2014-04-18 11:52:16

पुण्य शुक्रवार पर चिंतन


वाटिकन सिटी, 18 अप्रैल 2014 (बाईबिल)꞉ आज ‘गुड फ्राइडे’ अर्थात पुण्य शुक्रवार है। मानव जाति को पाप की जंजीर और बुराई की दासता से मुक्त करने के लिए येसु ख्रीस्त द्वारा अर्पित बलिदान का स्मृति दिवस। वैसे तो ‘गुड फ्राइडे’ येसु और उनके चेलों के लिए ब्लैक फ्राइडे या काला दिन था पर इस विस्मयकारी घटना का दुनिया में जो व्यापक प्रभाव पड़ा उसके कारण इसे लोग ‘गुड फ्राइडे’ के नाम से जानने लगे।
कलीसिया के पूजन पद्धति पंचाग में गुड फ्राइडे या पुण्य शुक्रवार एक अति महत्वपूर्ण दिवस है। येसु ने इसी दिन ईश्वर की इच्छा पूरी करते हुए दुनिया को बचाने के लिए स्वेच्छा से अपना बलिदान कर दिया था। इस दिन सम्पूर्ण विश्व के ख्रीस्तानुयायी प्रभु येसु की प्राण पीड़ा, गिरफ्तारी, दुखभोग, मृत्यु और दफन का विशेष रुप से स्मरण करते हैं। गुड फ्राइडे के दिन गिरजाघरों में ख्रीस्तयाग अर्पित नहीं किया जाता। इस दिन की पूजन पद्धति की विशेषताएँ हैः पवित्र धर्मग्रंथ बाईबिल से येसु ख्रीस्त के दुःखभोग वृतांत का पाठ, कलीसिया और विश्व के लिए विशेष प्रार्थनाएँ, पवित्र क्रूस की आराधना तथा अंत में पवित्र परमप्रसाद का वितरण।

इस दिन विश्वभर के ख्रीस्तीय धर्मानुयायी "क्रूस रास्ता" प्रार्थना के माध्यम से प्रभु येसु के कष्टों और पीड़ाओं पर मनन-चिंतन करते हुए आत्मिक रुप से उसके दुखःभोग में शामिल होते हैं। पाप और बुराई से मुक्त करनेवाले अनमोल वरदान के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिसे येसु ख्रीस्त ने कलवारी पर अपने शरीर और रक्त की कीमत देकर मानव जाति के लिए अर्जित किया है।
पाँच ही दिन पहले हमने खजूर रविवार मनाया था। जो हमें याद दिलाता है कि येरूसालेम में प्रवेश करते हुए लोगों ने प्रभु को राजा कहकर पुकारा, उनका जय-जयकार किया और उनके रास्ते पर कपड़े फैलाये, डालियाँ बिछायीं और दुनिया को बतलाया कि प्रभु येसु ही दुनिया के महान राजा हैं।
येरुसालेम नगर के बाहर ख्रीस्त का जय जयकार करती उस भीड़ में यहूदी समाज द्वारा बहिष्कृत लोग थे जो प्रभु येसु के प्रति उत्साहित थे। ये वे लोग थे जिनका जीवन दुःखों और कष्टों से भरा हुआ था जिन्हें मेज़ों पर कभी भी प्रमुख स्थान नहीं दिया गया, जिन्हें भोज में आमंत्रित नहीं किया गया और मंदिर और सभागृहों में कभी स्थान नहीं दिया गया। अपनी तंगी में भी प्रभु येसु का स्वागत करना वे अच्छी तरह जानते थे। प्रभु येसु ने उन पर प्रकट किया था कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने उन्हें नहीं भुलाया है बल्कि वे उन्हें प्यार करते हैं। प्रभु येसु ने उन्हें अपनाया, बीमारियों से चंगाई प्रदान की और उनके पापों को क्षमा किया। वे भी समझते थे कि प्रभु येसु भी उन्हीं की तरह तिरस्कृत और बहिष्कृत हैं जिन्हें ईश्वर ने ऊपर उठाया है।
येरूसालेम के अंदर एक दूसरी भीड़ थी जो बाहर की उस भीड़ से अलग विचारधारा रखती थी। अंदर के लोग अपने को शिक्षित, सभ्य और समाज में ऊचे दर्ज़े वाले व्यक्ति मानते थे। जब उन्होंने देखा कि ग़रीबों एवं तिरस्कृत लोगों से प्रेम करने वाले एक व्यक्ति को राजा की संज्ञा मिल रही है तो वे तिलमिला उठे तथा उसे नष्ट कर सबकुछ समाप्त कर देना चाहा। उन्होंने येसु पर एक बड़ा अपराधी होने का दोष लगाया एवं उस के लिए क्रूस की सज़ा की माँग की क्योंकि उनका जीवन येसु के बताये गये मार्ग अर्थात ईश्वर के मार्ग पर नहीं था।
हम आपको बतला दें कि यहूदी पराम्परा में किसी को क्रूस पर चढ़ाया जाना किसी अपराधी को सज़ा देने का सबसे क्रूरतम साधन था अतः क्रूस की सज़ा देकर व्यक्ति को मार डालना, यह दिखलाता है कि मानव कितना कठोर हो सकता है। मानव ईश्वर के विरूद्ध विद्रोह में किस सीमा तक जा सकता है। इस प्रकार क्रूस में मानव के पतन की पराकाष्ठा दिखाई पड़ती है, पाप की परिसीमा प्रकट होती है।
वैसे मुक्ति इतिहास में कई अन्य सज़ाओं की चर्चा है जैसे अदन की बारी में वर्जित फल खाने के ईश्वरीय निर्देश की अवज्ञा के पश्चात् आदम-हेवा का निष्कासन, भाई द्वारा भाई की हत्या के कारण जीवन भर श्रापित होना आदि। ये सभी क्रूस के परिपेक्ष्य में गौण दिखाई पड़ते हैं क्योंकि क्रूस की क्रूरता मात्र हाथ और पांव में ठोंके गए कीलें, माथे पर पहनाए गए कांटों के ताज, परित्यक्त, पीडा़, प्यास, थकान और मृत्यु तक ही सीमित नहीं है किन्तु इसमें मानव की अवर्णनीय कठोरता, क्रूरता, कलुषता, घृणा, नष्ट करने की प्रवृति और ईश्वर की दयालुता के विरुद्ध जाने की मनसा निहित है।
क्रूस जहाँ एक ओर मानव की कठोरता का प्रतीक है वहीं दूसरी ओर येसु ने इसे मानव के प्रति ईश्वर के प्रेम का चिन्ह बना दिया है। क्रूस पर प्रभु येसु की मृत्यु हमें स्मरण दिलाती है कि प्रभु येसु ने दुनिया से अपार प्रेम किया। यह एक ऐसी भाषा थी जिसके द्वारा मानो ईश्वर जगत से आँखों में आँखें डालकर कह रहे हों “तुम जो हो जैसे भी हो मैं तुम से प्रेम करता हूँ।″
येसु का इस संसार में आना ईश्वर के प्रेम का दृश्यमान चिन्ह था, उसका जीवन प्रेम की एक कथा, उसका संदेश प्रेम की कविता, उसका दुःख प्रेम का प्रमाण, और क्रूस पर उसकी मृत्यु प्रेम की पराकाष्ठा। क्रूस मात्र येसु की मृत्यु और सज़ा का प्रतीक नहीं, उनके सम्पूर्ण प्रेम का प्रतीक है। क्रूस ईश्वर के उस पैतृक पहलू को प्रकाशित करता है जिससे हम अनभिज्ञ थे। ईश्वर प्रशासक नहीं पिता हैं, उन्हें अपने पुत्रों की चिंता है, पुत्र मांगे तो वे देते हैं, ढूंढे तो वे उपलब्ध कराते हैं, खटखटाए तो वे खोलते हैं। उनकी करूणा की दृष्टि सारी सृष्टि पर बनी रहती है घास के फूल को वे अद्भुत वैभव के वस्त्रों से सजाते और एक गौरैया के भोजन की व्यवस्था करते, जब एक गौरैया की मृत्यु होती तो वे प्रेम और करूणा से उस पर दृष्टि डालते, वे विधवा के छोटे से दान को देखते और उसकी प्रशंसा करते हैं और जो भेड़ खो जाती उसे ढूंढने निकलते हैं। भटके हुए पापी पुत्र के वापस आने की वे राह देखते हैं और पापिनी पुत्री के अपराध क्षमा करते हैं, जिसकी संसार आलोचना करता है वे उसके साथ संगति करते हैं, जहां संसार पत्थरवाह करता वे क्षमा करते हैं। वेश्याओं के लिए स्वर्ग के द्वार खोलते हैं और पाप पूर्ण नगरों के लिए वे आंसू बहाते हैं, वे कठोर न्याय करने वाले परमेश्वर नहीं किन्तु अपार प्रेम और दया तथा करूणा के स्रोत हैं।

येसु ख्रीस्त के असीम प्रेम को हम इस घटना के माध्यम से भी समझ सकते हैं।
झारखण्ड के हजारीबाग स्थित कई गाँव जमीनदारों एवं माओवादियों के कारण बुरी तरह प्रभावित थे। दोनों दलों के बीच संघर्ष करीब 40 वर्षों से चल रहा था जिसके कारण ज्यादातर परेशानी स्थानीय लोगों को उठानी पड़ रही थी। उन्हें जमीनदारों के खेतों पर दास की तरह कार्य करना पड़ता था। उनका जीवन दिन ब दिन बदत्तर होता जा रहा था।
जेस्विट फादर ए टी थोमस ने मानव मर्यादा की रक्षा हेतु उन गरीब लोगों की मदद करना चाहा। वे रात को उन्हें शिक्षा देने लगे और धीरे-धीरे लोगों के जीवन के हर पहलू में शामिल हो गये। लोगों के जीवन में शामिल होने के कारण उन्हें घोर अन्याय से पीड़ित लोगों के दुःखों का एहसास हुआ। उन दुःखों से बाहर निकालने के लिए वे लोगों को कई प्रकार से मदद करने लगे।
आजाद नगर में दलितों के लगभग 25 परिवार निवास करते थे जो जमीनदारों एवं साहूकारों के खेत में बंधुआ मजदूर की तरह कार्य करता था। अब वे फादर ए टी थोमस की सहायता द्वारा अपने लिए जमीन खरीदकर घर बनाने में समर्थ हो गये हैं। वे बंधुआ मजदूरी करने की मज़बूरी से ऊपर उठ चुके थे तथा आत्म निर्भर हो गये थे। देखते ही देखते लोगों के जीवन स्तर में सुधार आने लगा, अब वे सुन्दर भविष्य की कल्पना करने लगे थे किन्तु गरीबों का ये विकास जम्मीनदारों एवं साहूकारों के लिए घाटा सिद्ध हुआ वे फादर को अपना दुश्मन समझने लगे। 25 अक्टूबर सन् 1997 ई. को जब फादर थोमस गाँव का दौरा कर अपने निवास की ओर लौट रहे थे तभी दुश्मनों ने उनपर जान लेवा हमला किया तथा उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। फादर ए टी थोमस ने मृत्यु दम तक लोगों की सहायता की। गरीबों के उत्थान की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

क्रूस मसीहियों के लिए मुक्ति का प्रतीक है। वह जो भयावाह और अपमानजनक मृत्यु का प्रतीक था प्रभु येसु के बलिदान द्वारा पाप और बुराई की दासता से मुक्त होने का विजय प्रतीक बन गया है। क्रूस पर दुःख सहकर, प्रभु दुःख तकलीफ सहने का ख्रीस्तीय अर्थ हमें समझाते हैं।
इब्रानियों के नाम लिखे पत्र अध्याय 4 पद संख्या 14 से 16 हमें समझाते हैं कि ख्रीस्त ने हमारी तरह दुःख झेला है अतः वे हमारी हर अवश्यकता में मदद के लिए तैयार हैं। "हमारे अपने एक महान प्रधानयाजक हैं अर्थात् ईश्वर के पुत्र ईसा, जो आकाश पार कर चुके हैं। इसलिए हम अपने विश्वास में दृढ़ रहें। हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है। इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।" (इब्रानियों 4:14-16)
ख्रीस्तीय दृष्टि से, कष्ट प्रभु के दुःखभोग के सहभागी बनने का साधन है। इसी कारण अच्छाई, सच्चाई और भलाई के लिए कष्ट सहना पुण्यप्रद माना जाता है। प्रभु ने हमारी मुक्ति के लिए कष्ट उठाया ताकि हमें मुक्ति मिले। प्रभु हमें बतलाना चाहते हैं कि ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता काँटों का रास्ता है। यह आम लोगों के लिए दुःखद दिखाई पड़े, बाहर से कष्टमय जान पड़े किन्तु परहित के लिए ईश्वर की इच्छा अनुसार कष्ट उठाने का पुरस्कार आंतरिक शांति और सांत्वना है जिसकी खोज हर मानव करता रहता है। मैं सोचती हूँ कि आप इस बात के लिए मुझ से सहमत होंगे कि जब हम भले और अच्छे कार्य के लिए दुःख उठाते हैं तो हम अकेले नहीं हैं भले ही हमें कई बार लगे कि हम अकेले हैं। प्रभु ने खुद कहा है “थके मांदे और बोझ से दबे हुए लोगो तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।”

हममें से कई लोग ‘शॉटकट’ चाहते हैं। कई लोग पढ़ाई करके परीक्षा देने के बजाय सीधे प्रथम श्रेणी का प्रमाणपत्र पाना चाहते हैं। परिश्रम किये बग़ैर मज़दूरी चाहते हैं। सिर्फ अपनी खुशी चाहते है। चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने के बजाय उनसे बचने का सहज उपाय ढूँढ़ते हैं। यह भूल जाते हैं कि सफलता का रहस्य है ईमानदारी और अनवरत मेहनत। भूल जाते हैं कि सफल वे ही हो सकते हैं जो दुःख में धीर बने रहते और मन दिल में शांति की इच्छा लिए परहितमय जीवन जीते हैं। ‘गुड फ्राइडे’ को हम सचमुच ‘गुड फ्राइडे’ या पुण्य शुक्रवार बना पाये अथवा नहीं? अगर हमने येसु के जीवन पर चिंतन नहीं किया और उसके क्रूस के रहस्य को समझने का प्रयास न किया तो यह गुड फ्राइडे भी बस आम फ्राइडे की तरह निकल जायेगा। अगर हम चाहते हैं यह पुण्य शुक्रवार हमारे लिए कुछ दे जाए, तो हमें चाहिए कि हम इसके संदेश को अपने दिल में उतरने दें। पुण्य शुक्रवार का संदेश है अन्यों के लिए सदैव समर्पित रहना और अच्छाई एवं भलाई के लिए कष्ट उठाना। सार्वभौमिक कलीसिया के अल्प समय में ही लोक प्रिय बने संत पापा फ्राँसिस कहते हैं “क्रूस के बिना प्रभु येसु का अनुसरण नहीं किया जा सकता है। यदि हम क्रूस के बिना आगे बढ़ने की चेष्टा करते हैं तथा क्रूस के बिना ख्रीस्त के प्रचार का प्रयास करते हैं तो हम ख्रीस्त के अनुयायी नहीं हैं।”
ख्रीस्त के अनुयायी बनने का अर्थ है; सच्चाई, अच्छाई और भलाई के लिए कार्य करना, उनके लिए दुःख उठाना, येसु मसीह के संदेश प्रेम, सेवा, सहानुभूति और क्षमा को अपने दैनिक जीवन में अमल करना तथा स्वार्थ, नफरत, हिंसा, बदले की भावना और सभी प्रकार की कुप्रवृतियों को न करने की दृढ़ता से हिम्मत करना।
अगर हम अपनी अच्छाईयों में बढ़ने का प्रयास मात्र आरम्भ कर दें तो बुरी ताकतें, बुरे भुकाव और बुरी प्रवृति कमज़ोर पड़ जायेंगीं तथा हममें अच्छाई की ताकतें बढ़ने लगेंगी। इस प्रकार, हमारा हर फ्राइडे तो गुड या अच्छा होगा ही, हमारा हर दिन कृपाओं से पूर्ण होगा। हम प्रसन्न होंगे, जग प्रसन्न होगा और तब यह दुनिया एक ऐसा सुखद स्थान बनेगा जहाँ हर कोई शांति पूर्ण सहयोग और प्रेममय सहअस्तित्व का संदेशवाहक बनेगा, मानव जीवन का अर्थ पूर्ण हो जायेगा और जिस नेक मनोरथ के लिए येसु ने कलवारी पर अपना बलिदान दिया वह अपनी पराकाष्ठा पर होगा।








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