वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 8 मार्च 2014 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने 7 मार्च
को, वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मार्था के प्रार्थनालय में पवित्र मिस्सा अर्पित
की। उन्होंने प्रवचन में कहा कि ख्रीस्तीयता ‘आचार’ नहीं किन्तु ‘एक मुक्ति इतिहास’
है और हमारे ‘भाई-बहनों की शारीरिक आवश्यकताओं के लिए झुकना’ है। हमें बीमारों, गरीबों
एवं बुजुर्गों की देखभाल करने में लज्जित नहीं होना चाहिए। यह भूखों के साथ रोटी बांटना
और बीमारों एवं बुजुर्गों को चंगा करना है जो हमें बदले में कुछ नहीं दे सकते हैं।
प्रवचन में संत पापा ने संत मती रचित सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया जिसमें संहिता के
ज्ञानी (फ़रीसी) येसु के शिष्यों की आलोचना करते हैं क्योंकि शिष्यों ने फ़रीसियों के
समान उपवास नहीं किया। वास्तव में फ़रीसियों ने ईश्वर की दस आज्ञाओं के पालन को मात्र
एक औपचारिकता बना दिया था धार्मिक जीवन को सिर्फ आचार तक ही सीमित कर लिया था तथा मूल
अर्थ को भूला दिया था जो एक मुक्ति इतिहास, ईश्वर द्वारा अपनी प्रजा का चुनाव एवं व्यवस्थान
स्थापित करना है। संत पापा ने कहा, "हमारे विश्वास का जीवन गरीबों के प्रति उदारता
द्वारा करीबी से जुड़ा है जिसके बिना एक व्यक्ति के विश्वास की उदघोषणा एक ढोंग मात्र
है। ईश्वर से पितृ तुल्य प्यार प्राप्त करना, एक पहचान प्राप्त करना तथा इसे एक नैतिक
मूसाधन बना देना प्यार के उपहार को अस्वीकार रखना है। संत पापा ने कहा कि ढोंगी लोग
अपने स्थान पर ठीक है जो उन्हें करना है वे सब कुछ करते हैं किन्तु बिना किसी भलाई के
नीति नियमों को ही सब कुछ मान लेते हैं क्योंकि उन्होंने लोगों के प्रति अपने संबंध को
भुला दिया है। जब कि ईश्वर की मुक्तिदायी कृपा सभी लोगों के लिए है।"
नबी इसायस
ने कहा है कि उपवास जिसे ईश्वर चाहते हैं वह उपवास ऐसा हो जिससे अन्यों के जीवन की रक्षा
हो। इसका अर्थ है अधिक कठिन उपवास, भलाई के लिए उपवास, जिसको भला समारी ने किया था। संत
पापा ने प्रवचन के अंत में चिंतन हेतु कहा, "आज कलीसिया यह प्रस्ताव रखती है: क्या मैं
अपने भाई बहनों की शारीरिक चिंता करने में लज्जा अनुभव करता हूँ? जब मैं दान देती हूँ
तो क्या मैं उनका हाथ स्पर्श किये बग़ैर दान देता हूँ? जब वे बीमार होते हैं क्या मैं
उन्हें देखने जाता हूँ? क्या मैं प्यार से उनका अभिवादन करता हूँ?"