2014-03-21 14:01:52

मानव की गरिमा के लिये श्रम ज़रुरी


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 21 मार्च 2014 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित पौल षष्टम् सभागार में, बृहस्पतिवार 20 मार्च को, संत पापा फ्राँसिस ने इटली के इस्पात श्रमिकों, उनके परिवारों एवं ओम्ब्रिया निवासियों से उनकी फैक्टरी की स्थापना के 130 वें वर्षगाँठ पर उनसे म़ुलाक़ात की तथा उन्हें मानवीय गरिमा को साकार करने में रोज़गार की मुख्य भूमिका पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, "श्रम समाज, परिवार एवं व्यक्ति के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। श्रम वास्तव में व्यक्ति, उसके जीवन, उसकी स्वतंत्रता एवं उसकी खुशी से सीधा संबंध रखता है। श्रम का प्राथमिक मूल्य व्यक्ति की भलाई होनी चाहिए जो व्यक्त को खुद के नजरिए से देखने और अपनी बौद्धिक, रचनात्मक एवं शारीरिक क्षमताओं द्वारा स्वतंत्रता पूर्वक विचार करने में सहायता प्रदान करता है। अतः श्रम न केवल आर्थिक लाभ का साधन है किन्तु उससे भी बढ़कर व्यक्ति और उसकी गरिमा से संबंधित है।"
संत पापा ने बेरोज़गार युवाओं की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि जो लोग बेरोज़गार हैं वे पल्ली की उदारता के कारण भोजन प्राप्त करते हैं। वे नहीं जानते कि किस प्रकार घर में भोजन जुटाया जाए किन्तु वे चाहते हैं कि घर में वे अपने श्रम द्वारा अर्जित इज्जत की रोटी खायें। संत पापा ने कहा रोज़गार का अभाव से मानव गरिमा को क्षति पहुँचती है।
बेरोज़गारी एवं अर्द्ध बेरोज़गारी वास्तव में, समाज के हाशिये के लोगों से जुड़ा है, यह उन्हें समाज से बहिष्कार कर देता है। बहुधा ऐसा देखा जाता है कि रोज़गार के अभाव में व्यक्ति निराशा, उदासीनता एवं बुराईयों की ओर आगे बढ़ता है।
संत पापा ने बेरोजगारी के संकट के समाधान हेतु एकजुटता और रचनात्मकता की सिफारिश की। उन्होंने कहा कि इस बड़ी चुनौती का सामना करने के लिए समस्त ख्रीस्तीय समुदाय को एक होने की आवश्यकता है।








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