फ्राँस के पिकार्दी प्रान्त स्थित कोरबे में,
कोलेट का जन्म, 13 जनवरी सन् 1381 ई. को हुआ था। कोलेट एक बढ़ई की बेटी थी। सन्त निकोलस
से सन्तानोत्पत्ति के लिये प्रार्थना करने के उपरान्त कोलेट का जन्म हुआ था इसीलिये माता
पिता ने उन्हें निकोलेट नाम दिया था किन्तु प्यार से सभी उन्हें कोलेट पुकारा करते थे।
सत्रह वर्ष की आयु में कोलेट अनाथ हो गई तथा अपने माता पिता से मिली समस्त
सम्पत्ति उन्होंने ग़रीबों में दान कर दी। सांसारिक सुख वैभव का परित्याग कर कोलेट ने
सन्त फ्राँसिस को समर्पित एक मठ में प्रवेश किया तथा कई वर्षों तक एकान्त जीवन यापन करती
रहीं। अपनी पवित्रता एवं आध्यात्मिक प्रज्ञा के कारण उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली
थी।
एक स्वप्न में, निर्धनों के कल्याण हेतु काम करने का निर्देश प्राप्त
कर, सन् 1406 ई. में, उन्होंने मठ का परित्याग कर दिया तथा निर्धनों के सुधार का बीड़ा
उठा लिया। कोलेट ने "पुअर क्लेयर" अर्थात् अकिंचन क्लेयर धर्मसंघ का सुधार किया तथा धर्मबहनों
के लिये सत्रह नये आश्रमों की स्थापना की। इनका मिशन निर्धनों, परित्यक्तों एवं ज़रूरतमन्दों
की सेवा करना था। पवित्रता, आध्यात्मिकता, भविष्यवाणियों तथा दिव्य-दर्शनों के लिये कोलेट
की चर्चा सर्वत्र फैल चुकी थी। बैल्जियम स्थित घेन्ट के एक मठ में उन्होंने ख़ुद अपनी
मृत्यु की भविष्यवाणी भी की थी। 06 मार्च, सन् 1447 ई. को, घेन्ट में ही, 66 वर्ष की
आयु में, कोलेट का निधन हो गया था। सन् 1807 ई. में कोलेट को सन्त घोषित किया गया था।
सन्त कोलेट पर्व दिवस 06 मार्च को मनाया जाता है।
अकिंचन क्लेयर धर्मसंघ
की एक शाखा कोलेट्टाईन के नाम से भी जानी जाती है जिसकी धर्मबहनें फ्राँस के अतिरिक्त
जर्मनी, आयरलैण्ड, बैल्जियम, जापान, नॉर्वे, यू.के., अमरीका तथा फिलिपिन्स में सेवारत
हैं। सन्त कोलेट गर्भवती माताओं तथा बीमार बच्चों की संरक्षिका हैं।
चिन्तनः
" पुत्र! यदि तुम मेरे शब्दों पर ध्यान दोगे, मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे, प्रज्ञा की
बातें कान लगा कर सुनोगे और सत्य में मन लगाओगे; यदि तुम विवेक की शरण लोगे और सदबुद्धि
के लिए प्रार्थना करोगे; यदि तुम उसे चाँदी की तरह ढूँढ़ते रहोगे और खजाना खोजने वाले
की तरह उसके लिए खुदाई करोगे, तो तुम प्रभु-भक्ति का मर्म समझोगे और तुम्हें ईश्वर का
ज्ञान प्राप्त होगा; क्योंकि प्रभु ही प्रज्ञा प्रदान करता और ज्ञान तथा विवेक की शिक्षा
देता है। वह धर्मियों को सफलता दिलाता और ढाल की तरह सदाचारियों की रक्षा करता है। वह
धर्ममार्ग पर पहरा देता और अपने भक्तों का पथ सुरक्षित रखता है" (सूक्ति ग्रन्थ 2: 1-8)।