वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 6 मार्च 2014 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने 6 मार्च
को रोम धर्मप्रांत के पल्ली पुरोहितों से मुलाकात कर, संदेश में दया के महत्व पर प्रकाश
डाला। संत पापा ने संत मती रचित सुसमाचार पर ग़ौर करते हुए उन्हें येसु पर चिंतन करने
को कहा जो शहरों और गाँवों के बीच से होकर गुजर रहे थे, लोगों से मिलते हुए अपने हृदय
में उनके प्रति दया भाव से ओत-प्रोत थे क्योंकि वे अनुभव कर रहे थे कि लोग निर्बल एवं
असहाय थे, बिना चरवाहे की भेड़ों के समान थे। आज की परिस्थिति उससे भी अधिक कठिन है।
चालीसे की शुरूआत करते हुए हम आज अच्छे आध्यात्मिक अभ्यासों तक ही सीमित नहीं रह सकते,
हमें उस आवाज को सुनना है जो पूरी कलीसिया को पुकार रही है। दया की याचना कर रही है। संत
पापा ने कहा कि कलीसिया दया की आवश्यकता की परिस्थिति से गुजर रही है। धन्य संत पापा
जॉ पौल द्वितीय ने सन् 2000 ई. में सिस्टर फौस्तीना की संत घोषणा के अवसर पर अपने प्रवचन
में, दो विश्व युद्धों के मध्य येसु ख्रीस्त द्वारा सिस्टर फौस्तीना को मिले संदेश पर
गौर कर कहा था कि विकास के साथ-साथ दुखद अनुभव होंगे किन्तु दिव्य करूणा के प्रकाश में
प्रभु संसार में लौट आना चाहते हैं। संत पापा ने कहा आज हमें इस पर चिंतन करने की आवश्यकता
है। अपने प्रवचनों एवं प्रेरितिक कार्यों में उसका अभ्यास करना चाहिए। संत पापा ने
पुरोहितों के लिए दया का अर्थ समझाते हुए कहा कि पुरोहित अपने मेमनों पर तरस खाते हैं
जैसा येसु ने भी अनुभव किया। विशेषकर जो पापी, बीमार, निष्काषित तथा जिनकी देखभाल करने
के लिए कोई न हो अतः पुरोहित दया एवं सहानुभूति के व्यक्ति हैं जो लोगों के करीब होते
तथा सभी की सेवा करते हैं। संत पापा ने दया का अर्थ बतलाते हुए कहा कि यह न तो बड़ा
और न ही तंग होता है। उन्होंने मेल-मिलाप के संस्कार की ओर ध्यान खींचते हुए कहा कि पाप-स्वीकार
संस्कार में कुछ पुरोहित कठोर व्यवहार करते हैं और यह अच्छा है कि संस्कार की रीति पर
ध्यान दिया जाए किन्तु उसके द्वारा मूल भाव प्रभावित न हो। पुरोहित वास्तव में एक भले
समारी की तरह कार्य करता है क्योंकि उसका हृदय ख्रीस्त के समान दया भाव से भरा होता है।
दया पवित्रता की यात्रा में हमारा साथ देती है। प्ररिताई के लिए दुख उठाते हुए पुरोहित
पवित्रता में आगे बढ़ता है जैसे माता पिता अपने बच्चों के लिए दुख उठाते हैं।