प्रेरक मोतीः ग्रीनविच के संरक्षक सन्त आल्फेग (954-1012)
वाटिकन सिटी, 19 अप्रैल सन् 2014
ग्रीनविच के संरक्षक सन्त आल्फेग, केनटरबरी के
महाधर्माध्यक्ष तथा प्रथम शहीद हैं। सन् 954 ई. में आल्फेग का जन्म हुआ था। वे इंग्लैण्ड
के ग्लाओचेस्टर नगर स्थित डियरहर्स्ट मठ के भिक्षु थे जिन्होंने मठाध्यक्ष से अनुमति
प्राप्त कर सोमरसेट में अपने लिये एक कुटिया बनवा ली थी तथा वहीं पर एकान्त जीवन यापन
करने लगे थे।
सन्त डन्सटन द्वारा बाथ नगर में स्थापित मठ की देखरेख के लिये
जब किसी योग्य व्यक्ति की आवश्यकता पड़ी तब उन्हें बुला लिया गया जहाँ उन्होंने त्याग
एवं तपस्या के जीवन के साथ साथ निर्धनों के प्रति दया का अनुपम साक्ष्य दिया। तदोपरान्त
आलफेग को विनचेस्टर का धर्माध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। इस पद पर वे दो दशकों तक बने
रहे।
सन् 994 ई. में राजा आथेलरेड ने धर्माध्यक्ष आल्फेग को डेनमार्क प्रेषित
किया ताकि डेनिश लोगों के साथ मध्यस्थता कर वे इंग्लैण्ड पर डेनमार्क के आक्रमण को रुकवायें।
आल्फेग की बातचीत से डेनमार्क के सेनापति आनलाफ इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ख्रीस्तीय
धर्म का आलिंगन कर लिया तथा शस्त्रों का परित्याग कर दिया।
सन् 1005 में
आल्फेग केनटरबरी के महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये तथा रोम में उन्होंने सन्त पापा
जॉन 18 वें के कर कमलों से पाल्लियुम अर्थात् अम्बरिका ग्रहण की। किन्तु इंग्लैण्ड लौटने
पर वे डेनमार्क की सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिये गये तथा केनटरबरी डेनमार्क के कब्ज़े
में कर लिया गया। महाधर्माध्यक्ष आल्फेग की रिहाई के लिये तीन हज़ार पाऊण्ड की फिरौती
राशि मांगी गई किन्तु महाधर्माध्यक्ष ने धन देने से इनकार कर दिया। इससे क्रुद्ध होकर
डेनिश सैनिकों ने कुल्हाड़ी से वार कर उनकी हत्या कर दी।
शहीद सन्त और महाधर्माध्यक्ष
आल्फेग के पवित्र अवशेष लन्दन के सन्त पौल महागिरजाघर में सुरक्षित रखे गये थे। सन् 1023
ई. में उनके शव को केनटरबरी ले जाया गया था तथा सन् 1105 ई. में पाया गया कि उनका शव
बिलकुल भी भ्रष्ट नहीं हुआ था। ग्रीनविच के संरक्षक सन्त आल्फेग का पर्व 19 अप्रैल को
मनाया जाता है।
चिन्तनः सतत् प्रार्थना, त्याग-तपस्या तथा परोपकार में
लगकर हम भी प्रभु में अपने विश्वास को सुदृढ़ करें।