यक्ष अथनागोरा से मुलाकात
की थी। इसी ऐतिहासिक मुलाकात के स्मरणार्थ जैरूसालेम के "होली सेपुलकर" गिरजाघर में सन्त
पापा फ्राँसिस तथा कॉन्स्टेनटीनोपल के ऑरथोडोक्स प्राधिधर्माध्यक्ष बारथोलोम प्रथम के
बीच सौहार्द्रपूर्ण मुलाकात हुई जिससे आशा की जा रही है कि ख्रीस्त के अनुयायियों के
बीच एकता को नवीन वेग मिलेगा।
जैरूसालेम में ऑरथोडोक्स ख्रीस्तीयों के धर्माधिपति
कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्ष बारथोलोम प्रथम से मुलाकात के साथ-साथ सन्त पापा
फ्राँसिस ने मुसलमान एवं यहूदी धर्मानुयायियों के प्रति भी मैत्री का हाथ बढ़ाया।
"डोम
ऑफ द रॉक" पर मुसलमानों से मुलाकात इस्लाम धर्म के पुण्य स्थल "डोम
ऑफ द रॉक" के प्रति सम्मान प्रदर्शित करते हुए अल-अक्सा मस्जिद कॉम्प्लेक्स में प्रवेश
से पूर्व उन्होंने अपने जूते उतारे तथा मुसलमानों को "भाइयो" कहकर सम्बोधित किया।
पिता
अब्राहम को इस्लाम, यहूदी एवं ख्रीस्तीय तीनों धर्मों के अनुयायियों के आदर्श निरूपित
कर सन्त पापा ने कहा कि ईश्वर की बुलाहट का प्रत्युत्तर देते हुए अब्राहम अपने लोगों
एवं अपने घर का परित्याग कर आध्यात्मिक तीर्थयात्रा पर अग्रसर हुए थे। उन्हीं के पदचिन्हों
पर चल, उन्होंने कहा, "ईश्वर की बुलाहट के प्रति विनम्र रहते हुए हमें भी अनवरत अपने
आप से बाहर निकलने के लिये तैयार रहना चाहिये। विशेष रूप से, शांति एवं न्याय की स्थापना
हेतु उनके आह्वान के प्रति सतर्क रहना चाहिये ताकि प्रार्थना में हम इनका वरदान प्राप्त
कर सकें तथा ईश्वरीय दया, हृदय की विशालता तथा करुणा द्वारा ज़रूरतमन्दों के प्रति एकात्मता
दर्शाना सीख सकें।"
स्वर्ण गुम्बज वाले "डोम ऑफ द रॉक" अल आक्सा मस्जिद कॉम्प्लेक्स
इस्लाम धर्मानुयायियों का तीसरा महत्वपूर्ण पवित्रस्थल है। इस्लाम धर्मानुयायियों का
विश्वास है कि यहीं स्थित चट्टान से हज़रत मुहम्मद स्वर्ग में आरोहित हो गये थे। याद
वाशेम की भेंट जैरूसालेम में ही सन्त पापा फ्राँसिस ने, यहूदियों के पुण्यस्थल,
पश्चिमी दीवार पर प्रार्थना की, यहूदी दूरदृष्टा थेओदोर हेर्त्सल की समाधि पर पुष्पांजलि
अर्पित की तथा नाज़ियों द्वारा यहूदियों के नरसंहार के स्मरणार्थ निर्मित "याद वाशेम"
ऐतिहासिक स्मारक की भेंट कर "हॉल ऑफ रिमेम्ब्रेन्स" यानि स्मृति भवन में पीले एवं श्वेत
रंग की फूलमाला चढ़ाई।
जैरूसालेम की पश्चिमी दीवार को "विलाप की दीवार" भी कहा
जाता है जो यहूदियों के पवित्र स्थलों में से एक है। यहाँ सन्त पापा ने दीवार पर शीश
नवाकर मौन प्रार्थना की तथा दीवार की दरार में एक सफेद कागज़ पर स्पानी भाषा में लिखी
"हे पिता हमारे" प्रार्थना अर्पित की।
"याद वाशेम" में उन्होंने नाज़ी नरसंहार
के शिकार यहूदियों के प्रति श्रद्धा अर्पित की तथा नरसंहार से बच निकले कुछेक व्यक्तियों
के हाथों का चुम्बन कर उनके प्रति गहन सहानुभूति का प्रदर्शन किया।
इस अवसर पर
सन्त पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्तीयों एवं यहूदियों से अनुरोध किया कि वे, विशेष रूप से,
युवाओं में, अपने–अपने विश्वास पर गहन ज्ञान की उपलब्धि द्वारा अपनी सामान्य "आध्यात्मिक
विरासत" के प्रति सम्मान को विकसित करें।
इस्राएल के राष्ट्रपति शिमोन पेरेस
से मुलाकात राष्ट्रपति शिमोन पेरेस के आधिकारिक निवास में सन्त पापा फ्राँसिस
ने श्री पेरेस के साथ औपचारिक मुलाकात की, कैंसर से पीड़ित बच्चों को आशीष दी तथा शांति
के प्रतीक रूप में श्री पेरेस निवास के उद्यान में जैतून का वृक्ष आरोपित किया।
राष्ट्रपति
शिमोन पेरेस से सन्त पापा ने कहा कि वे एक नये आशीर्वचन की रचना करना चाहते थे जिसे वे
सबसे पहले अपने आप पर लागू करते हैं, जो है: "वह व्यक्ति धन्य है जिसका स्वागत एक विवेकी
एवं भले मनुष्य के घर में किया जाता है।" राष्ट्रपति भवन में अपने प्रभाषण में सन्त
पापा ने श्री पेरेस को "शांति पुरुष एवं शांति निर्माता" कहकर उनकी सराहना की तथा जिस
प्रकार उन्होंने एक दिन पूर्व फिलीस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अब्बास से निवेदन किया था
उसी प्रकार पेरेस से भी आग्रह किया कि "इस्राएली-फिलीस्तीनी संघर्ष की समाप्ति हेतु सभी
पक्ष ऐसी पहलों एवं कार्यों से परहेज़ करें जो उनके द्वारा की गई प्रतिबद्धता का विरोध
करते हों।"
जैरूसालेम शहर सन्त पापा फ्राँसिस ने जैरूसालेम के "विश्वव्यापी
एवं सांस्कृतिक महत्व" पर भी बल दिया तथा ख्रीस्तीय, इस्लाम एवं यहूदी धर्मों के अनुयायियों
के लिये इसके महत्व की प्रकाशना की। सबके लिये जैरूसालेम की कामना करते हुए उन्होंने
कहा थाः "तीर्थयात्रियों एवं स्थानीय निवासियों को पुण्य स्थलों में स्वतंत्र प्रवेश
मिलना तथा धार्मिक समारोहों में उनका स्वतंत्र रूप से भाग लेना कितना सुन्दर होता है।"