प्रेरक मोतीः कैनटरबरी के सन्त आन्सेल्म (1033-1109)
वाटिकन सिटी, 21 अप्रैल सन् 2014
सन्त आन्सेल्म इटली के दर्शनशास्त्री एवं बेनेडिक्टीन
धर्मसमाजी भिक्षु थे जिन्हें मिशन कार्यों के लिये इंग्लैण्ड प्रेषित किया गया था जहाँ
बाद में वे कैनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष भी नियुक्त किये गये थे। इसीलिये सन्त आन्सेल्म
को कैनटरबरी के साथ साथ ऑस्ता के सन्त भी कहा जाता है।
आन्सेल्म का जन्म
उत्तरी इताली प्रान्त ऑस्ता में सन् 1033 ई. में कान्दिया कुलीन परिवार में हुआ था। वे
इटली के तत्कालीन शाही घराने सावोय के रिश्तेदार थे। 27 वर्ष की आयु में आन्सेल्म ने
बेक स्थित बेनेडिक्टीन मठ में प्रवेश किया तथा सन् 1079 ई. में इसी मठ के प्रधान मठाध्यक्ष
नियुक्त किये गये। इंग्लैण्ड के राजा विलियम द्वितीय के अधीन आन्सेल्म केनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष
नियुक्त किये गये थे। कलीसिया एवं मध्यकालीन यूरोप के विख्यात अधिष्ठापन विवाद के कारण
राजा हेनरी प्रथम के शासनकाल में इंग्लैण्ड से निष्कासित कर दिये जाने के बावजूद आन्सेल्म
झुके नहीं अपितु साहसपूर्वक ख्रीस्त के सुसमाचारी सन्देश को जन जन में फैलाने का काम
करते रहे।
आन्सेल्म मध्यकाल-दर्शन के संस्थापक तथा ईश्वर के अस्तित्व विषयक
सात्त्विक तर्क के प्रवर्तक रूप में विख्यात हैं। सन् 1494 ई. में आन्सेल्म, सन्त पापा
एलेक्ज़ेनडर षष्टम द्वारा सन्त घोषित किये गये थे तथा सन् 1720 ई. में, सन्त पापा क्लेमेन्त
11 वें ने एक आदेश पत्र जारी कर आन्सेल्म को "कलीसिया के आचार्य" का सम्मान प्रदान किया
था। 21 अप्रैल सन् 1909 ई. को आन्सेल्म के निधन के आठ सौ वर्ष बाद, सन्त पापा पियुस दसवें
ने "कम्यूनियुन रेरुम" शीर्षक से एक प्रेरितिक उदबोधन जारी कर आन्सेल्म के कलीसियाई मिशन
तथा प्रभु ख्रीस्त में उनके अटल विश्वास से प्रेरित कृतियों की भूरि भूरि प्रशंसा की
थी।
21 अप्रैल को आन्सेल्म के निधन के दिन उनका पर्व मनाया जाता है।
काथलिक कलीसिया सहित एंग्लिकन कलीसिया तथा कई क्षेत्रों में लूथरन ख्रीस्तीयों द्वारा
भी सन्त आन्सेल्म का पर्व मनाया जाता है।
चिन्तनः सन्त आन्सेल्म कहा करते
थे, "जो लोग ईश्वर रहित जीवन बिताते हैं वे अनवरत भय और आशंकाओं से घिरे रहते हैँ।"