वाटिकन सिटीः "दया शांति का स्रोत है", सन्त पापा फ्राँसिस
वाटिकन सिटी, 18 मार्च सन् 2014 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के
प्रार्थनालय में, सोमवार 17 मार्च को, ख्रीस्तयाग के अवसर पर सन्त पापा फ्राँसिस ने कहा
कि दया तथा पाप स्वीकार व्यक्ति के हृदय में, लोगों के बीच एवं विश्व में शांति लाते
हैं।
सन्त पापा फ्राँसिस येसु के उन शब्दों पर चिन्तन प्रस्तुत कर रहे थे जिनमें
प्रभु कहते हैं: "दयालु बनो जैसे तुम्हारा पिता दयालु है।"
सन्त पापा ने इस
बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि दया के भाव को बुद्धिगम्य करना सरल काम नहीं है क्योंकि
प्रायः हम अन्यों पर न्याय करना पसन्द करते हैं। उन्होंने कहा, "हम समझदारी एवं दया को
स्थान देने के आदी नहीं हैं क्योंकि अन्यों की आलोचना करने तथा उनपर टिप्पणी करने को
हम प्राथमिकता देते हैं।"
सन्त पापा ने कहा, "दया के लिये दो प्रकार के सदगुणों
की आवश्यकता है, सर्वप्रथम, आत्मज्ञान की और फिर एक विशाल हृदय की। आत्मज्ञान अर्थात्
अपने कर्मों के प्रति चेतना, इस बात की चेतना कि हमने पाप किया है और फिर अपने किये पर
पश्चाताप ताकि प्रभु ईश्वर के क्षमा पात्र बन सकें।" सन्त पापा ने कहा, "यह सच
है कि हमने किसी की हत्या नहीं की है तथापि, छोटे छोटे पापों के लिये शर्मिन्दा होना
तथा प्रभु के समक्ष उन्हें स्वीकार कर क्षमा की याचना करना प्रभु की कृपा प्राप्त करना
है।" उन्होंने कहा, "इस प्रकार की लज्जा कृपा का स्रोत है, यह पापी होने की कृपा है।"
सन्त पापा ने कहा, "प्रायः हम आदम और हेवा के समान ही अपने पापों का दोष अन्यों
पर मढ़ते हैं किन्तु यदि हम अपने पाप को स्वीकार करें कि हमने बुरा किया है तो हमारे
पश्चाताप का यह कृत्य दया में बदल जाता है और हम प्रभु ईश्वर के कृपा पात्र बनते हैं।"
अन्यों को क्षमा करने के लिये विशाल एवं उदार हृदय की आवश्यकता पर बल देते
हुए सन्त पापा ने कहा कि हम क्षमा करेंगे तो हम भी प्रभु की क्षमा और दया प्राप्त करेंगे।
उन्होंने कहा, "उदार हृदय खण्डन नहीं करता अपितु क्षमा करता है, भूल जाता है
क्योंकि ईश्वर मेरे पापों को भूल गये हैं, उन्होंने मेरे पापों को क्षमा कर दिया है।
अस्तु, आप अपने हृदयों को विशाल रखें, उन्हें उदार बनायें, अन्यों पर दया दिखायें और
प्रभु की कृपा आप पर सदा बनी रहेगी।