वाटिकन सिटीः "अत्याचार" ख्रीस्तीय जीवन की वास्तविकता, सन्त पापा फ्राँसिस
वाटिकन सिटी, 05 मार्च सन् 2014 (सेदोक): वर्तमान समाज में ख्रीस्तीय धर्म के अनुयायियों
के विरुद्ध अत्याचारों पर सन्त पापा फ्राँसिस ने ध्यान आकर्षित कराया है।
वाटिकन
स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में मंगलवार को ख्रीस्तयाग के अवसर पर
प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने कहा कि अपने इतिहास के आरम्भ से ख्रीस्तीय धर्म के लोग
अत्याचार सहते रहे हैं तथा आज भी सह रहे हैं।
बाईबिल के उस पाठ पर सन्त पापा
चिन्तन कर रहे थे जिसमें प्रेरितवर सन्त पेत्रुस प्रभु येसु से प्रश्न करते हैं कि उनका
अनुसरण करने का नतीज़ा क्या होगा? सन्त पापा ने कहा कि सम्भवतः पेत्रुस ने सोचा था कि
येसु का अनुसरण करने पर उन्हें आर्थिक लाभ मिलेगा क्योंकि येसु अत्यधिक उदार हैं तथापि,
जैसा कि येसु ने स्वयं चेतावनी दी है जो कुछ भी लाभ वे अर्जित करेंगे उसके साथ साथ उत्पीड़न
अवश्य रहेगा।
सन्त पापा ने कहा कि अत्याचार एवं उत्पीड़न ख्रीस्तीय जीवन की एक
वास्तविकता है। उन्होंने कहा कि क्रूस के उत्पीड़न से लेकर आज तक ख्रीस्तीय धर्म के अनुयायी
अपने विश्वास के कारण अन्यान्य प्रकार से उत्पीड़ित किये जाते रहे हैं।
सन्त
पापा ने कहा, "मानों येसु कह रहे हों, "हाँ तुमने अपना सर्वस्व दे दिया इसलिये इस धरती
पर तुम्हें बदले में बहुत कुछ मिलेगा किन्तु उसमें अत्याचार भी शामिल रहेंगे।"
सन्त
पेत्रुस के पत्र के शब्दों को उद्धृत कर सन्त पापा ने कहा, "येसु ने अपने आप को खाली
कर दिया, सबकुछ में वे मानव व्यक्ति बने तथा उन्होंने मृत्यु और क्रूस मरण तक अपने को
दीन हीन बना लिया"।
सन्त पापा ने कहा कि प्रभु येसु का अनुसरण कर प्रत्येक ख्रीस्तीय
धर्मानुयायी को भी विनम्र बनना चाहिये तथा हर प्रकार की पीड़ा को भोगने के लिये तैयार
रहना चाहिये। उन्होंने कहा कि यह भी नहीं भुलाया जाना चाहिये कि उतना ही कष्ट हमें मिलता
है जितना हम झेल सकते हैं।
सन्त पापा ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि
आज भी विश्व के अनेक क्षेत्रों में कई ख्रीस्तीय अपने विश्वास के कारण कारावासों में
बन्द हैं, कई नज़रबन्द हैं तथा कईयों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगे हैं। इन सब के
लिये सन्त पापा ने प्रार्थना की अपील की।