सन्त काज़ीमीर, पोलैण्ड के राजा काज़ीमीर चतुर्थ
तथा ऑस्ट्रिया की एलीज़ीबेथ के पुत्र थे। उनका जन्म पोलैण्ड में 03 अक्टूबर सन् 1461
ई. को हुआ था। पोलैण्ड के राजकुमार होने के नाते उनकी परवरिश राजदरबार में ही हुई ताकि
आगे जाकर वे अपने पिता राजा काज़ीमीर के उत्तराधिकारी बन सकें। काज़ीमीर को बाल्यकाल
में ही आभास हो गया था कि उनका जीवन राजदरबार तक सीमित नहीं रह सकता था।
बाल्यकाल
से ही राजकुमार काज़ीमीर ने जॉन द्लूगोश नामक एक धर्मी पुरुष के अधीन शिक्षा दीक्षा प्राप्त
की थी। अपने शिक्षक की धार्मिकता एवं पवित्रता ने काज़ीमीर को बहुत प्रभावित किया तथा
उन्होंने भी अपना जीवन ईश्वर की सेवा में अर्पित करने का प्रण कर लिया। माता पिता के
विरोध एवं दबाव के बावजूद काज़ीमीर अपने प्रण पर अटल रहे। उनका मानना था कि जिस वैभव
सम्पन्नता से वे घिरे थे वह प्रलोभनों से परिपूर्ण था। उन्होंने अपने क़ीमती कपड़े ग़रीबों
में बाँट दिये तथा ख़ुद साधारण कपड़े पहनने लगे। रातों को सोने के बजाय वे प्रार्थना
में लीन हो जाया करते थे और जब सोते थे तब शाही पलंग पर सोने के बजाय धरती पर ही लेट
जाया करते थे। राजदरबारी उन्हें विक्षिप्त सोचकर उनकी हँसी उड़ाया करते थे किन्तु काज़ीमीर
सबकुछ धैर्यपूर्वक सहते हुए अपने प्रण पर आगे बढ़ते रहे थे।
जब राजा काज़ीमीर
ने राजकुमार काज़ीमीर को हंगरी पर चढ़ाई के लिये भेजा तब यह जानते हुए भी कि हँगरी पर
आक्रमण ग़लत था काज़ीमीर, पिता की आज्ञा का पालन करते हुए, सेना लेकर लड़ाई पर निकल गये।
इस लड़ाई में पोलैण्ड को हारते देख सैनिकों ने उनका परित्याग आरम्भ कर दिया। काज़ीमीर
भी पोलैण्ड लौट आये। सन्त पापा सिक्सटुस चतुर्थ ने भी राजकुमार के फैसले को सही बताया
किन्तु राजा काज़ीमीर बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने अपने पुत्र काज़ीमीर को डोब्ज़ी के
दुर्ग में बन्द करवा दिया। राजा काज़ीमीर चाहते थे काज़ीमीर अपनी ग़लती को माने तथा उनका
मन राजपाठ में लगे। ऐसा नहीं हुआ इस गिरफ्तारी ने काज़ीमीर की बुलाहट को और अधिक मज़बूत
कर दिया तथा उन्होंने अपने पिता राजा काज़ीमीर की सभी योजनाओं से ख़ुद को अलग कर लिया।
पिता ने उनका विवाह कराना चाहा किन्तु इसका भी काज़ीमीर ने बहिष्कार कर दिया। इसके बजाय
उन्होंने अपना जीवन प्रार्थना, अध्ययन, बाईबिल पाठ तथा निर्धनों की सेवा में व्यतीत करने
की शपथ ली तथा आजीवन इसका पालन करते रहे।
23 वर्ष की उम्र में फेफड़ों के
रोग के कारण, 04 मार्च सन् 1458 ई. को, राजकुमार काज़ीमीर का निधन हो गया। उनकी अन्तयेष्टि
पर मरियम को समर्पित उनका प्रिय गीत गाया गया "ओमनी दिये दिक मारिये" अर्थात् "प्रतिदिन,
प्रतिदिन मरियम के आदर में गीत गाओ"। इस गीत के प्रति उनके प्रेम के कारण यह काज़ीमीर
के गीत रूप में विख्यात हो गया है हालांकि काज़ीमीर ने इस गीत की रचना नहीं की थी। युवा
राजकुमार सन्त काज़ीमीर पौलेण्ड तथा लिथुआनिया के संरक्षक हैं। सन्त काज़ीमीर का पर्व
04 मार्च को मनाया जाता है। पोलैण्ड में यह पर्व चार मार्च के आसपास पड़नेवाले रविवार
को एक विशिष्ट रंगमेले से मनाया जाता है।
चिन्तनः सतत् प्रार्थना
प्रभु तक पहुँचने का मार्ग है, इसकी खोज में हम लगे रहें।