2014-04-04 11:06:56

वाटिकन सिटीः जॉन 23 वें एवं जॉन पौल द्वितीय की सन्त घोषणा ईश्वरीय करुणा रविवार को


वाटिकन सिटी, 04 अप्रैल सन् 2014 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस, रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, 27 अप्रैल को, ईश्वरीय करुणा को समर्पित रविवार के दिन धन्य सन्त पापा जॉन 23 वें तथा धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय को सन्त घोषित कर काथलिक कलीसिया में वेदी का सम्मान प्रदान करेंगे।

जॉन 23 वें तथा जॉन पौल द्वितीय कौन थे, काथलिक कलीसिया में उनकी क्या भूमिका रही तथा एक बेहतर विश्व की रचना में उन्होंने क्या योगदान दिया? विगत वर्ष 30 सितम्बर को सन्त पापा फ्राँसिस ने एक आज्ञप्ति जारी कर घोषणा की थी कि सन्त पापा जॉन 23 वें तथा सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय दोनों की सन्त घोषणा, ईस्टर के बाद पड़नेवाले रविवार को यानि 27 अप्रैल को ईश्वरीय करुणा को समर्पित रविवार को सम्पन्न की जायेगी। आज के प्रसारण में प्रस्तुत है धन्य सन्त पापा जॉन 23 वें का संक्षिप्त परिचयः

धन्य सन्त पापा जॉन 23 वें विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के 261 वें परमाध्यक्ष थे जो सन् 1958 में सन्त पापा पियुस 12 वें के निधन के बाद काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु नियुक्त किये गये थे। धन्य सन्त पापा जॉन 23 वें ने, 28 अक्टूबर सन् 1958 ई. को, अपनी परमाध्यक्षीय प्रेरिताई आरम्भ की थी जिसे उन्होंने 03 जून, सन् 1963 ई. को, अपनी मृत्यु तक, जारी रखा। लोगों के प्रति अपनी संवेदनशीलता एवं स्नेह के कारण जॉन 23वें "भले सन्त पापा जॉन" के नाम से लोकप्रिय हो गये थे।

आन्जेलो जुसेप्पे रॉनकाल्ली के नाम से 25 नवम्बर, सन् 1881 को जॉन 23 वें का जन्म, इटली के लोमबारदी प्रान्त में, बेरगामो स्थित, सोत्तो इल मोन्ते में हुआ था। 10 अगस्त 1904 ई. को आप पुरोहित अभिषिक्त किये गये थे। काथलिक कलीसिया के सन्त पापा नियुक्त होने से पूर्व आपने वाटिकन राज्य तथा परमधर्मपीठ में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था जिनमें फ्राँस, तुर्की एवं बुल्गारिया में परमधर्मपीठीय राजदूत तथा ग्रीस में प्रेरितिक प्रतिनिधि पदों पर नियुक्तियाँ शामिल हैं। 12 जनवरी 1953 ई. को तत्कालीन सन्त पियुस 12 वें ने आपको वेनिस का प्राधिधर्माध्यक्ष एवं कार्डिनल नियुक्त कर काथलिक कलीसिया के राजकुमार की उपाधि से सम्मानित किया था।

76 वर्ष की आयु में काथलिक कलीसिया की बागडोर अपने हाथों में लेने के बावजूद सन्त पापा जॉन 23 वें के व्यक्तित्व एवं कृतित्व ने काथलिक कलीसिया के इतिहास में स्वर्णिम पृष्ठों को जोड़ा है। सन् 1962 से सन् 1965 तक जारी रही ऐतिहासिक द्वितीय वाटिकन महासभा बुलाकर सन्त पापा जॉन 23 वें ने उन लोगों को भी आश्चर्यचकित कर दिया था जिन्होंने, उनकी ढलती उम्र के कारण, उनकी भूमिका को केवल एक रखवाले सन्त पापा की भूमिका तक सीमित करना चाहा था।

11 अक्तूबर, 1962 ई. को आरम्भ द्वितीय वाटिकन महासभा ने काथलिक धर्म में अभूतपूर्व परिवर्तनों की बहाली की तथा कलीसिया के मुखमण्डल को नया रूप दियाः व्यापक संशोधित पूजन पद्धति जिसमें लैटिन के अलावा विश्व की अन्य भाषाओं को जगह मिली, ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के बीच एकता पर बल दिया गया तथा विश्व के प्रति नई सोच एवं नये दृष्टिकोण को काथलिक कलीसिया में जगह मिली। हालांकि, सन्त पापा जॉन 23 वें कैंसर रोग से पीड़ित होने के कारण द्वितीय वाटिकन महासभा के समापन से पूर्व ही इस दुनिया से चल बसे किन्तु उनके द्वारा कलीसिया में लाये गये रचनात्मक परिवर्तनों ने काथलिक जगत के इतिहास अपनी अलग जगह बना ली है।

सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त होने के बाद, अपने सर्वाधिक प्रथम कार्यों में सन्त पापा जॉन 23 वें ने यहूदियों के साथ काथलिक कलीसिया के सम्बन्धों को सुधारा। पुण्य शुक्रवार की पूज़नपद्धति से उन्होंने यहूदियों को "परफीदियुस" यानि विश्वासघाती कहे जानेवाले शब्द को हटाया। शताब्दियों के अन्तराल में कलीसिया द्वारा हुए सामीवाद-विरोधी पाप को भी उन्होंने स्वीकार किया।

अपनी परमाध्यक्षीय नियुक्ति के साढ़े चार साल बाद तथा अपने अन्तिम एवं विख्यात विश्व पत्र "पाचेम इन तेर्रिस" को पूरा करने के दो माहों बाद 81 वर्ष का आयु में, 03 जून सन् 1963 ई. को, "पापा बुओनो", "भले सन्त पापा" के नाम से विख्यात जॉन 23 वें ने इस धरती से विदा ली थी।

सन्त पापा जॉन 23वें की भलाई के विषय में परमधर्मपीठीय धर्माध्यक्षीय धर्मसंघ के पूर्वाध्यक्ष वाटिकन के वरिष्ठ कार्डिनल जोवानी बत्तिस्ता रे लिखते हैं: "भलाई के द्वारा सन्त पापा जॉन 23 वें ने समस्त विश्व के लोगों का दिल जीत लिया था और यह उनके खुश, शांत एवं आशावादी चरित्र का फल था, किन्तु यह भी नहीं भुलाया जाना चाहिये कि वह चरित्र सुसमाचारों से प्रेरित तथा उनकी प्रतिबद्धता एवं पुण्य की ओर अभिमुख उनके निरन्तर प्रयास का परिणाम था। दूसरे शब्दों में, उनकी सरल जीवन शैली एवं उनका आचार-व्यवहार गहन प्रार्थना, त्याग और तपस्या का फल था जिसकी शिक्षा उन्होंने बाल्यकाल से परिवार में पाई थी तथा बाद में उसे परिष्कृत किया था।" जब सन्त पापा जॉन 23 वें बुल्गारिया में परमधर्मपीठीय प्रेरितिक राजदूत थे तब उन्होंने अपने माता पिता को लिखा थाः "जब से मैं घर से निकला हूँ तब से मैंने बहुत सी किताबें पढ़ी हैं तथा बहुत कुछ सीखा है जो आप मुझे नहीं सिखा सकते थे किन्तु जो कुछ मैंने आप लोगों से सीखा है वह अभी भी अनमोल एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं तथा बहुत सी अन्य बातों को मूल्यदेय बना देता एवं उन्हें समर्थन देता है।"

जॉन 23 वें मानवाधिकारों के प्रबल वक्ता थे। अपने विश्व पत्र "पाचेम इन तेर्रिस" में उन्होंने लिखा था, "मनुष्य को जीने का अधिकार है। उसे शारीरिक अखण्डता तथा अपने समुचित विकास के आवश्यक साधनों का अधिकार है, विशेष रूप से, भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, विश्राम तथा अन्ततः, आवश्यक सामाजिक सेवाओं का अधिकार है। परिणामस्वरूप, बिगड़ते स्वास्थ्य, श्रम जनित विकलांगता, विधुरता, वृद्धावस्था, बेरोज़गारी अथवा स्वयं की ग़लती के बिना आजीविका के साधन से वंचित होने की स्थिति में देखभाल का अधिकार है।"

कई अवसरों पर सन्त पापा जॉन 23 वें ने इस तथ्य पर बल दिया कि सब मनुष्य बराबर हैं, सब मनुष्य समान हैं। इस विश्व में न तो कोई बड़ा है और न ही कोई छोटा। समानता पर उनके हृदय की अतल गहराई से प्रस्फुटित विचारों को उनके इस वकतव्य में अभिव्यक्ति मिली है कि "हम सबकी सृष्टि ईश प्रतिरूप में हुई है इसलिये हम सब ईश-तुल्य हैं।"

अपने परमाध्यक्षीय काल में सन्त पापा जॉन 23 वें ने कई भावपूर्ण प्रवचन किये। सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में भक्त समुदाय को सम्बोधित उनकी इस स्नेही एवं भावप्रवण पंक्ति को कैसे भुलाया जा सकता है, "प्यारे बच्चो, घर लौटने पर आप अपने बच्चों को देखेंगेः बच्चों को प्यार से दुलारें और उनसे कहें कि यह सन्त पापा का दुलार है।"

06 जून, सन् 1963 ई. को सन्त पापा जॉन 23 वें के पार्थिव शव को सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के तलघर में दफना दिया गया था। 03 सितम्बर, सन् 2000 को सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने उन्हें धन्य घोषित किया था तथा 03 जून, सन् 2001 को उनका पार्थिव शव सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के तलघर से निकाल कर महागिरजाघर में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ सन्त जेरोम की वेदी में स्थानान्तरित कर दिया गया था। 27 अप्रैल को धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय के साथ-साथ "इल पापा बुओनो" अर्थात् "भले सन्त पापा", धन्य जॉन 23 वें को सन्त घोषित किया जायेगा।

वाटिकन के अधिकारियों का अनुमान है कि 27 अप्रैल की सन्त घोषणा समारोह के लिये रोम तथा विश्व के विभिन्न देशों से लगभग चालीस लाख श्रद्धालु एवं तीर्थयात्री रोम पहुँच सकते हैं।









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