फिलिप रोमोलो नेरी का जन्म, इटली के फ्लोरेन्स
नगर के एक कुलीन परिवार में, 21 जुलाई सन् 1515 ई. को हुआ था। फ्लोरेन्स में उन्होंने
दोमिनिकन धर्मसमाजियों द्वारा संचालित स्कूल एवं महाविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त
की जिसके बाद उनके माता पिता ने उन्हें नेपल्स शहर के निकटवर्ती सान जेरमानो में उनके
चाचा के यहाँ प्रेषित कर दिया। माता पिता की इच्छा थी कि चाचा के साथ रहकर फिलिप व्यापार
की बारीकियों को सीखें तथा उनका कारोबार सम्भालें। फिलिप इस पेशे में सफल भी हुए किन्तु
उनका मन सांसारिक चीज़ों में लग नहीं पाया। ईश्वर के प्रति समर्पण की बुलाहट सुन सन्
1533 ई. में, फिलिप, रोम चले आये।
रोम में सन्त अगस्टीन को समर्पित धर्मसमाज
के पुरोहितों के सम्पर्क में रहकर फिलिप ने निर्धनों एवं रोगियों के बीच सेवाकार्य आरम्भ
कर दिया। वेश्याओं एवं परित्यक्त महिलाओं के पुनर्वास का भी उन्होंने हर सम्भव प्रयास
किया और इसीलिये उन्हें "रोम के प्रेरित" नाम से पुकारा जाने लगा।
सन् 1548
ई. में, अपने मार्गदर्शक एवं आध्यात्मिक गुरु फादर पेरसियानो रॉस्सा के नेतृत्व में,
फिलिप ने, रोम आनेवाले तीर्थयात्रियों के लिये पवित्र तृत्व को समर्पित एक धर्मशाला की
स्थापना की। यहाँ तीर्थयात्रियों के ठहरने एवं भोजन आदि की व्यवस्था के साथ साथ उनकी
प्रेरितिक सेवा का भी प्रबन्ध किया जाने लगा। इसी वर्ष 23 मई को फिलिप का पुरोहिताभिषेक
सम्पन्न हुआ जिसके बाद उन्होंने अपने मिशन को सघन करते हुए फ्लोरेन्स तथा रोम के निकटवर्ती
क्षेत्रों में कई आश्रमों एवं अस्पतालों की स्थापना की। 25 मई, सन् 1595 ई. को, पूरे
दिन पुनर्मिलन संस्कार प्रदान करने में तथा तीर्थयात्रियों की आवभगत में व्यस्त रहने
के बाद, फिलिप नेरी का निधन हो गया। उस वर्ष इसी दिन ख्रीस्त की देह महापर्व था। सन्
1622 ई. में सन्त पापा ग्रेगोरी 15 वें द्वारा फिलिप सन्त घोषित किये गये थे। उनके पवित्र
अवशेष रोम के कियेसा नुओवा गिरजाघर में सुरक्षित हैं। सन्त फिलिप नेरी का पर्व 26 मई
को मनाया जाता है।
चिन्तनः सतत् प्रार्थना से ही निर्धनों, परित्यक्तों
एवं ज़रूरतमन्दों की सेवा करने की प्रेरणा और शक्ति मिलती है।