वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 6 मार्च 2014 (सीएनएस): रोम स्थित संत सबीना गिरजाघर में 5
मार्च की संध्या संत पापा फ्राँसिस ने राख बुध के पुण्य अवसर पर पावन ख्रीस्तयाग अर्पित
किया। उन्होंने उपदेश में कहा, "चालीसा काल ख्रीस्तीयों को जगाने और यह स्मरण दिलाने
का माध्यम है कि ईश्वर हमें अपने जीवन एवं आस-पास में बदलाव लाने हेतु बल प्रदान करते
हैं।" संत पापा ने धर्मविधि में स्लोवाकिया के कार्डिनल जोसेफ टोमको से राख ग्रहण
किया। राख ग्रहण एवं वितरण करने के पूर्व संत पापा ने अपने प्रवचन में नबी योएल के
ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया है, "वस्त्र फाड़कर नहीं
हृदय से पश्चताप करें।" संत अन्सेलेम मठ में दया याचना की धर्मविधि के पश्चात् संतों
की स्तुति विन्ती गाते हुए संत पापा जूलूस के साथ संत सबीना गिरजाघर गये। संत पापा
ने कहा कि नबी हमें याद दिलाते हैं कि "मन परिवर्तन को बाह्य या अस्पष्ट संकल्पों तक
ही सीमित नहीं किया जा सकता है किन्तु मन-परिवर्तन में हमारा पूरा व्यक्तित्व शामिल होता
है, यह अंतःकरण से आरम्भ होता है।" "मन परिवर्तन की शुरूआत यह पहचानते हुए होती
है कि हम ईश्वर नहीं एक सृष्ट प्राणी हैं। कई लोग आज सोचते हैं कि उनके पास शक्ति है
तथा सृष्टिकर्ता ईश्वर की भूमिका अदा करना चाहते हैं।" चालीसे के समय खीस्तीयों को
आध्यात्मिक विकास हेतु सुसमाचार तीन तत्वों के प्रयोग की सलाह देता है: प्रार्थना, उपवास
एवं दान। "कई प्रकार के घावों की चोट द्वारा हमारा हृदय कठोर हो जाता है अतः ईश्वर
के स्नेह का एहसास करने के लिए हमें प्रार्थना के सागर में गोता लगाने की आवश्यकता है
जो ईश्वर के असीम प्यार का सागर है।" उन्होंने कहा, "चालीसे काल में अधिक नियमित
एवं गहन प्रार्थना करने की आवश्यकता है, ख्रीस्तीय को अन्यों की आवश्यकताओं पर ध्यान
देने की आवश्यकता है, संसार में विभिन्न परिस्थितियों, गरीबी और दुःख के लिए ईश्वर से
प्रार्थना करने की आवश्यकता है।" उपवास के संबंध में संत पापा ने कहा कि मात्र नियम पालन
करने के लिए उपवास नहीं करना चाहिए क्योंकि यह आत्म–संतुष्टि प्रदान नहीं करती है। उपवास
तभी अर्थपूर्ण हो सकता है जब यह किसी और के लाभ के लिए हो, यह भले समारी के समान है जिसने
झुक कर अपने भाई की मदद की। उपवास हृदय से होना चाहिए। दान करने की प्रथा ख्रीस्तीयों
में आम है किन्तु चालीसे के समय इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। मन परिवर्तन की आवश्यकता
पर संत पापा ने कहा कि हमारे द्वारा समाज में जो अनुचित कार्य किये जाते हैं उनका परित्याग
अनिवार्य है।