2014-04-28 12:26:31

वाटिकन सिटीः जॉन पौल द्वितीय का जीवन सुसमाचार के प्रति आज्ञाकारिता का जीवन था, कार्डिनल कोमास्त्री


वाटिकन सिटी, 28 अप्रैल सन् 2014 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, सोमवार 28 अप्रैल को, जॉन पौल द्वितीय की सन्त घोषणा के लिये पोलैण्ड से रोम पहुँचे लगभग 60,000 तीर्थयात्रियों के लिये, सन्त पापा फ्राँसिस के प्रतिधर्माध्यक्ष, कार्डिनल आन्जेलो कोमास्त्री ने ख्रीस्तयाग अर्पित कर पोलैण्ड के नये सन्त के लिये प्रभु ईश्वर के प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया।
उन्होंने कहा कि जॉन पौल द्वितीय हम सबके प्रेम का पात्र इसलिये बने क्योंकि उनका सम्पूर्ण जीवन सुसमाचार के प्रति आज्ञाकारिता में बीता।
कार्डिनल कोमास्त्री ने स्मरण दिलाया, "नौ वर्षों पूर्व सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के निधन पर हम सबने सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में काठ की पेटी तथा उसपर रखे सुसमाचार ग्रन्थ का दीदार कर प्रश्न किया था कि "जॉन पौल द्वितीय कौन थे? क्यों हमने उनसे इतना प्यार किया?
उन्होंने कहा, "उस वक्त अचानक वायु चली और सुसमाचार के पन्नों को उलटने लगी थी। सुसमाचारी पन्नों को खोलनेवाला अदर्शनीय हाथ मानों कह रहा होः इसका उत्तर सुसमाचार में है। जॉन पौल द्वितीय का सम्पूर्ण जीवन येसु के सुसमाचार के प्रति अनवरत आज्ञाकारिता में बीता। सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण बहती वायु हमसे कह रही थी इसीलिये आप सबने उनसे इतना प्रेम किया। जॉन पौल द्वितीय में हम सबने जीवन के सुसमाचार को पहचानाः उस सुसमाचार को जिसने पीढ़ी दर पीढ़ी ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को प्रकाश एवं आशा प्रदान की है।"
कार्डिनल कोमास्त्री ने कहा कि काथलिक कलीसिया ने जॉन पौल द्वितीय की पवित्रता एवं सन्तता को मान्यता प्रदान की है और यह हमारे लिये हर्ष एवं धन्यवाद ज्ञापन का विषय है। तथापि, उन्होंने कहा कि जॉन पौल द्वितीय के उन शब्दों को याद रखना हितकर होगा जिनमें उन्होंने कहा थाः "सन्त लोग हमसे तालियों की अपेक्षा नहीं करते बल्कि अपेक्षा करते हैं कि हम उनका अनुसरण करें।"
कार्डिनल महोदय ने प्रश्न कियाः 20 वीं शताब्दी में येसु के इस अनुकरणीय शिष्य की पवित्रता से हमें क्या शिक्षा मिलती है? उन्होंने कहा कि "यूरोप की कलीसिया" पर उनके प्रेरितिक उदबोधन में इसका उत्तर हमें सहज ही मिल जाता है जिसमें जॉन पौल द्वितीय, ईश्वर की उपस्थिति से इनकार करनेवाले तृप्त मानव द्वारा स्वधर्मत्याग के युग में, येसु में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति से नहीं डरे।
उन्होंने स्मरण दिलाया कि 16 अक्तूबर सन् 1978 ई. को कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त होने के बाद जब वे जनसमुदाय को दर्शन देने बाहर आये तो उनके प्रथम शब्द थे "सिया लोदातो जेसु क्रिस्तो" अर्थात् येसु मसीह की जय!
कार्डिनल कोमास्त्री ने कहा कि यह उनका विश्वासमय हर्षोन्नाद था, यही उनके जीवन का लक्ष्य था, यही उनके परमाध्यक्षीय काल का उदगम। उन्होंने कहाः "येसु ख्रीस्त में, जॉन पौल द्वितीय का विश्वास चट्टान के सदृश थाः तीव्र, यथार्थ, निडर एवं साहसिक विश्वास।"
जॉन पौल द्वितीय की बीमारी पर एक फ्राँसिसी पत्रकार के शब्दों को उद्धृत कर कार्डिनल कोमास्त्री ने कहाः "एक ओर सन्त पापा शरीर से दुर्बल होते चले जा रहे थे तो दूसरी ओर उनका साक्ष्य और अधिक प्रभावशाली होता जा रहा थाः उनका विश्वास रात के अन्धकार में प्रकाश जैसे चमक रहा था।"
परिवार पर सन्त जॉन पौल द्वितीय की शिक्षाओं का स्मरण दिलाकर कार्डिनल महोदय ने कहा कि उन्होंने इतिहास के उस काल में परिवार का बचाव किया जब परिवार पर भ्रामक विचारधाराओं को शय मिल रही थी। परिवार पर प्रकाशित अपने प्रेरितिक उदबोधन "फामिलियारिस कोनसोरसियो" में उन्होंने विश्व के समक्ष इस तथ्य को रेखांकित किया कि एक पुरुष एवं स्त्री द्वारा रचित परिवार ईश्वर की सृष्टि है जिसे भंग करने का कोई भी प्रयास न करे।
उन्होंने स्पष्टतया लिखा थाः "ऐसे ऐतिहासिक क्षण में जब परिवार कई विनाशक शक्तियों का प्रहार झेल रहा है जो उसे नष्ट करने एवं उसकी संरचना को भ्रष्ट करने की तलाश में हैं, कलीसिया, इस तथ्य के प्रति जागरूक रहते हुए कि समाज की तथा स्वयं उसकी भलाई परिवार के कल्याण से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है, सभी के समक्ष विवाह एवं परिवार पर ईश योजना की उदघोषणा सम्बन्धी अपने मिशन की अनिवार्यता को और अधिक प्रभावशाली ढंग से महसूस करती है" ("फामिलियारिस कोनसोरसियो" 86)।









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