प्रेरक मोतीः फ्राँस की लूईज़ा दे मारीलैक (1591-1660) (15 मार्च)
वाटिकन सिटी, 15 मार्च सन् 2014:
लूईज़ा दे मारीलैक का जन्म फ्राँस में 12 अगस्त
सन् 1591 ई. को हुआ था। नन्हीं अवस्था में ही लूईज़ा ने अपने माता पिता को खो दिया था
जिसके बाद उनका पालन पोषण उनके चाचा ने किया। किशोरावस्था से ही लूईज़ा के मन में धर्मबहन
बनकर समर्पित जीवन यापन करने की तमन्ना थी किन्तु परिवार वालों ने उनका विवाह करा दिया।
उनकी एक सन्तान भी हुई।
वैवाहिक जीवन के कर्त्तव्यों को पूरा करने के साथ साथ
प्रार्थना एवं पड़ोसी सेवा लूईज़ा की दिनचर्या के अभिन्न अंग बन गये थे। इस दौरान उन्हें
सेन्ट फ्राँसिस दे सेल्स जैसे आध्यात्मिक परामर्शक से परिचित होने का सौभाग्य मिला जिन्होंने
लूईज़ा के पति की लम्बी बीमारी के समय भी उनका मनोबल बढ़ाया तथा प्रार्थना में समस्याओं
के समाधान की खोज का रास्ता सुझाया।
पति की मृत्यु के बाद लूईज़ा का साक्षात्कार
विन्सेन्ट नाम के एक काथलिक पुरोहित से हुआ जो बाद में जाकर सन्त विन्सेन्ट दे पौल नाम
से विख्यात हुए। प्रार्थना, बाईबिल पाठ, मनन चिन्तन एवं पड़ोसी सेवा के प्रति लूईज़ा
की सच्ची लगन को देख पुरोहित विन्सेन्ट अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने युवतियों के
लिये एक धर्मसंघ की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इस प्रकार विन्सेन्ट दे पौल के मार्गदर्शन
में रहकर लूईज़ा ने चार युवतियों को एकत्र किया जिन्होंने ज़रूरतमन्द किशोरियों एवं युवतियों
के लिये एक आश्रम की स्थापना की।
लूईज़ा के आध्यात्मिक जीवन ने कई युवतियों को
प्रेरित किया जिन्होंने उनके संग रहकर समर्पित जीवन यापन आरम्भ कर दिया। अपने मिशन को
आगे बढ़ाने के लिये लूईज़ा ने एक धर्मसंघ की स्थापना की जो आज "सन्त विन्सेन्ट दे पौल
की उदारता की पुत्रियों के धर्मसंघ" के नाम से जाना जाता है। 15 मार्च सन् 1660 ई. को
लूईज़ा दे मारीलैक का निधन हो गया। नौ मई सन् 1920 ई. को सन्त पापा बेनेडिक्ट 15 वें
ने लूईज़ा को धन्य घोषित किया तथा 11 मार्च सन् 1934 ई. को सन्त पापा पियुस 11 वें द्वारा
वे सन्त घोषित की गई। सन्त लूईज़ा दे मारीलैक का पर्व 15 मार्च को मनाया जाता है।
चिन्तनः प्रार्थना भाई एवं पड़ोसी की सेवा हेतु आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती
है।